MP: बेघर हुई नेशनल हॉकी प्लेयर सागू डाबर, प्रशासन ने तोड़ा आशियाना, मोहलत मांगता रहा परिवार

मजदूरी कर कमाए पैसे से नेशनल लेवल पर खेलने जाती हैं सागू, पिता की हो चुकी है मौत, स्टेडियम के पास झोपड़ी में रहता था परिवार, सरकार ने उसे भी अवैध बताकर तोड़ दिया, बर्तन मांझकर परिवार चलाती हैं मां

Updated: May 03, 2022, 03:31 AM IST

मंदसौर। मध्य प्रदेश के मंदसौर में प्रशासन ने जूनियर नेशनल हॉकी प्लेयर सागू डाबर का आशियाना तोड़ दिया है। सागू प्रशासन से मोहलत मांगती रहीं लेकिन अधिकारियों को 19 वर्षीय आदिवासी बेटी की आंसुओं पर कोई तरस नहीं आया। झोपड़ी टूटता देख सागू की विधवा मां मेघा डाबर फूट-फूटकर रोती रहीं। प्रशासन के जुल्म से हताश होकर उनकी बड़ी बहन ने केरोसिन छिड़कर आत्मदाह का प्रयास भी किया। 

सागू का परिवार पिछले 40 वर्षों से मंदसौर स्थित नूतन स्टेडियम ग्राउंड पर झोपड़ी बनाकर रह रहा है। सरकारी कागजों में यह अवैध अतिक्रमण था। मंगलवार को मामा का बुलडोजर आया और भांजी को बेघर कर दिया। सागू के मुताबिक उनका परिवार प्रशासन से कुछ दिनों की मोहलत मांगता रहा लेकिन किसी ने एक नहीं सुनी। इतना ही नहीं वे समान लेकर भी चले गए। 

प्रशासकीय अधिकारियों का कहना है कि सागू डाबर को घर के लिए जमीन अलाउदा खेड़ी में अलॉट कर दिया गया है और नियम के अनुसार घर को तोड़ा गया है। दरअसल, सागू आसपास में ही झोपड़ी के लिए थोड़ी सी जमीन मांग रही थी। सागू का परिवार दूर गांव में रहने नहीं जाना चाहता है, क्योंकि यहां आसपास के घरों में झाड़ू-पोछा कर उनके परिवार का गुजारा होता है।

कौन हैं सागू डाबर

आदिवासी समुदाय से आने वाली 19 वर्षीय सागू एक दो नहीं बल्कि 10 बार नेशनल लेवल पर प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। सागू के पिता भुवन डाबर की 18 साल पहले मौत हो चुकी है। एक भाई जो कमाने वाला था कुछ साल पहले उसकी भी करंट लगने से मौत हो गई। इन दुखों के पहाड़ के साथ भी सागू की मां मेघा डाबर ने सागू का हौसला कभी कम नहीं होने दिया। उनकी मां आस–पड़ोस के घरों में झाड़ू, पोछा और बर्तन माँझती हैं। पहले सागू भी मां की मदद करती थी। 

सागू अब कार धुलती हैं। उनके पास रहने का घर तो दूर ढंग की झोपड़ी भी नहीं है। लेकिन खेल के प्रति सागू की निष्ठा ने प्रदेशभर में उनकी पहचान बनाई है।उसे प्रतिमाह महज 1500 रुपए मिलते हैं। उसकी एक बड़ी बहन सहित दो छोटे भाई भी रोजाना इधर उधर मेहनत मजदूरी करते हैं, जिससे पूरे परिवार का पालन-पोषण होता है। सागू का जीवन संघर्षों की एक दास्तान है, लेकिन विपरीत परिस्थितियों से जूझकर वह प्रदेश का नाम रौशन करने के लिए हॉकी खेलती हैं।

सागू ने पेड़ की टहनी से हॉकी की प्रैक्टिस शुरू की थी। बाद में किसी ने उन्हें पुरानी हॉकी दी। वह आज भी जब टूर्नामेंट में हिस्सा लेने शहर से बाहर जाती हैं तो जाने तक के पैसे नहीं होते हैं। उन्हें कभी कोच से तो कभी साथियों से आर्थिक मदद लेनी पड़ती है। जब यह संभव नहीं हो पाता है तो उनकी मां मेघाबाई जहां काम करने जाती हैं, वहां से कर्ज लाकर सागू को देती हैं। 

बीते साल सागू की एक तस्वीर वायरल हुई थी जिसमें वह स्ट्रीट लाइट के नीचे पढ़ाई का रही थी। इस दौरान सागू के प्री बोर्ड एग्जाम चल रहे थे। लेकिन बिजली विभाग ने उनके घर का कनेक्शन तक काट दिया था। तब सागू रात में सड़कों पर पढ़ाई करती थीं। सागू अब बेघर भी हो गईं हैं। उन्होंने कहा कि घर टूटने के बाद भी वो वहीं खुले आसमान में रहेंगी। सागू के जिन आंखों में पहले देश-प्रदेश के लिए मेडल लाने का सपना होता था वो आंसुओं से भरी हुई है। वे कहती हैं कि हम गरीब-आदिवासी के बच्चे हैं, तो क्या हम आगे नहीं बढ़ सकते?