संयुक्त राष्ट्र में भारत सरकार ने माना, गांजा खतरनाक ड्रग नहीं, अब क्या देश में भी बदलेंगे क़ानून

WHO की सिफारिश के बाद UN ने Cannabis यानी गांजे को ख़तरनाक ड्रग्स की सूची से बाहर किया, भारत ने भी प्रस्ताव के समर्थन में वोट दिया, पहले गांजे को अफीम, हेरोइन जैसे खतरनाक ड्रग्स की कैटेगरी में रखा था

Updated: Dec 04, 2020, 11:54 PM IST

Photo Courtesy: Punjab Kesari
Photo Courtesy: Punjab Kesari

संयुक्त राष्ट्र संघ ने कैनेबिस (Cannabis) या गांजे को खतरनाक ड्रग्स की कैटेगरी से बाहर कर दिया है। इसके लिए संयुक्त राष्ट्र के कमीशन ऑन नारकोटिक ड्रग्स (CND) में एक प्रस्ताव पेश किया गया, जिसे मतदान के बाद पारित किया गया। भारत ने भी गांजे को खतरनाक ड्रग्स की सूची से बाहर करने के लिए लाए गए प्रस्ताव के समर्थन में मतदान किया है। CND के 53 सदस्य देशों में से भारत समेत 27 देशों ने प्रस्ताव के समर्थन में वोट डाला, जबकि पाकिस्तान, चीन और रूस समेत 25 देशों ने प्रस्ताव के विरोध में वोट दिया। यूक्रेन ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र में पारित प्रस्ताव में कैनेबिस के रेसिन यानी चरस को भी खतरनाक ड्रग्स की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है।

माना जा रहा है कि इस फैसले के बाद अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गांजे के इस्तेमाल, खरीद-फरोख्त और ट्रांसपोर्टेशन से जुड़ी पाबंदियां पहले के मुकाबले कम हो जाएंगी। 1961 में पारित संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के तहत गांजे को भी अफीम और हेरोइन जैसे खतरनाक ड्रग्स की कैटेगरी में रखा गया था। इसकी वजह से इसके मेडिसिनल यानी चिकित्सा संबंधी इस्तेमाल में भी अड़चन होती थी। 

भारत के नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस (NDPS) एक्ट में कैनेबिस का उत्पादन, संग्रह, बिक्री, ट्रांसपोर्टेशन और इस्तेमाल दंडनीय अपराध है। इस कानून के तहत कैनेबिस के पौधे से मिलने वाले रेसिन या चरस को भी इसी श्रेणी में रखा गया है। गौरतलब है कि पिछले दिनों भारत के नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) ने सुशांत सिंह राजपूत की खुदकुशी के मामले में ड्रग्स के एंगल से जांच शुरू करने के बाद मुंबई के मनोरंजन उद्योग से जुड़े कई लोगों को गांजा रखने या उसका सेवन करने के मामले में गिरफ्त में लिया है। अब देखने वाली बात ये है कि क्या भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र में गांजे को लेकर स्टैंड लिया है, वो देश में भी कायम रहेगा और NDPS एक्ट में बदलाव करके गांजे को खतरनाक ड्रग्स की कैटेगरी से अलग किया जाएगा?  

यूएन के ऐतिहासिक फैसले के बाद दवाएं बनाने में गांजे के इस्तेमाल को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। वहीं इस पर  वैज्ञानिक रिसर्च को भी प्रोत्साहन मिल सकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के इस फैसले के बाद विभिन्न देशों में भांग और गांजे के उपयोग को लेकर उनकी पॉलिसीज में चेंज किया जा सकता है।

गौरतलब है कि लंबे समय से गांजे के मेडिकल बेनीफिट्स पर लंबे समय से विचार किया जा रहा था। विश्व के करीब 50 से अधिक देशों में दवा के रूप में गांजे की उपयोगिता को देखते हुए उसे किसी न किसी रूप में इस्तेमाल करने की छूट दी गई थी। कनाडा, उरुग्वे और अमेरिका के 15 राज्यों में इसका मेडिकल उपयोग पहले से ही कानूनी माना जाता है। भारत के कई राज्यों में कैनेबिस के पौधे की पत्तियों से बनने वाले भांग की बिक्री कानूनी तौर पर मान्य है, लेकिन उसी पौधे के फूलों और फल से बने गांजे पर रोक है। 

कैनेबिस क्या है 

कैनेबिस एक पौधा है, जिसके अलग-अलग हिस्से भारत में पारंपरिक रूप से नशे के लिए इस्तेमाल किए जाते रहे हैं। इस पौधे के पत्तों को भांग के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, जबकि फूल और फल का इस्तेमाल गांजे के रूप में होता है। पौधे से निकलने वाला रेसिन या गोंद जैसा चिपचिपा पदार्थ चरस कहा जाता है। भारत में गांजा और चरस तो पूरी तरह प्रतिबंधित है, लेकिन भांग का इस्तेमाल कई राज्यों में कानूनी तौर पर मान्य है और इसे बाकायदा सरकारी दुकानों के जरिए बेचा जाता है। भांग का इस्तेमाल सिर्फ भारत या भारतीय उप-महाद्वीप तक ही सीमित है, दुनिया के बाकी इलाकों में कैनेबिस का इस्तेमाल गांजे या चरस के रूप में ही किया जाता है।