खरगोन: बीमा विवाद में 13 वर्षों बाद मिला किसानों को न्याय, बैंक और बीमा कंपनी करेगी लाखों रुपए का भुगतान

किसानों के समूह बीमा को लेकर एक लंबे समय से चल रहे विवाद का अंत हुआ, जब राज्य उपभोक्ता आयोग ने सहकारी बैंक और बीमा कंपनी को किसानों को बीमा राशि और वाद व्यय के तौर पर एक-एक लाख रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया।

Updated: Nov 05, 2024, 06:45 PM IST

खरगोन| किसानों के समूह बीमा को लेकर एक लंबे समय से चल रहे विवाद का अंत हुआ, जब राज्य उपभोक्ता आयोग ने सहकारी बैंक और बीमा कंपनी को किसानों को बीमा राशि और वाद व्यय के तौर पर एक-एक लाख रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया। यह निर्णय 26 किसानों के उस संघर्ष का परिणाम है, जो 13 वर्षों से बीमा का दावा पाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे।

अधिवक्ता मोना पालीवाल के अनुसार, वर्ष 2006-07 में खरगोन के जिला सहकारी बैंक ने कृषक समूह बीमा योजना के तहत बैंक से कर्ज लेने वाले किसानों का बीमा किया था। बैंक ने इन किसानों के खाते से 563 रुपये का प्रीमियम काटा और बीमा पॉलिसी की सुविधा दी, जो ऑटो रिन्युअल पॉलिसी थी। इस योजना में प्रावधान था कि यदि 18 से 59 वर्ष की उम्र के बीच का कोई बीमित किसान इस दौरान मृत्यु को प्राप्त हो जाता है, तो उसके नामित व्यक्ति को 75 हजार रुपये की बीमा राशि दी जाएगी।

2007 में भीकनगांव के सेल्दा गांव के किसान रामलाल यादव की मृत्यु के बाद उनके परिवार ने बैंक से बीमा राशि का दावा किया, लेकिन बैंक ने भुगतान नहीं किया। इसी तरह, कई और किसानों की मृत्यु के बाद भी उनके परिवारों को बीमा राशि नहीं मिल सकी। 2011 में मृत किसानों के वारिसों ने जिला उपभोक्ता आयोग में इस दावे के लिए मामला दर्ज किया।

दावा प्रस्तुत करने के वर्षों बाद 2023 में, जिला उपभोक्ता आयोग ने किसानों का दावा खारिज कर दिया। आयोग के अनुसार, बैंक ने बीमा कंपनी को दावा करने योग्य किसानों का प्रीमियम भेजा ही नहीं था, इसलिए इन किसानों को बीमित नहीं माना जा सकता। आयोग ने यह भी कहा कि बैंक ने कुछ किसानों को आयु सीमा से बाहर करार देते हुए उन्हें अपात्र माना था और इस पर किसानों ने कोई आपत्ति नहीं जताई थी।

किसानों ने इस निर्णय के खिलाफ राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील की। इस बार किसानों की ओर से कई दस्तावेजी सबूत प्रस्तुत किए गए, जिससे उनका पक्ष मजबूत हुआ। इन सबूतों में एक पत्र भी शामिल था, जिसे बैंक ने 2008 में बीमा कंपनी को लिखकर लंबित दावों के निपटारे का अनुरोध किया था। इस पत्र में 52 किसानों की सूची थी जिनके दावे लंबित थे। इसके अलावा, किसानों ने प्रीमियम काटे जाने की रसीदें, बैंक के साथ पत्राचार, और मृत्यु प्रमाणपत्र भी प्रस्तुत किए, जो इस बात का प्रमाण थे कि बैंक ने बीमा पॉलिसी की औपचारिकताएं पूरी की थीं।

राज्य उपभोक्ता आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष ए.के. तिवारी और सदस्य श्रीकांत पांडेय ने मामले की सुनवाई के बाद जिला उपभोक्ता आयोग के आदेश को अमान्य कर दिया और किसानों के पक्ष में फैसला सुनाया। आयोग ने सहकारी बैंक और बीमा कंपनी को आदेश दिया कि वे प्रत्येक किसान को बीमा राशि के रूप में एक-एक लाख रुपये और वाद व्यय का भुगतान करें। साथ ही, ऋण के रूप में ली गई राशि 7500 रुपये को चार प्रतिशत ब्याज के साथ दो महीने के भीतर वापस करने का भी निर्देश दिया।

इस फैसले ने 13 वर्षों से इंतजार कर रहे किसानों और उनके परिवारों को राहत दी है, जिन्होंने बैंक और बीमा कंपनी के खिलाफ अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ी। यह निर्णय भविष्य में बीमा दावों के भुगतान में पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्व को भी रेखांकित करता है, ताकि किसानों को इस प्रकार की कठिनाइयों का सामना न करना पड़े।