MP: अपने ही हाथों फसल उखाड़ फेंकने को मजबूर केला उत्पादक किसान, बाजार में नहीं मिल रहे खरीददार
मध्य प्रदेश के धार में केले के किसानों को बाजार में उचित दाम नहीं मिल रहे, जिससे उनकी मेहनत और लागत दोनों डूब गई है। व्यापारी खरीदने तक नहीं आ रहे। मजबूरी में किसानों को खेतों में तैयार खड़ी फसल उखाड़कर फेंकनी पड़ रही है। आर्थिक संकट के साथ यह मानसिक चोट भी है। किसान सरकार से नुकसान का आकलन कर तुरंत मुआवजे की मांग कर रहे हैं।
धार। मध्य प्रदेश के धार जिले में केले की खेती कर रहे किसानों पर हालात ऐसे भारी पड़ गए हैं कि वे अपनी ही तैयार फसल को नष्ट करने पर मजबूर हो गए हैं। बाजार में केलों के दाम इस कदर गिर चुके हैं कि लागत का पैसा भी वापस नहीं मिल पा रहा है। खेतों में महीनों की मेहनत और निवेश के बाद फसल बर्बाद होते देख किसानों का मनोबल टूट रहा है।
धरमपुरी क्षेत्र के ग्राम हतनावर से सामने आई तस्वीरों ने किसानों की बेबसी को खुलकर सामने ला दिया है। यहां बड़े पैमाने पर केले की खेती करने वाले किसान बाजार में खरीदार न मिलने से हताश होकर खेतों में खड़े पौधों को खुद ही उखाड़कर फेंक रहे हैं। उनके चेहरे पर गुस्से और दर्द की मिली-जुली तस्वीर साफ देखी जा सकती है।
किसान सत्यम दरबार ने बताया कि उन्होंने 17 बीघा जमीन पर केले की फसल लगाई थी। इस पर लाखों रुपये खर्च हुए लेकिन बाजार में जो कीमत मिल रही थी वह लागत से भी कम थी। उनका कहना है कि व्यापारी खेतों में आने को भी तैयार नहीं हैं। जो भाव मिल रहा है उसे वे अपमानजनक बताते हैं क्योंकि मेहनत की कोई कीमत नजर नहीं आ रही।
इसी तरह अन्य किसान यशपाल सोलंकी को भी भारी नुकसान झेलना पड़ा है। उन्होंने करीब 15–16 हजार केले के पौधे लगाए थे लेकिन उचित दाम न मिलने की मजबूरी में लगभग 5,000 पौधों को अपने हाथों से उखाड़ना पड़ गया। उन्होंने बताया कि पूरी फसल खेत में तैयार खड़ी थी पर खरीदार नदारद रहे। उनकी मेहनत, उम्मीद और निवेश सब जमीन में ही दब गए।
किसानों का कहना है कि यह नुकसान सिर्फ पैसों का नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी बहुत बड़ा आघात है। उन्होंने इन पौधों को बच्चों की तरह पाला लेकिन हालात ऐसे बने कि उन्हीं हाथों से उन्हें नष्ट करना पड़ा। गांव में हर जगह मायूसी का माहौल है। खेत खाली हो रहे हैं। साथ ही किसानों की जेब और मन दोनों खाली हो चुके हैं।
कई किसानों ने उम्मीद जताई कि सरकार उनकी पीड़ा को समझे और नुकसान का आकलन कर उन्हें मुआवजा प्रदान करे। उनका कहना है कि वे अगली फसल की तैयारी जरूर कर रहे हैं लेकिन आर्थिक संकट से उबरने के लिए सरकारी सहायता अब बेहद जरूरी हो चुकी है। धान और गेहूं जैसी पारंपरिक फसलों की तुलना में खेले की खेती में अधिक लागत और जोखिम होता है। इसलिए यदि बाजार में सही दाम न मिले तो किसान का बच पाना मुश्किल है।




