वर्षारम्भ: वर्ष 2021 का स्वागत कैसे करें

एक क्षण सकुशल व्यतीत हो जाय तो अगले क्षण का स्वागत करें और ईश्वर का धन्यवाद करें कि प्रभु! आपकी कृपा से हम अगले क्षण में प्रवेश कर रहे हैं।

Updated: Jan 01, 2021, 05:44 AM IST

Photo courtesy: Bhaskar
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अधिकांश लोग नव वर्ष के स्वागतार्थ अत्यंत उत्साहित हैं। यद्यपि सनातन संस्कृति के अनुसार हमारा वर्षारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा वासंतिक नवरात्रि के समय आता है। तथापि जो मानते हैं उन्हें इस वर्ष 2021 का स्वागत कैसे करना चाहिए। यह प्रश्न बहुत से साधकों के मन में है। हमारा सनातन धर्म हमें प्रतिक्षण उत्साहित रहने का उपदेश करता है। एक क्षण सकुशल व्यतीत हो जाय तो अगले क्षण का स्वागत करें और ईश्वर का धन्यवाद करें कि प्रभु! आपकी कृपा से हम अगले क्षण में प्रवेश कर रहे हैं, आप कृपा करें कि आपकी स्मृति बनी रहे। निरंतर मृत्यु को ध्यान में रखना चाहिए।हमारे शास्त्र कहते हैं कि-

अजरामरवत्प्राज्ञो,

विद्यामर्थञ्च चिन्तयेत्।

गृहीत इव केशेषु,

मृत्युना धर्ममाचरेत्।। सांसारिक कार्यों के सम्पादन के समय हमें अपने आप को अजर अमर समझते हुए करना चाहिए। किन्तु धर्म कार्य करते हुए ये मानना चाहिए कि मृत्यु हमारा केश पकड़ कर खड़ी है। शीघ्रातिशीघ्र हमें धर्म कार्य कर लेना चाहिए। हमारी दिनचर्या में नित्य सत्संग का नियम भी होना चाहिए। क्यूंकि संसार में यदि कहीं भी मति,कीर्ति, गति,वैभव और भलाई आदि दिखाई देती है तो वह सत्संग के प्रभाव से ही-

सो जानब सत्संग प्रभाऊ।

लोकहुँ वेद न आन उपाऊ।।

एकबार महर्षि वशिष्ठ और महर्षि विश्वामित्र दोनों में सत्संग और तपस्या में कौन श्रेष्ठ है इस बात को लेकर विवाद हो गया। विश्वामित्र जी तपस्या की, और महर्षि वशिष्ठ सत्संग की महिमा का वर्णन कर रहे थे। जब निराकरण नहीं हो पाया तो दोनों भगवान शेष के पास गए और अपने अपने पक्ष को अत्यंत मजबूती के साथ रखे। भगवान शेष ने कहा कि हमारे सिर पर पृथ्वी का भार है आप दोनों में से कोई एक थोड़ी देर के लिए इसे सम्भाल ले तो मैं स्वस्थ मस्तिष्क से निर्णय दे सकता हूँ। यह सुनकर श्री विश्वामित्र जी ने अपनी तपस्या के बलपर पृथ्वी के भार को उठाना चाहा परन्तु वे सफल नहीं हुए, तब महर्षि वशिष्ठ एक क्षण के सत्संग की शक्ति पर सम्पूर्ण पृथ्वी के भार को धारण कर लिए। निर्णय हो गया कि सत्संग की महिमा अधिक है। इसलिए हमारे शास्त्र कहते हैं कि-

सत्संगति: कथय किं न करोति पुंसाम्।।

अर्थात् सत्संग से संसार की कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं है।

इसलिए हमें प्रति क्षण सावधान रहकर धर्माचरण करते हुए अपने सद्गुरु के वचन पर विश्वास रखते हुए सत्संग में प्रवृत्त होकर जीवन धन्य बनाना चाहिए। और इस नव वर्ष में संकल्प लें अब हम सनातन धर्म के अनुसार चैत्र में ही नव वर्ष मनाएंगे। हिन्दी के महीनों का (चैत्र बैशाख) आदि के रूप प्रचार करेंगे।

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तारीख की जगह तिथि का प्रयोग करेंगे। रविवार की जगह प्रतिपदा और अष्टमी को छुट्टी मनायेंगे। इस संकल्प के साथ परम पूज्य गुरुदेव भगवान और माता राजराजेश्वरी जो कि तत्वतः एक ही हैं, उनकी कृपा की वर्षा से सम्पूर्ण विश्व आप्लावित हो ऐसी मंगल कामना करती हूं।