दु:संग को त्यागे बिना आध्यात्मिक उत्थान असंभव

अग्नि छूकर एक बार बचा जा सकता है पर अग्नि से लाल किए गए लोहे को छूने पर कोई भी बिना जले बच नहीं सकता

Publish: Aug 04, 2020, 11:51 AM IST

photo courtesy: medium
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मनुष्य के व्यक्तित्व के निर्माण के लिए वह जिस प्रकार के ग्रंथों और पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन करता है,जैसे उसके मित्र और श्रद्धेय होते हैं और जिस वातावरण में वह रहता है, इन सब का महत्वपूर्ण योगदान है। अतः इनमें पर्याप्त ध्यान देकर इनका संशोधन करना आवश्यक होता है।

दु:संग का पूर्ण त्याग किए बिना मनुष्य का आध्यात्मिक उत्थान होना असंभव है।अग्नि छूकर एक बार बचा जा सकता है पर अग्नि से लाल किया गया लोहा छूने पर कोई भी बिना जले नहीं बच सकता। इसी प्रकार दुर्जनों का संग करने वाला उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। दंभ, दर्प, अभिमान,क्रोध, कठोर वचन और अज्ञान आसुरी संपत कहलाते हैं इन दोनों को प्रयत्न पूर्वक दूर करना चाहिए। अभिमानी मनुष्य का शीघ्र ही पतन हो जाता है। इसलिए धन,जन, रूप, विद्या और कुल का अभिमान नहीं करना चाहिए।

दुर्जनों की विद्या विवाद के लिए, धन मद के लिए, और बल दूसरों को पीड़ा पहुंचाने के लिए होते हैं। जबकि सज्जनों की विद्या ज्ञान, धन दान, और शक्ति निर्बल नि:सहाय लोगों की सहायता और रक्षा के लिए होती है।

न्याय पूर्वक धन का अर्जन करना चाहिए, पर उसका अहंकार न कर के अच्छे कामों में लगाना चाहिए। इन सब से निर्लिप्त रहने का प्रयत्न करना अपनी आध्यात्मिक उन्नति में सहायक है। 

अहंता ममता से ही संसार हमारे भीतर आता है। इनसे बचते हुए मनुष्य शरीर की आयु का उपयोग प्रतिपल आध्यात्मिक साधना में करते हुए परमेश्वर ने जिस उद्देश्य की सिद्धि के लिए हमें मनुष्य देह प्रदान की है, उसको प्राप्त करके ही हम उनकी कृपा को सार्थक कर सकते हैं।