बुरहानपुर: जो नारा कभी लगा ही नहीं, 6 साल तक लड़ते रहे उसकी लड़ाई

बुरहानपुर के 19 मुसलमानों को छह साल बाद मिला न्याय, जब कोर्ट में झूठा साबित हुआ पुलिस केस

Updated: Mar 20, 2024, 07:09 PM IST

बुरहानपुर। "मोहद गांव" मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 350 KM दूर बुरहानपुर ज़िले का एक दलित, आदिवासियों और आदिवासी से मुस्लिम बने तड़वी मुसलमानों का एक गांव है।

बुरहानपुर शहर से 20 KM दक्षिण की तरफ़ स्थित मोहद गांव की आबादी लगभग चार हज़ार है जहां पक्के घर कम और छोटे मिट्टी और टीन शेड के घर ज़्यादा देखने को मिलते हैं। कम साक्षरता वाले इस गांव में ज्यादातर लोग या तो छोटे किसान हैं या फ़िर मजदूर जिनका घर सरकारी राशन से चलता है।

विकास की राह देख रहा मोहद गांव जून 2017 में एक अफ़वाह की वजह से उस वक्त सुर्खियों में आया जब आईसीसी चैंपियन्स ट्रॉफी के फाइनल मैच में पकिस्तान क्रिकेट टीम ने इंडियन क्रिकेट टीम को शिकस्त दी। अफ़वाह फैलाई गई कि पाकिस्तान की जीत पर इस गांव में जश्न मनाए गए और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे भी लगे। 

तब आज की तरह ना मोबाइल का चलन इतना था ना ही वायरल वीडियो का। लिहाज़ा, जब इस अफ़वाह ने तूल पकड़ा तब बुरहानपुर के शाहपुर थाने में इस गांव के 17 वयस्क मुस्लिमों और दो नाबालिगों पर आईपीसी की धारा 124 – A (देशद्रोह), 120 – B, और (आपराधिक षडयंत्र) के तहत FIR दर्ज़ की गई।
अभी के दौर से इतर, यह इस तरह का नया मामला था तो मीडिया ने इसे ख़ूब तूल दिया। हालांकि, घटना का कोई ना वीडियो सामने आया था और ना ही कोई मज़बूत गवाह। पुलिस ने गांव के ही एक दलित व्यक्ति सुभाष कोली को शिकायतकर्ता बता कर FIR दर्ज़ कर सबको गिरफ़्तार कर लिया।

यह घटना 23 रमज़ान को हुई जब सब रोज़े में थे। सारे आरोपियों को बुरहानपुर से सटे खंडवा ज़िले के सेंट्रल जेल भेजा गया जहां अधिकांश आरोपी एक हफ़्ते से ज्यादा समय तक जेल में रहे और ईद जेल में बीती।

इधर टीवी/मीडिया ने इन आरोपियों और उनके परिवारवालों को आतंकवादी घोषित कर दिया। मोहद गांव, बुरहानपुर ज़िला और यहां के पूरे मुस्लिम समाज को कई उपमाएं दी गई थीं।

मीडिया ट्रायल के दौरान तो यहां तक पोल करा लिए गए थे की आरोपियों को फांसी दी जाए या उम्रकैद !
ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि मध्य प्रदेश के महाराष्ट्र से सटे बुरहानपुर में मुस्लिमों की खासी आबादी है। जो मुग़लकाल में समृद्ध शहरों में गिना जाता था जहां मुग़ल बादशाह औरंगजेब ने अपने जीवन के कई वर्ष गुजारे। इसकी झलक आज भी बुरहानपुर शहर की दीवारों, रहन सहन और खान पान में देखी जा सकती हैं।

मुस्लिम समुदाय को टारगेट करने का इससे बेहतर मौक़ा मीडिया को नहीं मिल सकता था। इसलिए सब ने बिना सच्चाई जाने अपने-अपने हिस्से की नफ़रत इनके खिलाफ़ फैलाई।

