Jyotiraditya Scindia: सिंधिया परिवार ने 360 करोड़ रुपए के माहोरकर बाड़े पर किया अवैध कब्ज़ा, कांग्रेस का आरोप

MP By Poll 2020: कांग्रेस का आरोप सिंधिया परिवार ने बिना अधिकार बेचा माहोरकर का बाड़ा, अवैध कब्जा कर किया निर्माण, अवैध किराया वसूली, घोटालों को लेकर कांग्रेस जाएगी सुप्रीम कोर्ट

Updated: Oct 04, 2020, 05:57 AM IST

Photo Courtesy: Livingindia news
Photo Courtesy: Livingindia news

ग्वालियर। सिंधिया परिवार ने ग्वालियर के जयेन्द्रगंज स्थित माहोरकर के बाड़ा की 8 बीघा 2 बिस्वा भूमि पर अवैध कब्जा किया है। 360 करोड़ रुपए का यह बाड़ा ग्वालियर के पूर्व राजघराने की व्यक्तिगत सम्पत्ति की सूची में शामिल नहीं है। फिर भी फर्जी दस्तावेजों के आधार पर उस पर अवैध कब्जा किया गया और अवैध निर्माण कर आज भी वहां से किराया वसूली हो रही है। उसके कुछ हिस्से को अपंजीकृत सिंधिया देवस्थान ट्रस्ट के माध्यम से बेचकर करोड़ों रूपयों की अवैध वसूली भी की गई है। प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष मुरारीलाल दुबे एवं ग्वालियर-चम्बल संभाग के मीडिया प्रमुख केके मिश्रा ने सिंधिया परिवार पर यह आरोप लगाया है।

कांग्रेस जाएगी सुप्कीम कोर्ट- केके मिश्रा

केके मिश्रा ने कहा है कि ट्रस्ट के अध्यक्ष बीजेपी सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया, उनकी मां माधवीराजे सिंधिया, पत्नी प्रियदर्शनीराजे सिंधिया, नेपाल राजपरिवार की उषाराजे राणा, सुषमा सिंह व ब्रिगेडियर नरसिंहराव पवार ट्रस्टी हैं। कांग्रेस ने कहा है कि कूटरचित दस्तावेजों के माध्यम से व राजनीतिक प्रश्रय से यह कब्जा किया गया है। कांग्रेस सिंधिया परिवार द्वारा की गई जमीनों की अरबों रूपयों की हेरा-फेरी के सभी मामलों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय जाएगी। कांग्रेस का आरोप है कि इस आपराधिक कृत्य में सरकारी अधिकारियों ने सिंधिया का सहयोग किया है। कांग्रेस की मांग है कि ऐसे अफसरों के  विरुद्ध भी भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1998 की धारा-13(1).(डी), धारा-467, 468, 471 और 420 के तहत प्रकरण दर्ज किया जाए।  

45 साल पहले कलेक्टर कोर्ट ने माहोरकर के बाड़े को सरकारी संपत्ति घोषित किया था

कांग्रेस नेताओं ने कहा है कि इनवेन्टरी की सूची 1 में जयविलास पैलेस की जो बाउन्ड्री स्पष्ट की गई है, उसमें माहोरकर का बाड़ा शामिल नहीं है। पैलेस के बाहर भवन क्रमांक 642 बाड़े के नम्बर के रूप में अंकित है। उपलब्ध रिकाॅर्ड के अनुसार ग्वालियर गर्वमेंट ने 76,000 रूपये में सरकारी खज़ाने से भुगतान कर लिखतम (लिखापढ़ी) क्र.-715/1918 की कार्रवाई करवाई थी। जिसका कब्जा पी.डब्ल्यू.डी. के प्रशासनिक अधिकारी द्वारा लिया गया और ग्वालियर गर्वमेंट के जानवरी कारखाने के रूप में इसे शामिल कर लिया गया था। इस लिहाज से यह बाड़ा मध्य-भारत, उसके बाद मध्य-प्रदेश और बाद में नगर निगम की संपत्ति में शामिल हो गया। ग्वालियर राजघराने ने कूटरचित दस्तावेज बनाकर अपने अपंजीकृत देवस्थान ट्रस्ट में 10 मार्च, 1969 को इसे रजिस्टर्ड भी करवा लिया, यह कैसे संभव हुआ?  22 दिसम्बर, 1964 से अवैध रूप से अधिपत्य में ली गई इस संपत्ति से किराया वसूली भी प्रारम्भ कर दी गई, जो पूर्णतः अवैधानिक थी। 

माहोरकर का बाड़ा नगरनिगम की संपत्ति है

कांग्रेस नेताओं का आरोप है कि देवस्थान ट्रस्ट ने नगर निगम अधिकारियों की मिलीभगत से इसका नामांतरण भी करवा लिया, जिसे 6 दिसम्बर, 1975 को तत्कालीन नगर निगम आयुक्त ने निरस्त कर दिया था। इस बाड़े में रह रहे किरायेदारों से 1 सितम्बर 1948 से स्व. जीवाजी राव सिंधिया व विजयाराजे सिंधिया द्वारा अनाधिकृत रूप से किराया वसूला जा रहा है। तत्कालीन कलेक्टर ने इसे शासकीय संपत्ति बताते हुए सिंधिया परिवार के किसी भी सदस्य को किसी भी प्रकार का किराया नहीं देने का निर्देश दिया था। इसके बावजूद ट्रस्ट का  आज भी  कब्जा कायम है और किराया वसूली भी जारी है। 

उपचुनाव में जनता के मन पर असर के आसार

मध्य प्रदेश में हो रहे उपचुनावों के मद्देनजर सिंधिया परिवार पर लगाए गए इस आरोप का असर चुनावी लिहाज से महत्वपूर्ण हो सकता है। क्योंकि इन उपचुनावों में सबसे ज्यादा सीटें सिंधिया के प्रभाव वाले इलाकों की ही हैं। वजह भी सिंधिया और उनके वफादारों के दल बदलना ही रहा है। कांग्रेस इन मुद्दों को जनता के बीच ले जाकर सिंधिया का चेहरा उजागर करना चाहती है। लेकिन बीजेपी में गए सिंधिया और उनके समर्थन वाले विधायक अब मंत्री हैं और ताल ठोंककर कह रहे हैं कि सरकार तो हमारी ही बनेगी। फिलहाल जनता का मत दांव पर है।