Galwan Valley : EX Army Officers ने चीन के पीछे हटने पर उठाए सवाल

चीन के पीछे हटने पर आधिकारिक बयान क्‍यों नहीं, क्‍या भारत ने चीन के गलवान घाटी पर अधिकार के दावे को मान लिया

Publish: Jul 07, 2020, 07:04 AM IST

भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में आठ हफ्तों से जारी गतिरोध के बीच चीनी सैनिकों के गलवान घाटी में पीछे जाने की खबरे आई हैं। भारतीय विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर यह जानकारी दी है कि भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी पांच जुलाई को हुई बातचीत में एलएसी से दोनों पक्षों के सैनिकों को पीछे हटाने पर राजी हुए हैं। दूसरी तरफ सेना के पूर्व अधिकारियों ने इस पूरी कवायद पर सवाल उठाए हैं और कहा है कि भारत ने चीन के 1959 के उस दावे को स्वीकार कर लिया है, जिसमें चीन ने पूरी गलवान घाटी को अपना क्षेत्र बताया है।

विभिन्न मीडिया संस्थानों ने सरकारी सूत्रों के हवाले से एलएसी से दोनों सेनाओं के पीछे हटने की खबरें दी हैं। हालांकि, इस संबंध में ना तो भारत की तरफ से और ना ही चीन के तरफ से कोई आधिकारिक बयान जारी किया गया है। चीन के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी करते हुए यह जरूर कहा है कि वह अग्रिम मोर्चे पर तैनात सैनिक भारत से लगती वास्तविक नियंत्रण रेखा पर गलवान घाटी में पीछे हटने और तनाव कम करने की दिशा में ‘‘प्रगति’’ के लिए ‘‘प्रभावी कदम’’ उठा रहा है।

इसी तरह भारतीय विदेश मंत्रालय ने बयान जारी करते हुए कहा, ‘डोभाल और वांग इस बात पर सहमत हुए कि दोनों पक्षों को एलएसी से सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया को ‘‘तेजी से’’ पूरा करना चाहिए।'

इस पूरी कवायद पर सवाल उठाते हुए पूर्व सेना अधिकारी और पत्रकार अजय शुक्ला ने ट्विटर पर कुछ सवाल पूछे हैं। उन्होंने पूछा है कि अगर चीनी सेना गलवान घाटी में पीछे जा रही है तो इस बारे में कोई आधिकारिक बयान कहां है? इसके साथ ही उन्होंने चीनी सेना उन्होंने चीनी सेना के पीछे जाने की सैटेलाइट तस्वीर के ना होने की भी बात कही है।

अजय शुक्ला ने अपने दूसरे ट्वीट में चीन की उस सैन्य रणनीति के बारे में भी चेताया है जो ‘दो कदम आगे और एक कदम पीछे’ की है। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि चीन गलवान घाटी से इसलिए पीछे जा रहा हो ताकि वह एलएसी के दूसरे स्थानों जैसे पैंगोग सो पर ध्यान भटका सके और वहां भारत की जमीन कब्जाना चालू रखे। उन्होंने यह भी कहा कि हो सकता है कि इलाके में पानी का स्तर बढ़ने पर चीन अपने कैंपों को स्थानांतरित कर रहा हो।

वहीं भारतीय सेना के एक दूसरे पूर्व अधिकारी और फोर्स पत्रिका के संपादक प्रवीन साहनी ने ट्विटर पर दावा किया है कि भारत ने चीन का 1959 का वह दावा स्वीकार कर लिया है, जिसमें उसने पूरी गलवान घाटी को अपना क्षेत्र बताया है।

उन्होंने ट्वीट में आगे कहा कि अब पूरी गलवान घाटी चीन की है। भारतीय सेना अब अपने निर्माण ढांचोंं को तोड़कर वापस नदी के मुहाने पर लौट आएगी और चीन की सेना भी उन जगहों से वापस लौट आएगी जहां पर इसने नदी के मुहाने को पार किया।

उन्होंने अपने एक दूसरे ट्वीट में कहा कि कोई इस बारे में बात नहीं कर रहा है कि चीन ने 1993 की एलएसी को मानने से इनकार कर दिया है, जिसके बारे में भारत का कहना है कि दोनों पक्ष जमीन पर इससे पूरी तरह अवगत हैं। उन्होंने सवाल किया कि आखिर मनमाने ढंग से चीन ऐसा कैसे कर सकता है?

इससे पहले भारत और चीन के सैन्य अधिकारियों के बीच पिछले 30 जून को लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की तीसरे दौर की वार्ता हुई थी जिसमें दोनों पक्ष गतिरोध को समाप्त करने के लिए ‘‘प्राथमिकता’’ के रूप में तेजी से और चरणबद्ध तरीके से कदम उठाने पर सहमत हुए थे। लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की पहले दौर की वार्ता छह जून को हुई थी जिसमें दोनों पक्षों ने गतिरोध वाले सभी स्थानों से धीरे-धीरे पीछे हटने के लिए समझौते को अंतिम रूप दिया था, जिसकी शुरुआत गलवान घाटी से होनी थी।

हालांकि, स्थिति तब बिगड़ गई जब 15 जून को गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई झड़प में भारत के 20 जवान वीरगति को प्राप्त हो गए। झड़प में चीनी सेना को भी नुकसान पहुंचने की खबरें हैं।