शिक्षा और स्वास्थ्य आम लोगों की पहुंच से बाहर, इंदौर में बोले संघ प्रमुख मोहन भागवत
भागवत ने कहा कि स्वास्थ्य और शिक्षा ये दो विषय ऐसे हैं। आज के समय में ये समाज के लिए बहुत बड़ी आवश्यकता बन गई है। लेकिन दुर्भाग्य ऐसा है कि ये दोनों बातें आज सामान्य व्यक्ति के पहुंच से बाहर है।

इंदौर। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने शिक्षा और स्वास्थ्य के व्यवसायीकरण को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि पहले स्वास्थ्य और शिक्षा सेवा के रूप में प्रदान की जाती थी, लेकिन अब ये दोनों क्षेत्र व्यावसायिक हो गए हैं और आम लोगों की पहुंच से बाहर हो गए हैं। उन्होंने सहज और सुलभ चिकित्सा की आवश्यकता पर जोर दिया।
संघ प्रमुख ने रविवार को इंदौर में माधव सृष्टि के कैंसर केयर सेंटर का शुभारंभ किया। उन्होंने सेंटर की बिल्डिंग और संसाधनों का बारीकी से निरीक्षण किया। साथ ही जीवन यात्रा पर आधारित प्रदर्शनी भी देखी। इस दौरान कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य और शिक्षा ये दो विषय ऐसे हैं। आज के समय में ये समाज के लिए बहुत बड़ी आवश्यकता बन गई है। लेकिन दुर्भाग्य ऐसा है कि ये दोनों बातें आज सामान्य व्यक्ति के पहुंच से बाहर है। उसकी आर्थिक सामर्थ्य की पहुंच के बाहर है। ये सहज, सुलभ नहीं रही और सस्ती भी नहीं है।
मोहन भागवत ने आगे कहा कि ये सामान्य व्यक्ति की पहुंच के बाहर इसलिए हो जाती है कि पहले ये दोनों काम सेवा के नाते किए जाते थे। आज इसको भी कमर्शियल बना दिया गया है। आज दोनों महंगे होने से हर व्यक्ति के बस में नहीं हैं। भागवत ने महंगी चिकित्सा सेवा को लेकर कहा कि किसी मंत्री ने भी कहा था कि यह ट्रिलियन डॉलर का धंधा बन चुका है। साथ ही चिंता जताई कि आज अच्छे इलाज के लिए लोगों को दूर जाना पड़ता है।
उन्होंने कहा कि कैंसर जैसे रोगों के लिए भारत में केवल दस-बारह शहरों में ही इलाज की बेहतर सुविधा है। ऐसे में बीमार परिवार पर आर्थिक और मानसिक, दोनों तरह का बोझ बढ़ जाता है। अधिक अस्पताल और अधिक चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध होने से ही इलाज सस्ता हो सकता है। उन्होंने कहा कि इंदौर के कार्यकर्ताओं ने संकल्प लेकर इस कैंसर केयर सेंटर को बनाया है, जिसे निरंतर चलाना होगा।
भागवत ने कहा कि पहले चिकित्सक को पता चला कि किसी घर में कोई बीमार है तो बिना बुलाए पहुंचते थे। जब तक संबंधित ठीक नहीं होता था, तब तक विश्राम नहीं करते थे क्योंकि चिकित्सा करना एक कर्त्तव्य है। अब ऐसा है कि कितना खर्च होता है। इसका हिसाब करना पड़ता है और आवश्यकता तो वही रही।
मोहन भागवत ने कहा कि समाज है तो सद्भावना है, समाज यानी अपनेपन का संबंध। यह मात्र सोशल कॉन्ट्रैक्ट नहीं, बल्कि व्यक्ति और परिवार दोनों की सत्ता है। समाज का उद्देश्य धर्मयुक्त जीवन होना चाहिए। उन्होंने चेताया कि मनुष्य को केवल शरीर और उपभोग की वस्तु मानने वाला विचार यूरोप को तबाह कर चुका है और अब यही विचार भारत की परिवार व्यवस्था को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है। इसके पीछे कुछ विश्व के 50-60 घरानों का गठजोड़ है, जिनका लक्ष्य भारत के बाजार पर कब्जा करना है।