देश में सॉफ्ट फासिज्म की पदचाप सुनाई दे रही है

-एल.एस.हरदेनिया- भारत में नाजीवाद और फासीवाद पदचाप सुनाई दे रही है। निकट भविष्य में जो नाजीवाद या फासीवाद हमारे देश में आएगा वह उतना खूंखार और हिंसक नहीं होगा जितना कि हिटलर की जर्मनी और मुसोलनी के इटली में था। हिटलर भी प्रजातांत्रिक तरीके से सत्ता में आया था। सत्ता में आने के बाद उसने […]

Publish: Jan 07, 2019, 11:01 PM IST

देश में सॉफ्ट फासिज्म की पदचाप सुनाई दे रही है
देश में सॉफ्ट फासिज्म की पदचाप सुनाई दे रही है
-एल.एस.हरदेनिया- p style= text-align: justify strong भा /strong रत में नाजीवाद और फासीवाद पदचाप सुनाई दे रही है। निकट भविष्य में जो नाजीवाद या फासीवाद हमारे देश में आएगा वह उतना खूंखार और हिंसक नहीं होगा जितना कि हिटलर की जर्मनी और मुसोलनी के इटली में था। हिटलर भी प्रजातांत्रिक तरीके से सत्ता में आया था। सत्ता में आने के बाद उसने सभी प्रजातांत्रिक संस्थाओं को तहस-नहस कर दिया था और एक अत्यधिक क्रूर एवं हिंसक तानाशाह बन गया था। हमारे देश में भी हिटलर की तर्ज वाला फासिज्म आ सकता है। इस बात की संभावना प्रतिष्ठित दैनिक अखबार द टाईम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक लेख में व्यक्त की गई है। यह लेख दिनांक 29.03.2014 के संस्करण में छपा है। इसके लेखक हैं कांति बाजपेयी। लेख इस प्रकार है : लोकसभा के चुनाव के लिए कुछ ही दिन शेष रह गए हैं। समय आ गया है कि जब मतदाताओं को यह फैसला करना होगा कि वे अपना कीमती वोट किसे दें। इस समय देश में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी का धुआंधार प्रचार चल रहा है। अनेक सर्वेक्षणों के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी को नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बहुमत प्राप्त हो जाएगा। यदि ऐसा होता है और नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बन जाते हैं तो क्या होगा। बिना किसी संदेह के यह कहा जा सकता है कि मोदी के नेतृत्व में सर्वप्रथम सॉट फासिज्म के लक्षण देश में प्रकट होंगे। फासिज्म का अर्थ क्या है? फासिज्म एक ऐसी व्यवस्था है जो तानाशाही प्रवृत्तियों पर आधारित है। इस व्यवस्था में संकुचित विचारों और गैरकानूनी समूहों की गतिविधियां प्रारंभ हो जाती हैं। संकुचित राष्ट्रवाद राष्ट्र की विचारधारा बन जाता है। नागरिकों से अपेक्षा की जाती है कि वे देश के सबसे मजबूत नेता के सामने समर्पण करें और शक्तिशाली को ही जिंदा रहने का अधिकार है यह विचार लोकप्रिय हो जाता है। ये सारे लक्षण गुजरात के समाज में आज भी दिखाई दे रहे हैं। मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर इनका स्वरूप राष्ट्रव्यापी हो जाएगा। /p p style= text-align: justify वैसे तो मोदी और उनकी पितृसंस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का यह प्रयास होगा कि पहले ही झटके में फासिज्म के विचार को देश पर लाद दिया जाए। परंतु हमारे देश की बहुवादी संस्कृति और व्यवस्था के कारण यह संभव नहीं होगा। जो यह चाहते हैं कि देश पर आक्रामक फासीवाद लादा जाए वे तुरंत ऐसा नहीं कर पाएंगे। वैसे तो आज भी भाजपा-शासित राज्यों में फासिज्म के लक्षण स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। भारत में क्यों ऐसी संभावना लग रही है? यह इसलिए क्योंकि मोदी को बाजार (बड़े और मध्यम) का समर्थन प्राप्त है उसके अतिरिक्त मध्यम वर्ग के लोग असंतुष्ट हैं। मधयम वर्ग तानाशाही व्यवस्था को प्राय: समर्थन दे देता है जैसा कि जर्मनी में हुआ था। मोदी द्वारा यह बार-बार दावा किया जा रहा है कि वही देश को बचा सकते हैं वही निर्णायात्मक प्रभावशाली साफ-सुथरे देश का निर्माण कर सकते हैं। मोदी ने यह बता दिया है कि उनमें ऐसा करने की शक्ति है। मोदी ने सिध्द कर दिया है कि वे विकास पुरूष