कौन हैं कैलाश चौधरी, क्यों मिला है उन्हें रूरल मार्केटिंग गुरु का खिताब, जानिए यहां

Rural Marketing Guru: आंवले की पहली फसल खराब होने पर हार नहीं मानी, 60 पेड़ों से काम शुरु कर डेढ़ करोड़ के टर्नओवर तक पहुंचे कैलाश चौधरी, हजारों किसानों को ट्रेनिंग दे चुके हैं

Updated: Jan 29, 2021, 09:19 AM IST

Photo Courtesy: Better india
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जयपुर। कड़ी मेहनत, दूरदृष्टि और पक्के इरादे के दम पर सालाना डेढ़ करोड़ से ज्यादा का टर्न ओवर रखने वाले उन्नत किसान कैलाश चौधरी आज किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं। उनका कहना है कि खेती में टाइम मैनेजमेंट उतना ही आवश्यक है जितना दूसरे काम में। खेती में अपनी सफलता अपने हाथ में होती है, आप एक बार कोशिश करके तो देखिए।  

राजस्थान के कीरतपुरा गांव के 71 वर्षीय कैलाश चौधरी को पूरे राजस्थान में जैविक खेती के लिए जाना जाता है। वे रूरल मार्केटिंग के आइकॉन हैं। कैलाश चौधरी की जिंदगी की फिलासफी है कि “लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती और कोशिश करने वालों की हार नहीं होती”।यही पंक्तियां उन्हें जीवन भर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती रही हैं, चाहे मंडी में अनाज बेचने के लिए लाइन लगाकर बैठेने की बात हो या फिर आज का वक्त जब वो एक सफल किसान और उद्यमी हैं।

उनका कहना है कि एक विज्ञापन ने उनकी जिंदगी बदल दी, दरअसल हुआ यूं के एक बार कैलाश चौधरी अपनी गेहूं की फसल बेचने मंडी गए थे, उनका नंबर आने में थोड़ा टाइम था, तो उन्होंने वहां पड़ा एक अखबार उठा लिया और पढ़ने लगे, तभी उनकी नजर एक विज्ञापन पर पड़ी वे उसकी सच्चाई जानने के लिए निकल पड़े। दरअसल वह एक ब्रांडेड गेंहू का विज्ञापन था, जो कि 6 रुपए किलो में बिकता था,

जबकि मंडियों में 4 रुपए किलो गेहूं बिकता था, कैलाश की खोजी प्रवृत्ती यहां काम आई, उन्होंने गेहूं कंपनी में पल्लेदार की नौकरी सिर्फ इसलिए की ताकि वो जान सकें कि यहां के गेहूं में क्या खास है जो इतना महंगा बिकता है, फिर क्या था हफ्ते भर में कैलाश चौधरी ने पूरी जानकारी हासिल कर ली कि कैसे सामान्य से गेहूं की क्लीनिंग और ग्रेडिंग करके, उसकी आकर्षक पैकिंग की जाती थी, उसे जूट की बोरियों में पैक कर उस पर स्टेंसिल लगाया जाता था। इस वैल्यू एडीशन से गेहूं की कीमत बढ़ जाती थी। जिसे शहरों की कॉलोनियों और टाउनशिप में बेचा जाता था।

फिर क्या था ग्रेडिंग, पैकिंग और मार्केटिंग की जानकारी लेकर कैलाश चौधरी ने अपने गांव लौटे और उन्होंने अपने यहां भी गेहूं साफ करने और ग्रेडिंग करने वाली एक मशीन लगवा ली।फिर उस गेंहूं को खुद ही बोरियों में पैक कर उसे जयपुर में बेचना शुरू किया।

खुद मार्केटिंग करने से इतना फायदा हुआ कि उन्होंने बिचौलियों को हटाने का फैसला लिया। उनके ग्रेडिंग वाले गेहूं की मांग बढ़ती जा रही थी, जिसके बाद कैलाश ने इलाके के दूसरे किसानों को अपने साथ जोड़ लिया। फिर क्या था उनकी कमाई डेढ़ गुनी बढ़ गई, और पैसा भी कैश मिलने लगा।

राजस्थान की राजधानी जयपुर की कोटपुतली तहसील अब जैविक खेती और फ़ूड प्रोसेसिंग प्लांट्स का हब बन चुकी है। इलाके में हज़ारों किसान यहां पर केवल जैविक खेती करते हैं, यहां बड़े सीमान्त और छोटे किसान भी हैं, इनमें से बहुत से किसानों ने अपनी स्वयं की प्रोसेसिंग यूनिट्स लगा ली है।