बहरहाल, घटना के दो हफ़्ते के अंदर सभी को जमानत तो मिल गई पर हर हफ़्ते उन्हें थाने में हाजिरी लगाने के निर्देश थे और हर दो से तीन हफ़्ते में उन्हें पेशी के लिए 20 KM दूर बुरहानपुर ज़िला कोर्ट जाना पड़ता था। थाने में हाजिरी के दिन उन्हें कथित तौर पर जलील किया जाता था। दाढ़ी पकड़ कर मारा जाता था और पेट्रोल डाल कर आग लगाने की धमकी दी जाती थी।

यह लगभग हर हफ़्ते अनके साथ होता था। हाजिरी के आलावा जब ये लोग पेशी के लिए कोर्ट जाते तो वकील नारे लगाते, “देश के गद्दारों को, गोली मारो सालों को”। कई बार हाथा पाई भी हुई। 

सब पर परिवार की जिम्मेदारी थी पर हर हफ्ते हाजिरी के कारण वह ना तो बाहर कमाने जा सकते थे और ना ही उन्हें गांव में काम मिलता। इस घटना के बाद उन्हें कोई काम पर रखना भी नहीं चाहता था और रिश्तेदारों ने भी किनाराकशी कर ली थी।

नतीजतन, हालात बिगड़ते चले गए और सभी कर्ज़ और उधार लेकर परिवार का पेट पालने लगे और अपने उपर लगे झूठे मुकदमे को गलत साबित करने की जद्दोजहद कर रहे थे।

रोज़मर्रा की झंझट, कर्ज़ का बोझ और कोर्ट की जद्दोजहद से तंग आकर एक आरोपी रुबाब नवाब (40) ने फरवरी 2019 को ज़हर पीकर इस दुनियां को अलविदा कह दिया। वह अपने पीछे एक बेसहारा बीवी और 12 और 6 साल के दो बेटे शोएब और वसीम छोड़ गए।

लगभग 6 साल बाद यानी अक्तूबर 2023 को बुरहानपुर कोर्ट ने इस मामले पर फ़ैसला दिया और सभी को बरी कर दिया। 

बरी करने के पीछे की वजह चौंकाने वाली है। दरअसल, शिकायतकर्ता सुभाष कोली और 12 गवाहों ने कोर्ट में FIR के इतर बयान दिया। सबने कोर्ट में पुलिस पर फर्जी FIR करने और बेगुनाह मुस्लिमों को फंसाने का आरोप लगाया।
मुख्य शिकायतकर्ता सुभाष कोली ने तो कोर्ट में हलफनामा देकर यह बताया था कि उसने कभी FIR दर्ज़ करवाई ही नहीं। ठीक ऐसे ही 12 गवाहों ने भी इस घटना से इनकार किया और पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए।

कोर्ट ने सभी को बरी तो कर दिया पर फर्जी मुकदमा लिखने और सिर्फ़ उनके धर्म के आधार पर उन्हें प्रताड़ित करने वाले ज़िम्मेदार अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

कोर्ट का फ़ैसला आने के कुछ माह पहले मुख्य शिकायतकर्ता सुभाष कोली की कैंसर से मौत हो गई। उसे याद करते हुए गांव के लोग कहते हैं कि वह दलित होते हुए हिंदू-मुस्लिम एकता का पैरवीकार था पर अफ़सोस वह फ़ैसला आने तक जीवित नहीं रह पाया।

उसकी मौत के बाद उसके परिवार का कोई भी पुरसाहाल नहीं है। घर में पत्नी और बहन है जिसे लोग पागल (दिमागी रूप से कमज़ोर) करार दे चुके हैं और समाज से लगभग बेदखल कर दिया है।

