मध्य प्रदेश में स्कॉलरशिप घोटाला, SC-ST वर्ग के छात्रों की स्कॉलरशिप लूट रहे दलाल

मध्य प्रदेश में SC-ST छात्रों की छात्रवृत्ति घोटाले का खुलासा हुआ है। दलाल और निजी कॉलेज संचालक फर्जी दाखिले, बैंक खातों और पीओएस मशीनों के जरिये स्कॉलरशिप की राशि हड़प रहे हैं।

Publish: Nov 10, 2025, 10:16 AM IST

Photo Courtesy: DB
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मध्य प्रदेश। मध्य प्रदेश में अनुसूचित जाति (SC) और जनजाति (ST) वर्ग के गरीब छात्रों के नाम पर चल रही सरकारी छात्रवृत्ति योजना एक संगठित रैकेट के लिए सुनहरा धंधा बन चुकी है। एक स्टिंग ऑपरेशन में यह खुलासा हुआ कि शिक्षा माफिया, निजी कॉलेज संचालक और दलाल मिलकर सरकारी खजाने और गरीब छात्रों, दोनों को लूट रहे हैं। छात्रों को बिना पढ़ाई के डिग्री और उज्ज्वल भविष्य का झांसा देकर उनका डेटा, बैंक खाता और छात्रवृत्ति राशि हड़प ली जाती है।

इंदौर, भोपाल, उज्जैन और सागर में किए गए इस स्टिंग ऑपरेशन में सामने आया कि यह रैकेट न केवल योजनाबद्ध तरीके से काम करता है बल्कि इतना बेखौफ है कि इसके लोग पीओएस मशीन लेकर घूमते हैं। जैसे ही किसी छात्र के खाते में स्कॉलरशिप की राशि ट्रांसफर होती है वैसे ही वे रास्ते में कहीं भी गाड़ी रोककर एटीएम कार्ड स्वैप कर लेते हैं। एक कॉलेज संचालक ने कैमरे पर खुलेआम कहा,“शिक्षा में रुपए कमाना है तो यही करना पड़ेगा।”

यह पूरा नेटवर्क कई स्तरों पर सक्रिय है। सबसे पहले दलाल ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में जाकर गरीब परिवारों को निशाना बनाते हैं। उन्हें मुफ्त एडमिशन, बिना पढ़ाई डिग्री और स्कॉलरशिप का लालच दिया जाता है। छात्र आधार कार्ड और मार्कशीट जैसे दस्तावेज सौंप देते हैं और उनके नाम से फर्जी दाखिले कर लिए जाते हैं।

इसके बाद कॉलेज प्रबंधन या दलाल छात्रों के नाम पर नए बैंक खाते खुलवाते हैं जिनसे जुड़ा मोबाइल नंबर दलाल का होता है। एटीएम कार्ड और पासबुक भी उन्हीं के पास रहते हैं। जैसे ही सरकार छात्रवृत्ति की रकम खाते में डालती है वैसे ही दलाल के मोबाइल पर मैसेज आता है और कुछ ही मिनटों में पैसा पीओएस मशीन या एटीएम से निकाल लिया जाता है।

सिस्टम को धोखा देने के लिए कॉलेज पोर्टल पर फर्जी उपस्थिति और नकली परीक्षा परिणाम अपलोड किए जाते हैं ताकि सब कुछ वैध दिखे। यही वजह है कि सालों से यह खेल चल रहा है, और जांच एजेंसियां इसे पकड़ नहीं पाई हैं।

स्टिंग ऑपरेशन करने वाली टीम जब बैरसिया के महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट के संचालक आलोक दांगी से फर्जी दलाल बनकर मिली तो उसने कैमरे पर न केवल फर्जी मार्कशीट दिखाई बल्कि एटीएम कार्ड की गड्डी निकालकर बोला,“मैं पीओएस मशीन रखता हूं। जैसे ही स्कॉलरशिप आती है, रास्ते में कहीं भी स्वैप कर लेता हूं।”

