सहज और स्थायी सुख की राह

कर्म तो सभी करते हैं पर उनका अनुष्ठान यदि परमेश्वर की प्रसन्नता के लिए होता है तो वही बन जाता है कर्म-योग

Updated: Jul 30, 2020, 12:39 PM IST

सुख दो प्रकार का होता है। एक सुख वह है जो दु:ख के साथ जुड़ा रहता है और दूसरा वह है जो दुःख का सदा के लिए विनाश कर देता है।जो सुख बाह्य साधनों से प्राप्त होता है,वह दुःख का साथी है क्यूंकि अनुकूल विषयों के अभाव और इन्द्रिय-मन की प्रतिकूलता में वह दुःख का कारण बन जाता है पर जो सुख बाह्य साधनों से निरपेक्ष और सहज होता है वह स्थायी होता है।

भोगों के त्याग से मन पवित्र होता है।वह अतीन्द्रिय सुख दिव्य होता है, जो सदाचार,स्वधर्मपालन,आत्मसंयम वैराग्य, भगवद्भक्ति, योगाभ्यास और आत्मज्ञान से प्राप्त होता है। वही सहज और स्थायी सुख होता है।

यह हमारा भ्रम है कि सुख तभी मिलता है जब हमारा मन और इन्द्रियां अनुकूल विषयों से जुड़ते हैं। यदि ऐसा होता तो सुषुप्ति (गाढ़ निद्रा) में हमें सुख का अनुभव क्यों होता है? सुषुप्ति में तो इन्द्रियां, मन, बुद्धि सभी अज्ञान में विलीन हो जाते हैं। सुषुप्ति से उठने पर हम कहते हैं कि "आज मैं ऐसा सुख से सोया कि कुछ पता ही नहीं रहा"।यह जिस सुख का स्मरण है,वह परमात्मा के मिलन का सुख है।

श्रुति कहती हैं- गाढ़-निद्रा में यह जीव सत् परमात्मा में विलीन हो जाता है। यह उसी सहज और साधन रहित सुख का स्मरण है। पर सुषुप्ति में अज्ञान के कारण वह सुख आवृत (ढंका) रहता है। हमें जागृत में उसे अभिव्यक्त करना चाहिए। इसके लिए सर्व प्रथम कर्म योग का आश्रय लेना पड़ता है। जिस कर्म का उद्देश्य लौकिक न होकर आध्यात्मिक सुख होता है,वह कर्म-योग कहलाता है। कर्म तो सभी करते हैं पर उनका अनुष्ठान यदि परमेश्वर की प्रसन्नता के लिए होता है तो वही कर्म-योग बन जाता है।

सत्संग करें, एकान्त में मनन करें, और समय को व्यर्थ न जाने दें। अपने व्यवहार को ही साधना बना लें। इससे दुःख तथा शोक का सदा के लिए अन्त हो जायेगा।