कोर्ट में पीड़ितों का पक्ष रख रहे वकील शोएब कहते हैं कि यह पूरा केस राजनीति उद्देश्य की प्राप्ति के लिए बनाया गया था। मध्य प्रदेश में चुनाव से पहले धर्म विशेष के लोगों को टारगेट किया जाता है ताकि ध्रुवीकरण किया जा सके। 2018 विधानसभा चुनाव से पहले मोहद गांव के लोग इसके शिकार बने। कोर्ट में हमने उनका पक्ष रखा। जो सच्चाई थी उसे बताया। मुख्य शिकायतकर्ता से लेकर सभी गवाहों ने कहा कि एफआईआर झूठी है। इस आधार पर कोर्ट ने अपना निर्णय दिया। 

शोएब पुलिस के रवैए को लेकर कहते हैं कि पुलिस भी दबाव में होती है। राजनीतिक दबाव के कारण पुलिस गरीब अल्पसंख्यकों को टारगेट करती है।

मध्य प्रदेश में लगभग 8% मुस्लिम आबादी है पर 2017 में यह मध्य प्रदेश का शायद पहला मामला था जब मुस्लिमों पर पकिस्तान समर्थक होने का मामला दर्ज हुआ।

इसके बाद मध्य प्रदेश में इस तरह की घटनाओं का सिलसिला शुरू हो गया और लगभग एक दर्जन मामले सामने आए। उज्जैन, शाजापुर, कटनी सहित कई जिलों में यह घटनाएं देखने को मिली और लगभग सभी मामले कोर्ट में पहुंचते ही मुंह के बल गिर पड़े।

रुबाब ने आत्महत्या क्यों की?

मोहद गांव पहुंचने के लिए बुरहानपुर से कोई पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सुविधा नहीं है। सुबह करीब 11 बजे जब हम गांव पहुंचे तो सबसे पहले रुबाब नवाब के घर जाने की इच्छा हुई। उनकी पत्नी जुबैदा बाई (40) उस वक्त घर के बाहर एक बाल्टी में पानी और कुछ गंदे बर्तन लेकर बैठी थीं। बर्तन में लगी कालिख को धूल रहीं जुबैदा से जब उस दिन के बारे में पुछा तो बर्तन घिसने की घिर-घिर आवाज रुक गई।

मैं वहीं उनके बराबर बैठ गया। वह अनजान इंसान देख कर घबराई हुई थीं पर गांव का एक युवक साथ होने की वजह से उन्होंने थोड़ा भरोसा दिखाया। कालिख लगा हाथ धो कर उन्होंने अपने पल्लू में पोछा और सिर पर आंचल रखते हुए वह कहने लगीं कि अफवाह फैलने के कुछ देर बार दो पुलिस वाले घर में आ घुसे।

उन्होंने नाम पूछा और मुस्लिम नाम सुनते ही गाली-गलौज शुरु कर दी। वे धर्म सूचक गलियां दे रहे थे और उन्हें (पति) मारने लगे। 12 साल का शोएब और 6 साल का वसीम पिता को पीटता देख रोने लगे। मैं उन्हें गोदी में उठा कर चुप कराने लगी। तब उन्होंने मुझे और मेरे बच्चें को गाली देते हुए देशद्रोही का औलाद तक कहा।
 
वह कहती हैं कि मैंने पुलिस से लाख मिन्नतें की कि हमारे शौहर बेगुनाह हैं, पर पुलिस नहीं मानी और लगातार पीटती रही। जब वह ज़मीन पर गिर गए तो उन्हें जानवरों की तरह घसीटकर ले गए।

रमज़ान का महीना था पुलिस ने मेरे पति को दो दिन तक थाने में रखा यातनाएं दी, फिर खंडवा जेल भेज दिया। जमानत पर वे जब बाहर आए तो हर रविवार थाने जाकर वे हाजिरी लगाते थे।

आज भी जब मैं वह मंजर सोचती हूं तो कांप उठती हूं, यह कह कर उन्होंने अपने पल्लू से अपने डबडबाते हुए आंख पोछे। एक बीवी और एक मां की बेबसी देख मुझे बेचैनी हो रही थी। मैं उन्हें चुपचाप सुनता रहा।

