देश में खाली है 60 लाख स्वीकृत पद, कहां गया बजट, रिक्तियों को लेकर अपनी ही सरकार पर बरसे वरुण गांधी

वरुण गांधी ने एक बार फिर बेरोजगारी के मुद्दे पर केंद्र की मोदी सरकार को निशाने पर लिया है, उन्होंने चौंकाने वाले आंकड़े जारी करते हुए बताया है कि 60 लाख स्वीकृत पद खाली हैं, बजट कहां गया? यह जानना नौजवानों का हक है

Publish: May 28, 2022, 01:13 PM IST

नई दिल्ली। पीलीभीत से बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने बेरोजगारी के मुद्दे पर एक बार फिर मोदी सरकार को घेरा है। वरुण गांधी ने शनिवार को सरकारी रिक्तियों का मुद्दा उठाते हुए पूछा है कि बजट कहां गया? उन्होंने चौंकाने वाले आंकड़े जारी कर बताया है कि देश में 60 लाख स्वीकृत पद खाली हैं।

वरुण गांधी ने ट्वीट किया, 'जब बेरोजगारी 3 दशकों के सर्वोच्च स्तर पर है तब यह आँकड़े चौंकाने वाले हैं।
जहां भर्तियाँ न आने से करोड़ों युवा हताश व निराश है, वहीं ‘सरकारी आँकड़ों’ की ही मानें तो देश में 60 लाख ‘स्वीकृत पद’ खाली हैं। कहाँ गया वो बजट जो इन पदों के लिए आवंटित था? यह जानना हर नौजवान का हक है!'

वरुण गाधी ने अपने ट्वीट के साथ देश में विभिन्न सरकारी विभागों में स्वीकृत पड़े खाली पदों को लेकर आंकड़े शेयर किए हैं। जिसके मुताबिक, देश के विभिन्न सरकारी विभागों में 60 लाख 52 हजार 130 स्वीकृत पद खाली पड़े हैं। जिसमें पब्लिक सेक्टर के बैंक, केंद्रीय नवोदय विद्यालय, राज्य के अधीन प्राथमिक विद्यालय, उच्च शिक्षण संस्थान, सेना एवं पुलिस व न्यायालयों में रिक्त पड़े पदों की संख्या दी गई है।

बता दें कि वरुण गांधी किसान और नौजवानों के मुद्दे लगातार उठा रहे हैं। बताया जाता है वरुण गांधी द्वारा जनहित के मुद्दे उठाने के कारण केंद्रीय नेतृत्व उनसे खफा है। हालांकि, वह लगातार सभी मुद्दों पर मुखरता से अपनी बात रखने से पीछे नहीं हट रहे। खास बात यह है कि बीजेपी की ओर से कोई उनका काउंटर भी नहीं करता है।

बीजेपी सांसद ने इसी हफ्ते एक ट्वीट में लिखा था कि, 'अपने कंधों पर पूरे परिवार की उम्मीदों का बोझ लेकर चलने वाले प्रतियोगी छात्रों का जीवन विगत कुछ वर्षों से एक लंबे संघर्ष की दास्ताँ बन चुका है। छात्र अब सिर्फ ‘पढ़ाई’ नही करता, अपने हक की ‘लड़ाई’ भी स्वयं लड़ता है। अरसों से लटकी भर्तियाँ और रेत की तरह फिसलता वक्त, छात्र हताश है। बिना कारण रिक्त पड़े पद,लीक होते पेपर, सिस्टम पर हावी होता शिक्षा माफिया, कोर्ट-कचहरी व टूटती उम्मीद। छात्र अब प्रशासनिक अक्षमता की कीमत भी स्वयं चुका रहा है।'