कैलाश चौधरी केवल दसवीं पास है,बचपन में पिता की मदद करने के लिए उन्होंने खेतों की ओर रुख किया। और अब वे इलाके के लिए मार्गदर्शक बन गए हैं। उनका कहना है कि उनके पिता के पास करीब 60 बीघा जमीन थी। लेकिन वहां सिंचाई की सुविधा नहीं होने की वजह से केवल 7-8 बीघा पर खेती हो पाती थी। कैलाश ने करीब 70 के दशक के दौरान सिंचाई के लिए कई प्रयोग किए, उन्होंने खेतों में वाटर व्हील लगाकर सिंचाई करना शुरू किया।

आगे चलकर उन्होंने डीजल पंप ले लिए, सिंचाई होने से फसल की पैदावार बढ़ने लगी। कैलाश ने बताया कि जब वे 1977 में गांव के सपरंच बने तो उन्होंने ज़मीनों की चकबंदी करवा ली, और 25 ट्यूबवेल में बिजली का कनेक्शन लगवा दिया। जिससे गांव के फसल दस गुना तक बढ़ गई अब वे गेहूं, सरसों और दूसरी फसलों का उत्पादन करने लगे थे।

वहीं आगे चलकर उनके गांव कोटपुतली में 1995 में कृषि विज्ञान केंद्र खोला गया, तब यहां के वैज्ञानिकों ने कैलाश चौधरी से ही संपर्क किया। जिसके बाद कैलाश चौधरी ने जैविक खेती करना शुरु किया। उनकी देखादेखी गांव के अन्य किसान भी जैविक खेती करने लगे। जो किसान पहले एग्रो-वेस्ट जैसे, धान की भूसी,पुआल जलाया करते थे, उन्होंने उसकी कम्पोस्टिंग करना आरंभ किया। कैलाश चौधरी की मानें तो पहले वे जैविक के साथ-साथ कुछ रसायनिक खाद भी उपयोग करते थे, फिर धीरे-धीरे वे पूरी तरह से जैविक खेती पर करने लगे। जिंदगी में रिस्क लेने से नहीं डरे।

एक कृषि वैज्ञानिक ने उन्हें हॉर्टिकल्चर करने को कहा तो वे तैयार हो गए। इसकी शुरुआत उन्होंने आंवले से की। स्थानीय कृषि विकास केंद्र से उन्हें 80 पेड़ आंवले के मिले जिसे उन्होंने लगवा लिया। लेकिन आंवले की फसल को कोई खरीददार नहीं मिला जिसके बाद कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर उन्होंने के आंवले की प्रोसेसिंग शुरू की। आंवले के प्रोडक्ट्स बनाना शुरू किया जिससे फायदा होने लगा।

कैलाश ने यूपी के प्रतापगढ़ से आंवले की प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग ली और पहली यूनिट का सेट-अप भी उन्हीं से लिया। फिर उन्होंने उन्होंने आंवले का जूस, पाउडर, लड्डू, कैंडी, मुरब्बा बनाना शुरू किया।

फिर उसके लिए मार्केटिंग शुरू की। इसमें उन्हें जयपुर के पंत कृषि भवन का साथ मिला, जहां उन्हें अपने प्रोडक्ट्स बेचने की अनुमति मिली। वहां उनके सभी आर्गेनिक सर्टिफाइड प्रोडक्ट्स हाथों-हाथ बिक गए। फिर क्या था लोगों ने उन्हें ‘रूरल मार्केटिंग गुरु’ का खिताब दे डाला।

उनकी सफलता के चलते उन्हें नेशनल हॉर्टिकल्चर मिशन ने राजस्थान की राज्य समिति का प्रतिनिधि नियुक्त किया। वे किसानों को जैविक खेती, हॉर्टिकल्चर और फ़ूड प्रोसेसिंग से जोड़ने के लिए मोटीवेट करते हैं।

कैलाश चौधरी किसानों के रोल माडल बन चुके हैं। उनके फार्म में हर साल करीब ढाई हज़ार से ज्यादा किसान विभिन्न संगठनों की तरफ से ट्रेनिंग लेने आते हैं। उनके सफल माडल के लिए उन्हें 125 अवॉर्ड्स से सम्मान मिल चुका है। उन्हें राष्ट्रीय सम्मान, कृषि मंत्रालय से सम्मान और कई राज्य स्तरीय सम्मान से नवाजा गया है। कैलाश चौधरी का टर्न ओवर करीब डेढ़ करोड़ रुपये सालाना है, उनका कहना है कि किसान पांच तरीकों से उन्नती कर सकते हैं, उनमें जैविक खेती, बागवानी, औषधीय खेती, प्राइमरी वैल्यू एडिशन और पशुपालन शामिल हैं।