वह आगे कहती हैं हमारे पति ने पहले ही कर्ज़ ले रखा था। कोर्ट केस और बाहर ना जाने की पाबंदी कि वजह से कर्ज़ बढ़ता चला गया।

जिंदगी जहन्नुम हो गई थी लेकिन मैंने हमेशा अपने पति का ढांढस बांधा। मैं हमेशा कहती रही कि सच की जीत होगी और वे जल्द बरी हो जाएंगे लेकिन एक दिन वे इन सबसे थक गए और फरवरी 2019 में कीटनाशक पीकर अपनी जान दे दी। रूबाब नवाब की पत्नी जुबैदा बाई

उन पर क्या बीती, वह तो मैं भी नहीं बता सकती। अब उनके जाने के बाद से कर्जदार हमारे पीछे पड़े हुए हैं। हमारे ऊपर अब भी दो लाख का कर्ज़ है।
अब शोएब बालिग हो चुका है, पिता की मौत के बाद वह पढ़ाई छोड़कर मजदूरी करने लगा है। वहीं, उसका छोटा भाई वसीम ने पढ़ाई छोड़ दी।

पुलिस ने FIR में क्या लिखा?

19 जून 2017 को बुरहानपुर के शाहपुर थाने में दर्ज हुई एफआईआर के मुताबिक, 18 जून को आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी मैच के दौरान जब भारत का तीसरा विकेट गिरा तो आरोपियों ने कहा की आज तो पाकिस्तान ही जीतेगा। 

पांचवा विकेट गिरा तो वे गांव के चौराहे पर पहुंच गए। सभी के हाथों में पटाखे थे। थोड़ी देर में भारत मैच हार गया और जैसे ही भारत की हार हुई वे चौराहे पर वे एक-दूसरे को मिठाई खिलाने लगे। लोगों ने वहां पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए और आतिशबाजी भी की।

बता दें कि आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी का फाइनल मुकाबला 18 जून 2017 को खेला गया था, जिसमें पाकिस्तान के 339 रन का पीछा करने उतरी भारतीय टीम 30.3 ओवर में ही ढेर हो गई थी। भारतीय टीम महज 158 रन ही बना सकी थी। तब बुरहानपुर के इस गांव में पाकिस्तान की जीत पर जश्न मनाने और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगने की खबर पूरी मीडिया ने खूब उछाला था।

ख़ैर, पुलिस ने सबको गिरफ्तार कर जेल भेज दिया और ख़ूब तालियां बटोरीं। FIR में 12 चश्मदीद गवाहों के नाम भी डाल दिए।

लेकिन शिकायतकर्ता कोली ने मृत्यु से पहले मीडिया और कोर्ट में कई बार कहा कि उसने कोई शिकायत की ही नहीं थी यह सब पुलिस का किया धरा है।
शिकायतकर्ता सुभाष कोली गांव का ही रहने वाला था, जिसकी पिछले साल ही कैंसर से मौत हो गई।
डिश एंटीना ठीक कर जीवनयापन करने वाले कोली ने कोर्ट में हलफनामा देकर कहा था कि पुलिस ने उससे गलत बयान लेकर गांव के लोगों के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज कर लिया, जबकि वह उस दिन गांव में मौजूद ही नहीं था। 

कोली का कहना था कि यदि उसका मोबाइल लोकेशन देखा जाएगा तो साफ हो जाएगा कि शिकायत के वक्त वह गांव में था ही नहीं। उसने हलफनामे में बताया कि वह एक पड़ोसी की मदद करने के लिए थाने पहुंचा था, जिसे नारे लगाने के आरोप में पुलिस उठा ले गई थी।

पुलिस की बर्बरता

गांव के ही एक और गवाह करण सिंह ने बताया कि अफ़वाह के बाद पुलिस गांव में आई और लोगों को घरों से उठाकर मारपीट कर थाने ले जाने लगी। वह बताते हैं कि घटना के तीन दिन बाद तक पुलिस गांव में आती रही और जिन मुस्लिमों के घर में भी मर्द दिख जाता उन्हें उठा ले जाते। 

