गले पर जीपीएस ट्रैकर से हुई चीतों की मौत, नरेंद्र तोमर ने कहा विपरीत जलवायु का दोष

दक्षिण अफ्रीकी चीता मेटापॉपुलेशन विशेषज्ञ विंसेंट वान डेर मेरवे ने मंगोलिया से न्यूज एजेंसी को बताया था, "अत्यधिक गीली स्थितियों के कारण रेडियो कॉलर संक्रमण पैदा कर रहे हैं। दोनों चीतों की मौत सेप्टिसीमिया से हुई है। चीतों की गर्दन के आसपास अन्य जानवरों द्वारा पहुंचाए गए घाव नहीं थे। वे डर्मेटाइटिस और मायियासिस के बाद सेप्टीसीमिया के मामले थे।

Updated: Jul 18, 2023, 10:57 AM IST

तस्वीर- कूनो नेशनल पार्क
तस्वीर- कूनो नेशनल पार्क

श्योपुर। मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में अब तक 5 चीतों और 3 शावकों की मौत हो चुकी है। इसी हफ्ते मंगलवार और शुक्रवार को ही 2 नर चीतों (तेजस और सूरज) की मौत हो गई। इसके बाद चीतों के गले में बंधे रेडियो कॉलर को लेकर सवाल उठने लगे। कारण, दक्षिण अफ्रीका के एक चीता एक्सपर्ट ने न्यूज एजेंसी से बात करते हुए दावा किया था कि रेडियो कॉलर के कारण चीते सेप्टीसीमिया के शिकार हो रहे हैं। अब इसको सरकार का बयान आया है, जिसमें सरकार ने रेडियो कॉलर से चीतों की मौत के दावे किसी वैज्ञानिक प्रमाण पर आधारित नहीं हैं, बल्कि अटकलों और अफवाहों पर आधारित हैं।

दरअसल, सेप्टीसीमिया एक गंभीर ब्लड इंफेक्शन है और इससे खून में जहर बनने लगता है। बताया जाता है कि जानवरों के शरीर के बाहरी हिस्से में लंबे समय तक नमी बने रहने के कारण संक्रमण होने लगता है और ये सेप्टीसीमिया का रूप ले लेता है। दक्षिण अफ्रीकी एक्सपर्ट ने दावा किया था कि चीतों की गर्दन में जो रेडियो कॉलर पहनाया गया है, उसके कारण तेजस और सूरज चीतों को सेप्टीसीमिया हो गया और उनकी मौत हो गई।

 दक्षिण अफ्रीका के चीता एक्सपर्ट ने क्या कहा था? 

दक्षिण अफ्रीकी चीता मेटापॉपुलेशन विशेषज्ञ विंसेंट वान डेर मेरवे ने मंगोलिया से न्यूज एजेंसी को बताया था, "अत्यधिक गीली स्थितियों के कारण रेडियो कॉलर संक्रमण पैदा कर रहे हैं। दोनों चीतों की मौत सेप्टिसीमिया से हुई है। चीतों की गर्दन के आसपास अन्य जानवरों द्वारा पहुंचाए गए घाव नहीं थे वे डर्मेटाइटिस और मायियासिस के बाद सेप्टीसीमिया के मामले थे।

सरकार की तरफ से आया ये बयान

केंद्र सरकार की तरफ से बयान जारी हुआ है। इसमें कहा गया है कि चीतों को भारत वापस लाने के लिए प्रोजेक्ट चीता की शुरुआत की गई। इसके तहत नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में कुल 20 रेडियो कॉलर वाले चीतों को भारत लाया गया। अनिवार्य क्वारंटीन पीरियड के बाद, सभी चीतों को बड़े अनुकूलन बाड़ों में शिफ्ट कर दिया गया। वर्तमान में, 11 चीते मुक्त अवस्था में हैं और भारतीय धरती पर पैदा हुए एक शावक सहित 5 चीते क्वारंटीन बाड़े में हैं। प्रत्येक चीते की चौबीसों घंटे निगरानी की जा रही है। चीता को 7 दशकों के बाद भारत वापस लाया गया है और इतने बड़े प्रोजेक्ट में उतार-चढ़ाव आना तय है। विशेष रूप से दक्षिण अफ्रीका के वैश्विक अनुभव से पता चलता है कि अफ्रीकी देशों में चीतों के पुन:प्रवेश के प्रारंभिक चरण में प्रविष्ट चीतों की मृत्यु दर 50% से अधिक है। 

मामले पर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि नए प्राणी को स्थान परिवर्तन के बाद कभी-कभी बदली हुई जलवायु रास नहीं आती है। कुछ ऐसा ही इन चीतों के साथ हो रहा है। जलवायु परिवर्तन की वजह ही अभी तक चीतों की मौत का कारण बनती नजर आ रही है। इसलिए परेशान होने की जरूरत नहीं है। वन मंत्रालय इस दिक्कत को दूर करने काम कर रहा है। जल्द ही चीतों की मौत का यह सिलसिला रुकेगा।