Mani Mohan : नई कविताएँ

एमपी के गंजबासौदा में अंग्रेजी के प्रोफेसर मनि मोहन को मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा 'वागीश्वरी पुरस्कार' से नवाजा जा चुका है। ‘कस्बे का कवि एवं अन्य कविताएँ’, 'शायद’, ‘दुर्दिनों की बारिश में रंग’, ‘भेड़ियों ने कहा शुभरात्रि’ प्रकाशित काव्यव संग्रह।

Publish: Jul 14, 2020, 06:30 AM IST

जैसे छिपकली

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खतरा भांपते ही

छोड़ दिये

कुछ शब्द

 

संकट के समय

जैसे छिपकली

छोड़ देती है

अपनी पूँछ

 

बस आती ही होगी

चींटियों की फ़ौज

शब्दों की लाश उठाने।

 

शुभरात्रि

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अंधेरे के भरोसे

छोड़कर

यह रात

चलो, सोने चलते हैं . . .

शब-ब-ख़ैर।

 

धार

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एक बार और घुमा दो

दुःख का पहिया

अभी ज़िन्दगी पर

थोड़ी और

धार होना

बाकी है।

 

शिखर

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यहीं ठीक हूँ

दिख तो रहा है

यहाँ से भी शिखर -

हजार दुश्मन मिलेंगे वहाँ,

जी!

डरता हूँ

दुश्मनों से?

ना जी

शिखरों से।

 

पतझर

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पीली पत्तियां नीम की

झर रही हैं

धीरे-धीरे

 

फैलती जा रही है

तने के इर्दगिर्द

एक ज़र्द उदासी

धीरे-धीरे

 

जंगल

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एक पुराना पेड़

बार बार लौटता है

जंगल के स्वप्न में

एक उदास चिड़िया के साथ

 

चिड़िया इस स्वप्न के भीतर

अपना घोंसला ढूंढती है

और एक बार फिर

भरभरा कर गिर जाता है पेड़

जंगल की छाती पर।

 

पतझर

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एक दिन दाना पानी की तलाश में

जो निकली

तो बहुत दूर निकल गई

एक नन्ही चिड़िया

 

जब लौटी

तो बदल चुकी थी संसार की ऋतु

और धरती

अटी पड़ी थी

ज़र्द पत्तों से

 

बदहवास चिड़िया

अपना घोंसला तलाशने लगी

 

पर एक जैसे दिख रहे थे

संसार के तमाम दरख़्त

और चिड़िया

अपना दरख़्त भूल चुकी थी।

 

घर लौटना

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जरा-जरा सी बात पर

नाराज़ होकर

छोड़ते रहे घर

 

कभी दुःख से घबराकर

तो कभी इस दुःख का उत्स जानने के लिए

भागते  रहे घर से दूर

 

पर माँ की टेर की तरह

घर पुकारता रहा हर बार

 

डरते डरते

कुछ दिन और रुकने की कहता रहा

 

हमने उसे सिर्फ़ याद किया

जब बुखार से तपी हमारी देह

या कभी आधी रात के बाद

अचानक हुआ भूख का अहसास

 

हमने कभी यक़ीन ही नहीं किया

उसकी बात पर

कि आँगन में जो लगा है

नीम का दरख़्त

यही कल्पवृक्ष है

यही बोधि वृक्ष है।