इस डर से गांव के कई लोग लगभग एक हफ़्ते तक गांव से 500 मीटर की दूरी पर मौजूद पहाड़ी में छिपे रहे। ऐसे में पुलिस आती भी तो महिलाओं को देख गाली गलौज कर चली जाती। गांव के पास स्थित पहाड़ी

ग्रामीणों ने बताया कि मुस्लिमों के साथ साथ पुलिस ने गांव के करीब एक दर्जन हिंदुओं को भी उठाया था। जिन लोगों का घर सड़क किनारे था वह पुलिस की जद में आ गए। मुस्लिमों को आरोपी तो हिंदुओं को गवाह बना दिया गया।

इसी जद में 32 साल के इमाम तड़वी भी आ गए। इमाम का नाम उन 17 लोगों में था जिन्हें पुलिस ने आरोपी बनाया था। हालांकि, मजदूरी कर टीन शेड के घर में अपना गुजर बसर करने वाले इमाम के घर में तब भी टीवी अथवा एंड्रॉयड फोन नहीं थी और आज भी नहीं है। उनके घर की कल्पना आप शहरों में बने टीन की झुग्गियों से कर सकते है। इमाम और उनका घर

जब हम उनके घर पहुंचे तो वह अपना घर दिखाने लगे। इमाम कहते है मुझे ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था की पुलिस उन्हें क्यों गिरफ्तार कर रही है। ना मेरे घर में टीवी है और ना ही क्रिकेट मैच में मेरी कोई रूचि। मुझे तो जेल जानें के बाद पता चला की क्यों गिरफ़्तार किया गया है।

जिनके घर में टीवी है रमज़ान की वजह से उन घरों में टीवी बंद था क्योंकि रमज़ान में यहां लोग टीवी नहीं देखते।

उन्होंने बताया कि वह मजदूरी से लौट कर इफ्तार कर घर के बाहर बच्ची के साथ खड़े थे उन्हें क्रिकेट मैच और उसके बाद फैले अफ़वाह की ज़रा भी भनक नहीं थी। लेकिन पुलिस ने उन पर भी आरोप लगाया कि उन्होंने पाकिस्तान की जीत पर पटाखे फोड़ और जिंदाबाद के नारे लगाए।

इमाम बताते हैं कि पुलिस ने उन्हें दो दिन थाने में रखा उसके बाद उन्हें जेल भेज गया। आठ दिन उन्होंने जेल में बिताई।

उस दिन को याद करते हुए वह अपनी 9 साल की बेटी जैनब को बुलाकर उसके चेहरे पर लगी चोट के निशान हमें दिखाते हैं। इमाम की बेटी जैनब

इमाम बताते हैं कि 18 जून की रात मैं जैनब को गोद में लेकर घर के बाहर खड़ा था। जैनब उस वक्त ढाई साल की थी। तभी कुछ पुलिस वाले आए और उन्होंने नाम पूछा। मैंने जैसे ही अपना नाम इमाम तड़वी बताया वैसे ही उन्होंने जैनब को झटककर गिरा दिया और मेरी गर्दन पकड़ ली।

मुझे आतंकवादी कहते हुए वह मारने लगे। गोद से मुंह के बल नीचे गिरने से जैनब के नाक पर चोट लग गई, उसके नाक से खून बह रहा था, वह रो रही थी लेकिन पुलिस को दया तक नहीं आई। मैं उठाने गया तो वे मुझ पर टूट पड़े। बाद में पता चला कि जैनब का हाथ भी टूट गया था। 

बकौल इमाम थाने में पुलिस ने उनसे पूछा कि तू नमक किसका खाता है, मैंने कहा कि मैं अपने घर का ही नमक खाता हूं। मैंने कुछ नहीं किया किसी का नमक नहीं खाया। तो बहुत देर तक उनकी पिटाई की गई।

