पुराने ज़ख़्मों पर मरहम लगाती किसान एकता, क्या सियासत में भी आएगा नया मोड़

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की किसान महापंचायतों में सांप्रदायिकता के कारण सामाजिक ताने-बाने में आई दरारों को भरने की कोशिशें साफ़ नज़र आई हैं, इन प्रयासों की सफलता सियासत पर भी बड़ा असर डाल सकती है

Updated: Feb 06, 2021, 02:00 PM IST

Photo Courtesy: Amar Ujala
Photo Courtesy: Amar Ujala

दिल्ली की सीमाओं पर ढाई महीने से जारी किसान आंदोलन की वजह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गांवों में धार्मिक विभाजन की खाई भरने लगी है। किसानों के तौर पर गहराती एकजुटता की भावना ने मुजफ्फरनगर के दंगों में लगे घावों पर मरहम लगाने का काम किया है। समाज के ताने-बाने में आ रहे इस सुखद बदलाव की झलक पिछले दिनों हुई कई किसान पंचायतों में देखने को मिली है।  

26 जनवरी को हुई हिंसा के बाद से ही किसान नेता पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों में लगातार किसान महापंचायत के आयोजन कर रहे हैं। इन महापंचायतों के मंच किसानों के बीच कौमी एकता की नज़ीर बनते जा रहे हैं। सांप्रदायिक सद्भावना कुछ ऐसी ही मिसाल शुक्रवार को शामली में भी देखने को मिली। 

शामली की महापंचायत के मंच से स्थानीय नेता आमिर आलम ने कहा, "इस सभा में चाहे चौधरी हों, कश्यप हों या मुसलमान, सबसे पहले हम सब किसान हैं। उन्होंने कहा कि हर समुदाय के लोग आपसी दूरियां मिटाकर कृषि कानूनों के खिलाफ एकजुटता के साथ खड़े हैं। महापंचायत के मंच से ऐसी ही बात पंजाबी गायक अजय हुड्डा ने भी कही। उन्होंने कहा," मैं आज यह नहीं पूछूंगा कि यहां पर कितने हिन्दू या मुसलमान इकट्ठा हुए हैं। मैं यही पूछूंगा कि आखिर कितने किसान आज हमारा साथ देने आए हैं। एकता ही हमारी सबसे बड़ी शक्ति है।" 

किसान आंदोलन के कारण बदलते सामाजिक समीकरणों सबसे शुरुआती और अहम झलक 29 जनवरी को मुजफ्फरनगर में हुई महापंचायत में देखने को मिली। इस महापंचायत के मंच पर बुजुर्ग किसान नेता गुलाम मोहम्मद जोला लंबे अरसे के बाद भारतीय किसान यूनियन के नेताओं के साथ नज़र आए। गुलाम मोहम्मद जोला मौजूदा किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत और उनके बड़े भाई नरेश टिकैत के पिता स्वर्गीय महेंद्र सिंह टिकैत के बेहद करीबी रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन के उस दौर के आंदोलनों में वे महेंद्र सिंह टिकैत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहा करते थे। टिकैत परिवार की अगली पीढ़ी के हाथों में नेतृत्व आने के बाद भी वे काफी दिनों तक अभिभावक की भूमिका में नज़र आए, लेकिन बाद में अलग होकर उन्होंने अपना अलग संगठन बना लिया। जोला अब एक बार फिर से टिकैत परिवार के साथ खड़े नज़र आ रहे हैं और बीकेयू के साथ उनके बढ़ते सहयोगी की चर्चा होने लगी है।

खास बात ये है कि बुजुर्ग किसान नेता जोला ने मुजफ्फरनगर की महापंचायत के मंच से दंगों में बड़ी संख्या में मुसलमानों के मारे जाने का जिक्र भी किया, लेकिन भाव शिकायत का नहीं, बल्कि पुरानी गलतियों को पीछे छोड़कर आगे बढ़ने का था। जब उन्होंने मंच से इस बारे में बात की तो सभा में पसरा सन्नाटा लोगों के बीच पुरानी गलतियों के एहसास की कहानी बयान कर रहा था। यह बात ध्यान में रखने लायक है कि पिछले कुछ दिनों के दौरान दोनों टिकैत भाई पिछली गलतियों को सुधारने की बात करते रहे हैं। 

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की महापंचायतों में किसानों के बदलते मिजाज और सामाजिक ताने-बाने पर लगे ज़ख्मों को भरने की जो कोशिश नज़र आ रही है, वो अगर इसी तरह जारी रही तो इसका सिर्फ किसान आंदोलन पर ही नहीं सियासत पर भी गहरा असर पड़ सकता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश का यह इलाका हरियाणा और कुछ हद तक राजस्थान से भी आर्गेनिक तौर पर जुड़ा है। इतना ही नहीं, सामाजिक-धार्मिक वैमनस्य को भुलाकर एकजुट होने का यह मंत्र किसानों की व्यापक गोलबंदी के जरिए देश के बाकी इलाकों को भी एक नया संदेश देने का दम रखता है। और अगर ऐसा हुआ तो यह उत्तर प्रदेश के रास्ते देश में एक नए सकारात्मक बदलाव का अहम मोड़ साबित हो सकता है।