UN Security Council: ईरान पर हथियार प्रतिबंध सीमा बढ़ाने का प्रस्ताव खारिज

Iran Embargo: चीन ने कहा कि अमेरिका की मनमानी और दादागीरी के नहीं चलने का परिचायक है प्रस्ताव का ख़ारिज होना

Updated: Aug 16, 2020, 07:38 AM IST

Pic: Tass
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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने ईरान पर लगे हथियार प्रतिबंधों की अवधि अनिश्चितकाल तक बढ़ाने के अमेरिका के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। अमेरिका को केवल डोमिनिकन गणराज्य का ही समर्थन मिला। प्रस्ताव को पारित होने के लिए कम से कम नौ देशों के समर्थन की आवश्यकता थी, अमेरिका को वह नौ वोट भी नहीं मिले। वोटिंग होने से पहले यह तो तय था कि प्रस्ताव नकार दिया जाएगा लेकिन जिस अंदाज में यह प्रस्ताव खारिज हुआ, वह काफी आश्चर्यजनक रहा। संयुक्त राष्ट्र की 15 सदस्यीय परिषद में 14 अगस्त को दो देशों ने प्रस्ताव के समर्थन और दो देशों ने उसके खिलाफ मतदान किया, जबकि 11 देश अनुपस्थित रहे।

अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने मत परिणाम की जानकारी देने के लिए सुरक्षा परिषद की संक्षिप्त डिजिटल बैठक से पहले प्रस्ताव खारिज होने की घोषणा की।

उन्होंने कहा कि प्रतिबंध की अवधि बढ़ाए जाने का समर्थन करने वाले इजराइल और छह अरब खाड़ी देश ‘‘जानते हैं कि यदि प्रतिबंधों की अवधि समाप्त हो जाती है, तो ईरान और अधिक अराजकता फैलाएगा तथा और विनाश करेगा, लेकिन सुरक्षा परिषद ने इस बात को नजरअंदाज करने का फैसला किया।’’

पोम्पिओ ने एक बयान में कहा, ‘‘अमेरिका क्षेत्र में हमारे उन मित्रों को कभी नहीं छोड़ेगा, जिन्होंने सुरक्षा परिषद से अधिक की उम्मीद की थी।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हम यह सुनिश्चित करने के लिए काम करना जारी रखेंगे कि आतंकी शासन के पास यूरोप, पश्चिम एशिया और अन्य क्षेत्र में खतरा पैदा करने वाले हथियार खरीदने और बेचने की आजादी न हों।’’

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के प्रशासन ने कई बार कहा है कि वह ईरान और छह बड़ी शक्तियों के बीच 2015 परमाणु समझौते का अनुमोदन करने वाले सुरक्षा परिषद प्रस्ताव में हथियार प्रतिबंध संबंधी उस प्रावधान को स्वीकार नहीं करेगा, जिसमें प्रतिबंध 18 अक्टूबर 2020 में समाप्त होने की बात की गई है।

ट्रम्प प्रशासन 2018 में इस समझौते से बाहर आ गया था जबकि अन्य पांच पक्ष रूस, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी अब भी इसका समर्थन करते हैं।

इस प्रस्ताव के खारिज हो जाने पर चीन के एंबेसडर ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि इस प्रस्ताव का खारिज हो जाने ने एक बार फिर से इस तथ्य को स्थापित किया है कि मनमानी और दादागीरी नहीं चलेगी।