इमाम के पास जमीन नहीं है। वह मजदूरी कर 200 रुपए रोज़ कमाते हैं। हफ्ते में उन्हें रोज काम भी नहीं मिल पाता। इमाम पर मुकदमे के कारण 1.12 लाख़ का कर्ज हो गया है। उनका कहना है कि वह दो-तीन साल में सारा कर्ज चुका देंगे।

वे कहते हैं “हमारे पास खाने के रुपए नहीं हैं, टीवी पर मैच देखकर पटाखे छोड़ने की हैसियत किसे है।“
पुलिस को बताया पैर टूटा है, तो पुलिस ने वहीं लाठी मारी
इमाम से बात चीत करते-करते वाहन कुछ लोग जमा हो गए। उसी भीड़ में सरफराज (38) भी मौजूद थे इन्हें भी आरोपी बनाया गया था।

जब हम सरफराज की तरफ़ मुखातिब हुए तो सरफराज ने बताया कि 18 जून की रात पुुलिस को जो मिला, पुलिस उसे उठा ले गई। पुलिस ने मुस्लिमों को आरोपी और हिंदुओं को गवाह बना दिया। 
सरफराज इंटरमीडिएट पास हैं इसलिए अन्य आरोपियों के मुकाबले वे पढ़े-लिखे थे। पुलिस को गांववालों और महिलाओं के साथ मारपीट करते देख सरफराज खुद को रोक नहीं पाए।

उन्होंने कहा कि पुलिस वाले महिलाओं के साथ गाली-गलौज करते थे, अभद्रता करते थे और घर के मर्दों की जानकारी मांगते। जब वह पुलिस को समझाने गए तो पुलिस ने उन्हें भी पकड़कर पीटना शुरू कर दिया।
जब उन्होंने पुलिसकर्मियों को बताया कि उनके पैर में फ्रैक्चर है मत मारिए तो उन्होंने उसी पैर पर बारह लाठियां मारी। वे कहते हैं, “मेरा पूरा पैर सूज गया था। ठीक से सो भी नहीं पाता था। जेल से बाहर आने के बाद दो महीने तक मैं चल नहीं पता था।“

उसी भीड़ में जुबैर तड़वी भी मौजूद था। इस फर्जी FIR में बड़ों के साथ साथ दो नाबालिगों को भी आरोपी बनाया गया। जुबैर उनमें से एक था।
2017 में जुबैर 15 साल का था जब पुलिस उसे उठा ले गई। दो दिन तक मारपीट की और उन्हें जमानत मिल गई। जुबैर तब 9वीं का छात्र था। केस दर्ज होने के बाद स्कूल में सब उसे आतंकवादी बुलाते थे। केस लड़ने के लिए पैसा भी चहिए था जो पढ़ाई लिखाई से नहीं मिल सकता था।

वह मजदूरी कर उसे चुकाने में लग गया। हर हफ्ते हाजिरी लगाने थाने जाना होता था फिर हर पेशी में भी 500 रुपए खर्च होता था। इसलिए 15 साल की उम्र में ही उसने मजदूरी शुरू कर दी। 

तड़वी फिलहाल इंदौर के एक दरगाह में नौकरी करता है। उसे ₹8000 तनख्वाह मिलती है। जुबैर का कहना है कि अगर उस वक्त पढ़ाई नहीं छूटती तो उनके पास आज कोई अच्छी नौकरी होती। जुबैर के अलावा पुलिस ने मुबारक मुशरफ को भी गिरफ्तार किया था, वह भी नाबालिग था।

इस घटना को लेकर कोऑर्डिएनेशन कमेटी फॉर इंडियन मुस्लिम्स के सेक्रेट्री मसूद अहमद खान कहते हैं कि मध्य प्रदेश में मुस्लिमों और आदिवासियों के प्रति पुलिस का रवैया हमेशा खराब रही है। मोहद गांव का जो मामला है ऐसे केस में कोर्ट को पुलिस के खिलाफ एक्शन लेना चाहिए। हम और किसी से उम्मीद भी नहीं कर सकते। 

