Modi government 2.0 : किसानों की बिजली सब्सिडी खत्‍म होगी

electricity amendment bill 2020 : केन्द्र सरकार ने जारी किया विद्युत अधिनियम संशोधन बिल 2020 का मसौदा, किसान विरोधी करार दिया गया बिल

Publish: May 29, 2020, 05:20 AM IST

केन्द्र सरकार ने हाल ही में इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल 2020 का मसौदा जारी किया गया है। असके अनुसार किसानों को बिजली में मिलने वाली सब्सिडी नहीं मिलेगी। नए कानून के पारित होने से बिजली दरों में मिलनी वाली सब्सिडी नहीं मिलेगी। इससे किसानों व घरेलू उपभोक्ताओं को बिजली महंगे दर पर खरीदनी पड़ेगी। सरकार इस बिल को आगामी मॉनसून सत्र में पारित करना चाहती है।

मोदी सरकार ने इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल का मसौदा 17 अप्रैल 2020 को जारी किया है। कानून के मुताबिक किसानों एवं घरेलू उपभोक्ताओं को अब महंगी कीमत चुकानी होगी, क्योंकि इस बिल के पास होने से किसानों को बिजली दरों में अब कोई रियायत नहीं मिलेगी। नए बिल में प्रावधान है कि विद्युत वितरण कम्पनी ' डिस्ट्रीब्यूशन सब लाइसेंसी ' की नियुक्ति करेगी तो वहीं ' डिस्ट्रीब्यूशन सब लाइसेंसी' बिजली आपूर्ति के लिए फ्रेंचाइजी की नियुक्ति करेगा। इसके साथ ही बिल के पास होने के बाद सरकार द्वारा ' इलेक्ट्रिसिटी एनफोर्समेंट अथॉरिटी' का गठन किया जाएगा जिसका काम विद्युत वितरण कम्पनी और निजी क्षेत्र की बिजली उत्पादन कम्पनियों के बीच बिजली करार का पालन करना सुनिश्चित करना होगा।

क्या है इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल ?

केंद्र सरकार द्वारा 17 अप्रैल को इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 जारी किया गया है. इस बिल द्वारा इलेक्ट्रिसिटी एक्ट, 2003 में व्यापक बदलाव लाये जायेंगे. लाये जा रहे कुछ प्रमुख बदलाव निम्न हैं-

  • सब्सिडी व क्रास सब्सिडी समाप्त करना
  • डिस्ट्रीब्यूशन सब लाइसेंसी और फ्रेंचाइजी नियुक्त करना
  • इलेक्ट्रिसिटी कॉन्ट्रैक्ट एनफोर्समेन्ट अथॉरिटी का गठन
  • विद्युत नियामक आयोग की नियुक्ति में केंद्र सरकार का सीधा नियंत्रण

किसान तथा विद्युत विभाग के इंजीनियर्स इस बिल का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि बिल के ज़रिए केंद्र सरकार का संघीय ढांचे पर आक्रमण करना चाहती है। किसी भी राज्य में बिजली व्यवस्था का संपूर्ण नियंत्रण राज्य विद्युत नियामक आयोग द्वारा किया जाता है। लेकिन नए बिल के अनुसार अब केंद्र सरकार की चुनाव समिति का गठन करेगी जो राज्यों के राज्य विद्युत नियामक के अध्यक्ष व सदस्यों को नियुक्त करेगी। इस समिति में राज्य का कोई प्रतिनिधि शामिल नहीं होगा। गौरतलब है कि बिजली का विषय भारतीय संविधान की समवर्ती सूची में आता है जिसके तहत इसका नियंत्रण केंद्र सरकार व राज्य सरकार दोनों के नियंत्रण में आता है। ऐसे में यह राज्य सरकारों के अधिकारों पर अतिक्रमण के साथ साथ संघीय ढांचे पर आक्रमण है।

किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाएंगे

इस बिल का विरोध करते हुए नर्मदा बचाओ आंदोलन ने कहा कि बिल के पास होने पर किसानों को बिजली का पूरा बिल चुकाना पड़ेगा। जबकि किसानों को खेती में घाटा न हो, इसलिए उनको बिल अभी सस्ते दरों पर मिलती है। बिजली के दाम बढ़ने से किसानों को खेती में काफी नुकसान उठाना पड़ जाएगा। इसके चलते किसान आर्थिक बोझ तले दबने लग जाएंगे। देश भर में किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्या पहले ही बहुत बड़ी समस्या है। ऐसे में यह बिल किसानों को आत्महत्या करने पर और मजबूर कर देगा।

नर्मदा बचाओ आंदोलन ने कहा-वापस लें बिल

केंद्र सरकार के इस तुगलकी फ़रमान का नर्मदा बचाओ आंदोलन के सदस्य किसान विरोधी कानून का विरोध कर रहे हैं। नर्मदा बचाओ आंदोलनकारी अशोक अग्रवाल ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर बिल को तत्काल वापस लेने की मांग की है। दरअसल सरकार इसे आगामी मॉनसून सत्र में पारित करना चाहती है। साथ ही आंदोलनकारियों ने शिवराज सिंह चौहान से भी प्रदेश की जनता के हित में केंद्र सरकार के समक्ष इस बिल का विरोध करने की मांग की है।

नया नहीं है भारत में फ्रेंचाइजीकरण का प्रयोग

विद्युत वितरण में निजी क्षेत्र के फ्रेंचाइजीकरण का प्रयोग भारत में कोई नया नहीं है. यह प्रयोग सबसे पहले महाराष्ट्र में भिवंडी से शुरू हुआ था। महाराष्ट्र में ही औरंगाबाद, नागपुर, जलगांव, मध्यप्रदेश में उज्जैन, ग्वालियर, सागर, बिहार में गया। मुजफ्फरपुर, भागलपुर में निजी कंपनियों को  दिए गए फ्रेंचाइजी करार उनकी अक्षमता के कारण निरस्त किये जा चुके हैं। उत्तर प्रदेश में आगरा में फ्रेंचाइजी के घोटाले को लेकर सीएजी की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा किया जा चुका हैं। देश में सबसे पहले उड़ीसा में वितरण का निजीकरण हुआ था जो पूरी तरह विफल रहा और 2015 में निरस्त किया जा चुका है।