शिवराज ने गुपकर गठबंधन को बताया चीन का जासूस, लद्दाख में बीजेपी की सहयोगी है नेशनल कॉन्फ्रेंस

मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज चौहान ने गुपकर गठबंधन को बताया देश विरोधी, जबकि इस गठबंधन के नेता फारूक अब्दुल्ला की पार्टी लद्दाख में बीजेपी की सहयोगी है, पीडीपी के साथ बीजेपी सरकार में रही है

Updated: Nov 22, 2020, 03:04 AM IST

Photo Courtesy : The financial express
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भोपाल। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गुपकर संगठन को लेकर आपत्तिजनक बयान दिया है। शिवराज ने इसे 'गुप्तचर गठबंधन' करार देते हुए आरोप लगाया है कि यह गठबंधन पाकिस्तान और चीन के लिए जासूसी करता है। इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी गुपकर गठबंधन को गैंग बताते हुए हमले कर चुके हैं। कांग्रेस ने शिवराज के इस बयान पर पलटवार करते हुए कहा है कि मुख्यमंत्री कोरोना महामारी को लेकर अपनी विफलता छिपाने के लिए अनर्गल बयानबाजी कर रहे हैं।

शिवराज चौहान ने गुपकर गठबंधन पर निशाना साधते हुए कहा, 'वास्तव में यह ‘गुप्तचर संगठन’ है जिसके लोग पाकिस्तान और चीन के लिए जासूसी कर रहे हैं। यह गठबंधन ‘देश विरोधी गठबंधन’ है, क्योंकि इसमें शामिल जितने नेता हैं, वे सब राष्ट्र विरोधी बयान देते हैं।' सीएम ने आरोप लगाया कि कांग्रेस भी इस ‘‘देश विरोधी गुपकर गठबंधन’’ के साथ खड़ी है।

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शिवराज ने आगे कहा कि नेशनल कॉन्फ्रेंस हो या पीडीपी (पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी), इनके बच्चे तो विदेशों में पढ़ रहे हैं। ये कश्मीरी बेटे-बेटियों के हाथ में पत्थर थमाते रहे हैं। इन्होंने विलासितापूर्ण जीवन जिया। कश्मीर को लूटने की आजादी इनको थी। इन्होंने जम्मू कश्मीर को अंधेरे में धकेला। आज ये सब इकट्ठे होकर देशद्रोह की भाषा बोल रहे हैं और कांग्रेस भी इनके साथ खड़ी है।' 

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बता दें कि जम्मू कश्मीर में गुपकार गठबंधन के दलों को गैंग और देशविरोधी बताने वाली बीजेपी लद्दाख में उसी गुपकार गठबंधन के प्रमुख दल नेशनल कॉन्फ्रेंस की सहयोगी है। लद्दाख डेवलपमेंट ऑटोनॉमस हिल डेवलपमेंट कॉउन्सिल कारगिल (LADHCK) में बीजेपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस आज भी एक दूसरे के सहयोगी दल हैं। जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के मुखिया फारूक अब्दुल्ला ही गुपकार गठबंधन के अध्यक्ष हैं। ऐसे में बीजेपी के ऊपर दोहरा मापदंड अपनाने का आरोप लग रहा है।

बीजेपी के इस दोहरे राजनीतिक मिजाज का एक उदाहरण महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी से उसके रिश्तों को भी बताया जाता है। लोग अब तक भूले नहीं हैं कि बीजेपी महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर की सरकार चला रही थी और एक दिन अचानक उन्हीं महबूबा को जेल में बंद करके देश विरोधी होने का लेबल चिपका दिया।