हैं। आर्थिक प्रगति सामाजिक स्थिरता और सुशासन उनके लिए बाएं हाथ का खेल है। ऐसे अनेक भारतीय जो मोदी को और भाजपा को पसंद नहीं करते हैं या जो सॉट फासिज्म के समर्थक नहीं हैं वे भी कभी-कभी यह सोचते हैं कि मोदी ही इस देश को बचा पाएंगे। यह बात दूसरी है कि मोदी और उनके समर्थक जो दावा कर रहे हैं वे पूरी तरह सही नहीं हैं। एक और तथ्य जो निर्णायात्मक भूमिका निभाएगा वह है कार्पोरेट इंडिया का मोदी को शर्तविहीन समर्थन। जिन देशों में फासिज्म उभरा है वहां बड़े उद्योगो के समर्थन से ही ऐसा संभव हो पाया है। भारत में भी आज ऐसी ही स्थिति है। आज भारत में पूरा का पूरा कार्पोरेट वर्ग मोदी के समर्थन में उठ खड़ा हो रहा है। फुटकर व्यापारी तो पहले ही भाजपा के समर्थक थे इसलिए उनका समर्थन तो उसे प्राप्त है ही। बड़े उद्योगपतियों को समाज के हित वाले कार्यक्रम अच्छे नहीं लगते हैं। पर्यावरण के नाम पर औद्योगिक विकास को रोका जाता है वह भी बड़े उद्योगपतियों को अच्छा नहीं लगता। इन उद्योगपतियों को लगता है कि यदि मोदी आ जाएंगे तो ये घुटनभरे कानून समाप्त हो जाएंगे और उन्हें उद्योगों के अनियंत्रित विकास में लग जाने का अवसर प्राप्त हो जाएगा। /p p style= text-align: justify जैसा कि पहले बताया जा चुका है मध्यमवर्ग का असंतोष भी फासिज्म को लाने में मदद करता है। मध्यम वर्ग उच्च वर्ग और निम्न वर्ग के बीच रहता है। उन्हें इस बात की शिकायत है कि पिछले दस वर्षों में उनकी उपेक्षा की गई है। उच्च वर्ग ने दस वर्ष में असाधारण प्रगति की है। निम्न वर्ग के लोगों को नरेगा जैसे अनेक कार्यक्रमों से लाभ हुआ है। मध्यम वर्ग को इन दस वर्षों में कुछ खास हासिल नहीं हुआ है इसलिए वह नाराज है। उन्हें लगता है कि मोदी के सत्ता में आने से उन्हें लाभ होगा। बड़े उद्योग व मध्यम वर्ग के लोग मोदी के प्रचार में मदद कर रहे हैं। मीडिया तो बड़े उद्योगों के हाथ में है ही। मीडिया में मध्यम वर्ग के लोग ही काम करते हैं ये दोनों मिलकर मोदी के व्यक्तित्व को बहुत ही बड़ा बनाकर पेश कर रहे हैं। ये दोनों वर्ग लाखों की संख्या में मोदी के साथ हैं। यह बात दूसरी है कि आगे जाकर मीडिया अपने इस रवैए के दुष्परिणामों पर पछताएगा। जो पिछले समय बीजेपी के साथ थे उन्होंने देखा है कि भाजपा को स्वतंत्र पत्रकारिता से बहुत ज्यादा प्रेम नहीं है। इस तरह इस बात की पूरी संभावना है कि सॉट फासिज्म न सिर्फ स्थापित होगा वरन अपनी स्थिति को मजबूत करेगा और प्रजातांत्रिक ढांचे से पूरा लाभ लेने की कोशिश करेगा। जहां हम अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था से असंतुष्ट हैं वहीं हमें इस बात की सजगता बरतनी चाहिए कि कहीं ऐसी स्थितियां निर्मित न हो जाएं जिससे सॉट फासिज्म आक्रामक रूप ले ले और हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था सदा के लिए समाप्त हो जाए। इस समय देश में जो प्रचार चल रहा है उसके माध्यम से यह बताने की कोशिश की जा रही है कि मोदी के सत्ता में आते ही देश की सभी समस्याएं हल हो जाएंगी। गरीबी समाप्त हो जाएगी भ्रष्टाचार का नामोनिशान नहीं रहेगा देश में एक भी बेकार नहीं रहेगा सभी के विकास की अनंत संभावनाएं दिखने लगेंगी रक्षा के मामले में हम काफी सजग हो जाएंगे कोई भी दुश्मन हमें आंख नहीं दिखा सकेगा चारों तरफ खुशहाली होगी। परंतु ये सब सफलताएं मोदी की होंगी-मोदी व्यक्ति की न कि भाजपा के नेता नरेन्द्र मोदी की। अब तो खुले आम यह नारा दिया जा रहा है कि मोदी सरकार को वोट दो। सारे प्रचार से भाजपा गायब है। हिटलर के उदय के बाद जर्मनी में भी ऐसा ही हुआ था। हिटलर दावा करता था कि वही सब कुछ है उसके ही कारण जर्मनी का भाग्य बदला है। उसने कभी किसी सफलता का श्रेय किसी और को नहीं दिया। उसका प्रचारक गोएबेल्स हिटलर का इसी तरह प्रचार करता था। लगभग ऐसा ही मोदी के लिए किया जा रहा है। /p