पुलिस द्वारा मुस्लिमों को क्यों टारगेट किया जाता है इस सवाल के जवाब मसूद अहमद कहते हैं कि आज मीडिया जो काम कर रही है उसका असर सभी के दिमाग पर हो रहा है और पुलिस भी इससे अछूती नहीं है। आप देखिए मीडिया का प्रभाव वकीलों पर भी पड़ रहा है। इस केस में वकील नारेबाजी करते थे। कोर्ट को ऐसे वकीलों को चिन्हित कर बार काउंसिल को निर्देश देना चाहिए की उनका रजिस्ट्रेशन कैंसिल किया जाए।

इमाम के घर के सामने ही 60 वर्षीय रमजान सरदार का मिट्टी का घर है। वे आज भी ठंडी-गर्मी-बारिश की परवाह किए बगैर सुबह उठकर मजदूरी करने चले जाते हैं। वह कहते है इस केस को लड़ने के लिए कर्ज़ लेना पड़ा आज उन पर ₹1.5 लाख रुपए का कर्ज है। इमाम से हमें बात करता देख वह भी आ गए थे और अपनी आप बीती सुनाने लगे। रमजान सरदार और उनका घर

घटना को याद करते हुए रमजान तत्कालीन शाहपुर थाना प्रभारी संजय पाठक को कोसते हैं। वे कहते हैं कि पाठक घर में घुसकर महिलाओं के साथ गाली गलौज करता था। लड़कों को थाने में उसने हर तरह की यातनाएं दी। 

मुझे जूते पहनकर लात से मारते थे। मेरी दाढ़ी खींचकर आतंकवादी बोलते थे। थाने में 24 घंटे भूखा रखा गया। थाने में चाय देने आने वाला आदमी भी उन्हें आतंकवादी कहते हुए उन्हें लात मारकर जाता था। 

रमजान को दो महीने बाद 16 अगस्त को पुलिस गांव से उठा ले गई थी। जबकि इससे पहले अन्य आरोपी जमानत पर छूट चुके थे। एक पूरा दिन थाने में रखने के बाद अगले दिन उन्हें कोर्ट ले जाया गया जहां से उन्हें जमानत मिल गई।

ज़मानत के बाद हर हफ़्ते थाने जा कर हाजिरी लगाना और जिल्लत उठाना। फ़िर कोर्ट में हर 15 दिन में उनकी पेशी होती थी।

अपनी माली हालत बयान करते हुए वह कहते है हर पेशी में बुरहानपुर जाना होता था। ₹300 रुपए वकील और पेट्रोल का खर्च जोड़कर ₹500 लग जाते थे। वे मजदूरी कर किसी तरह पांच सौ जोड़ते थे, जो पेशी में खर्च हो जाता था। कई-कई बार कर्ज लेकर भी पेशी में जाना पड़ा, जिस वजह से 1.5 लाख का कर्ज हो गया।

छह साल के संघर्ष के बाद भले ही मैं बेगुनाह साबित हो गया, लेकिन न्याय की प्रक्रिया में उन्होंने जो कर्ज लिया उसे चुकाने में पांच साल और लग जाएंगे।

रमजान का हाल देख न्याय की पहुंच से आम आदमी की दूरी को आसानी से समझा जा सकता है। वे बताते हैं कि जमानत के बाद उन्हें हर रविवार एक साल तक शाहपुर थाना जाना होता था। वहां उनके साथ अभद्रता की जाती थी। गुस्सा आता था लेकिन एक बेबस आखिर कर ही क्या सकता है।

हालांकि, शहपुरा थाना के तत्कालीन प्रभारी संजय पाठक ग्रामीणों के आरोपों को सिरे से खारिज करते हैं। संजय पाठक ने हम समवेत से बातचीत के दौरान कहा कि थाने में रखने के बाद उनकी मेडिकल भी कराई गई थी। यदि मारपीट होती तो शरीर पर चोट के निशान होते। मेडिकल रिपोर्ट में ये बात सामने क्यों नहीं है। उन्हें मजिस्ट्रेट के पास भी पेश किया गया था, उस दौरान क्यों नहीं ये बात कही? मारपीट की बात उनके वकील भी कोर्ट में कह सकते थे। लेकिन तब तो किसी ने ऐसा कुछ नहीं कहा।