उसने पैसों के बंटवारे का फॉर्मूला भी बताया। उसने बताया कि 60 हजार की स्कॉलरशिप में 25% दलाल को, 25% खुद को और 50% कॉलेज को जाता है। दांगी ने दावा किया कि वह बैकडेट में एडमिशन, फर्जी डिग्री, यहां तक कि बिना परीक्षा दिए पास करवाने की व्यवस्था कर सकता है। उसके अनुसार ज्यादा पैसा देने से काम जल्दी और बढ़िया होता है।

दांगी ने गर्व से बताया कि उसने एक बिल्डर के बेटे को भोपाल की निजी यूनिवर्सिटी से बीसीए की फर्जी डिग्री दिलवाई थी। उसने कहा,"उनकी खुद की लॉगिन है काम सीधा चेयरमैन से होता है।” पॉलिटेक्निक की बैकडेट डिग्री के लिए 1.6 लाख रुपए और बीई के लिए 2.8 लाख रुपए तक वसूले जाते हैं।

टीम ने जब एक और कॉलेज के एडमिशन हेड वासुदेव यादव से बात की। तो उसने साफ कहा कि स्कॉलरशिप आने के बाद 50-50 का बंटवारा किया जा सकता है। उसने बताया कि परीक्षा तो देनी ही होगी लेकिन पास सब हो जाते हैं। उज्जैन में एक दलाल ने फोन पर बातचीत में बताया कि वह बच्चों के खाते खुद खुलवाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि बच्चों के खाते में पैसा जाने के बाद वे खुद रख लेते हैं। यानी छात्रों की स्कॉलरशिप उनके हाथ तक पहुंचती ही नहीं है।

इस घोटाले के असली शिकार वे छात्र हैं जिनके नाम पर करोड़ों की राशि हड़पी जा रही है। एक छात्र ने बताया, “मुझसे दस्तावेज लेकर कहा गया कि नाम कॉलेज में लग जाएगा, लेकिन बाद में पता चला कि मेरे नाम से दो साल की स्कॉलरशिप निकल चुकी है।” एक अन्य छात्र ने कहा,“बैंक खाता उन्होंने खुद खुलवाया, हमें कभी पासबुक या एटीएम कार्ड मिला ही नहीं।”

सिस्टम की 5 बड़ी खामियां जो लूट को आसान बनाती हैं
1. बायोमेट्रिक सत्यापन का अभाव: छात्रवृत्ति पोर्टल पर उपस्थिति की कोई बायोमेट्रिक प्रक्रिया नहीं है जिससे फर्जी हाजिरी लगाना बेहद आसान है।
2. बैंक खातों पर नियंत्रण नहीं: कॉलेज और दलाल खुलेआम छात्रों के खाते खुलवाते और उनके कार्ड रख लेते हैं।
3. कमजोर मॉनिटरिंग सिस्टम: जिला स्तर पर कोई रियल-टाइम निगरानी नहीं होती है। जांच समितियां केवल औपचारिकता निभाती हैं।
4. ऑडिट की अनदेखी: 2023-24 की ऑडिट रिपोर्ट में 12.6 करोड़ रुपए गैर-प्रमाणित खातों में जाने का खुलासा हुआ लेकिन कार्रवाई केवल चार कॉलेजों तक सीमित रही।
5. जवाबदेही की कमी: बैंक स्तर पर एक ही व्यक्ति द्वारा दर्जनों खातों को ऑपरेट करने पर भी कोई अलर्ट सिस्टम नहीं है।

टीम ने जब निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग के तत्कालीन सचिव के.पी. साहू से इस पर सवाल किया तो उन्होंने कहा,“अब पूरा प्लेटफॉर्म ऑनलाइन है इसलिए गड़बड़ी की संभावना कम है। खाते आधार से लिंक हैं इसलिए फर्जीवाड़ा होना मुश्किल है।” हालांकि, जांच ने इस दावे की पोल खोल इसे गलत साबित कर दिया है।