साधना के पहले विवेक का उदय आवश्यक है, श्रीमद्भगवद्गीता में बार-बार बताई गई है बुद्धि की महिमा

हमारा शरीर एक रथ है,आत्मा रथी है, बुद्धि में बैठे वासुदेव सारथी हैं और इन्द्रियां ही इस रथ के घोड़े हैं

Updated: Oct 06, 2020, 01:04 PM IST

वचनामृत
हमारे शास्त्रों में संसार को सागर, भवाटवी (संसार जंगल) और भवकूप अर्थात् संसार को कूप (कुंआ) आदि नाम दिए गए हैं।अब हमारा प्रयास इस दिशा में होना चाहिए कि हम इस भव सागर से कैसे मुक्त हों।श्री मद् गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने विनय पत्रिका में एक बड़ा सुन्दर संकेत किया है कि-
बांस पुरान साज सब अठकठ
सरल तिकोन खटोला रे।
हमहिं दिहल करि कुटिल करमचंद मंद
 मोल बिना डोला रे।।

हमारे कर्मों के परिणाम स्वरूप हमें यह शरीर प्राप्त हुआ।इसको एक खटोला से उपमित करते हैं। पुराने बांस का बना हुआ यह त्रिकोण खटोला है। जिसमें-
विषम कहार मार मद माते
चलहिंं न पांउ बटोरा रे

इसमें मार और मद से मत्त हमारी इन्द्रियां ही खटोला का वहन करने वाले कहार हैं। जो विषम हैं अर्थात् नेत्र रुप की ओर, कर्ण शब्द की ओर, नासिका गंध की ओर, और जिह्वा बरबस ही रस की ओर हमें ले जा रही हैं। अर्थात् अलग-अलग दिशा में ले जा रही हैं। और गीता में इन्द्रियों को घोड़ा बताया गया है। हमारा शरीर एक रथ है,आत्मा रथी है, बुद्धि में बैठे वासुदेव सारथी हैं और आपकी इन्द्रियां ही इस रथ के घोड़े हैं। हमारे रथ के घोड़े कैसे होने चाहिए? तो  कहते हैं कि अर्जुन की तरह। अर्जुन के घोड़े श्वेत हैं।
  तत:श्वेतैर्हयैर्युक्ते
श्वेत घोड़े जुते हुए हैं अर्जुन के रथ में। हमें भी इस विषय में पूर्ण सावधान रहने की आवश्यकता है कि हमारे रथ के घोड़े भी श्वेत हों।इन इन्द्रियोंं को जब हम सत्कर्म में लगाएंगे तब तो इनका श्वेत रंग होगा। क्यूंकि सत्व गुण का रंग श्वेत है। और जब इन्हें असत्कर्म में लगाएंगे तब इनका रंग काला हो जायेगा। क्यूंकि तमोगुण का रंग काला है। परन्तु घोड़ों को किस दिशा में ले जाना है यह तो सारथी ही निर्धारित करता है। तो जैसे अर्जुन के पास एक सारथी है जो उनके रथ को सही दिशा में ले जाता है। वैसे ही हमारे पास भी बुद्धि रूपी सारथी है जिसमें वासुदेव बैठे हैं वो हमारे इस रथ को  सही दिशा प्रदान करते हैं। 
 बुद्धिं तु सारथिं विद्धि
अर्जुन के जीवन में विवेक का उदय हुआ।आप साधना किसलिए करते हैं?क्या सत् को शून्य, चेतन को जड़ और आनंद को दुःख रूप बनाने के लिए? यदि आपको यह विदित हो जाय कि जो साधना हम कर रहे हैं यह हमें सत्, चेतन और आनंद से शून्य कर देगी तो क्या आप साधना करेंगे? नहीं न? इसलिए साधना के पहले विवेक का उदय होना अति आवश्यक है। श्रीमद्भगवद्गीता में स्थान-स्थान पर बुद्धि की महिमा बताई गई है।
 न हि ज्ञानेन सदृशं,
 पवित्रमिह विद्यते।।

अपने को पवित्र बनाने के लिए,अपना मोह मिटाने के लिए, अज्ञान को दूर करने के लिए ज्ञान का सहारा तो लेना ही पड़ेगा। इसलिए गीता में बुद्धि का बहुत आदर किया गया है।
बुद्धि योग मुपाश्रित्य
मच्चित्त: सततं भव
बुद्धि युक्तो जहातीह
उभे सुकृत दुष्कृते।।
          और भी
ददामि बुद्धि योगं तं
येन मामुपयान्ति ते।

प्रत्येक कार्य के लिए हमें बुद्धि की आवश्यकता है कर्म में,साधन में, समाधि में, भक्ति में, मोह को जीतने में,भगवत्साक्षात्कार में हर कार्य में हमें बुद्धि की आवश्यकता है।वह बुद्धि ही सारथी है और उसी में वासुदेव स्थित हैं। यह कुशल सारथी ही हमें भव सागर से पार ले जायेगा।
          नर्मदे हर