इमाम तड़वी कहते हैं कि संजय पाठक साफ झूठ बोल रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि उन्हें मेडिकल कराए बगैर खंडवा जेल भेज दिया गया था।

मोहद गांव में हम शेख मुकद्दर के घर भी गए। उन्हें भी आरोपी बनाया गया था। उनके दो बच्चे और पत्नी हैं। वे अपनी एक एकड़ जमीन पर खेती कर जीवनयापन करते हैं।

उन्हें तारीख तो नहीं याद थी लेकिन वह बताते हैं कि 23 वें रोजे के दिन उन्हें पुलिस उठाकर ले गई थी। उन्हें तीन दिन थाने में रखा और टॉर्चर किया गया। कोई कहता था पेट्रोल डालकर जला दो तो कोई फांसी देने की धमकी देता था।

खंडवा जेल में जो बदसलूकी हुई, ईद का दिन जेल में भूखे पेट गुजरा वो अलग इधर बीवी और बच्चों ने सुखी रोटी खाकर ईद मनाई।

खंडवा जेल का मंज़र याद करते हुए मुकद्दर बताते हैं कि उन्हें वहां आंतकी बुलाया जाता था। वे बताते हैं कि जेल में पहले दिन कैदियों और पुलिस वालों द्वारा मारपीट भी की गई। हमसे हर दिन टॉयलेट साफ कराया जाता था। हमारे साथ गए लोग ही पानी भरने से लेकर, साफ सफाई, टॉयलेट साफ करने जैसे काम करते थे। 

जेल में उन्हें ऐसे सुलाया जाता था कि वे करवट भी नहीं बदल सकें।

जब उनपर देशद्रोह का आरोप लगा तब उनके पिता सिकंदर की तबीयत बिगड़ गई। पिता ने सदमे से खाना छोड़ दिया और बीमार होते चले गए। नवंबर 2021 को वे इस दुनियां से रुखसत हो गए। मुकद्दर को इस बात का अफसोस है कि वालिद के ज़िंदा रहते वे बरी नहीं हो सके।

क्रिमिनल लॉयर निकिता सोनवाने कहती हैं कि यह कॉमन हो गया है कि पुलिस जबरन आम आदमी को शिकायतकर्ता बना देती है। लंबे समय तक केस चलता है फिर आरोपी बरी हो जाते हैं। लेकिन जिनपर आरोप लगा उनका क्या? उन्हें और उनके परिवार को तो झेलना पड़ता है। जेल में यातनाएं सहनी पड़ती है।
निकिता कहती हैं कि सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट भी है कि ऐसे फर्जी केस में जिन्हें फंसाया जाता है उन्हें मुआवजा मिलना चाहिए। लेकिन बहुत कम मामलों में ऐसा होता है और पीड़ित लड़ने के लिए सक्षम भी नहीं होते हैं। ऐसे में आम लोगों के लिए न्याय पाना मुश्किल हो जाता है।

निकिता कहती हैं कि आरोप सिद्ध नहीं होने पर बरी हो जाना ही न्याय नहीं है। फर्जी केसों में आरोपियों को जो झेलना पड़ता है उसका क्या? मानसिक तनाव से लेकर आर्थिक नुकसान होता है। उसका क्या? असल न्याय तो तब होगा न जब बरी होने के बाद क्षतिपूर्ति की व्यवस्था हो।

प्रताड़ना के आरोपों पर प्रतिक्रिया के लिए हमने मध्य प्रदेश के DGP, मध्य प्रदेश शासन के गृह सचिव, एडीजी लॉ एंड ऑर्डर और बुरहानपुर एसपी को मेल कर जवाब मांगी है। जवाब आने पर खबर को अपडेट किया जाएगा।