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क्या है गुपकार गठबंधन

दरअसल, 4 अगस्त 2019 को फारुक अब्दुल्ला के गुपकार स्थित आवास पर एक सर्वदलीय बैठक हुई थी। इस दौरान एक प्रस्ताव जारी किया गया था, जिसमें सभी पार्टियों ने तय किया था कि जम्मू-कश्मीर की पहचान, स्वायत्तता और उसके विशेष दर्जे को बनाए रखने के लिए सब मिलकर सामूहिक रूप से प्रयास करेंगे। इसे ही गुपकार समझौता कहा जाता है। इस समझौते में महबूबा मुफ़्ती की पार्टी पीडीपी और फारूक अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस के अलावा राज्य के कुछ अन्य दल भी शामिल हैं। बता दें कि इस समझौते के अगले ही दिन केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा छीनकर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को भी बेअसर कर दिया गया था।

क्या जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद खत्म हो गया है

बीजेपी नेताओं के बयानों से ऐसा लगता है मानो जम्मू-कश्मीर से पूर्ण राज्य का दर्जा छीन लेने और अनुच्छेद 370 हटाने से पहले वहाँ सब गड़बड़ था और अब वहां आतंकवाद खत्म हो गया है। लेकिन हकीकत ऐसी नहीं है। खुद मोदी सरकार के गृह मंत्रालय ने 17 मार्च 2020 को देश की संसद को लिखकर बताया था कि 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से लेकर 10 मार्च के बीच जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद से जुड़ी 79 वारदात हो चुकी थीं। ये हाल तब था जबकि इस दौरान पूरे राज्य को भारी सुरक्षा बंदोबस्त करके एक तरह से छावनी में तब्दील कर दिया गया था। इतना ही नहीं, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पूरे राज्य में करीब 1600 लोगों को विशेष सुरक्षा में रखा गया है। इतने सुरक्षा उपायों के बावजूद राज्य में आतंकवादी हमलों का सिलसिला थमा नहीं है। राज्य की सही हालत का अंदाज़ा तो पिछले कुछ महीनों के दौरान आतंकवादी हमलों में मारे गए नेताओं की लंबी फेहरिस्त देखकर लगाया जा सकता है।

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आतंकी हमलों में मारे गए नेता

29 अक्टूबर : कुलगाम में 3 बीजेपी नेताओं की हत्या 

7 अक्टूबर: गांदरबल में बीजेपी नेता के घर पर हमला, उनके PSO शहीद

19 अगस्त : सरपंच निसार अहमद भट्ट की हत्या, शोपियां में मिला शव

10 अगस्त : बडगाम में हामिद नज़र की हत्या

6  अगस्त : क़ाज़ीगुंड के सरपंच सज्जाद अहमद की हत्या

अगस्त का पहला हफ्ता : कुलगान के स्थानीय नेता आरिफ़ अहमद शाह की हत्या

8 जुलाई : वसीम बारी, उनके पिता और भाई की हत्या

5 जुलाई : पुलवामा के शब्बीर भट्ट की हत्या

8 जून : सरपंच अजय पंडिता की हत्या

30 जून: शोपियां के बीजेपी नेता गौहर भट्ट की हत्या

4 मई : अनंतनाग के गुल मीर की हत्या

सवाल यह है कि जब अनुच्छेद 370 हटाने से आतंकवाद खत्म हुआ ही नहीं है, तो उसे फिर से बहाल करने की मांग करने वाले राजनीतिक दलों पर ये आरोप लगाना कितना सही है कि वे राज्य में आतंकवाद की वापसी चाहते हैं। उल्टे जम्मू-कश्मीर की सियासत को समझने वाले अच्छी तरह जानते हैं कि वहां कांग्रेस और बीजेपी जैसे राष्ट्रीय दलों के अलावा नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी भी अलगाववाद का विरोध करने वाली मुखर आवाज़ें रही हैं। उन्हें जबरन आतंकवाद समर्थक बताने से आखिर किसका फायदा होगा? सवाल यह भी है कि बीजेपी अब तक लद्दाख में नेशनल कॉन्फ़्रेंस के साथ है तो जम्मू-कश्मीर समेत देश के बाक़ी हिस्सों में उसे देश विरोधी किस मुंह से बताती है?