जस्टिस सूर्यकांत होंगे देश के अगले मुख्य न्यायाधीश, 24 नवंबर को लेंगे शपथ

हरियाणा के न्यायमूर्ति सूर्यकांत देश के 53वें मुख्य न्यायाधीश होंगे। वे 24 नवंबर को पदभार संभालेंगे और 9 फरवरी 2027 तक कार्यरत रहेंगे। मौजूदा चीफ जस्टिस बीआर गवई ने की सिफारिश केंद्र सरकार को भेजी थी।

Updated: Oct 30, 2025, 07:07 PM IST

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने गुरुवार को न्यायमूर्ति सूर्यकांत को देश का अगला मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने का फैसला किया है। वे मौजूदा सीजेआई भूषण रमेश गवई के 23 नवंबर को सेवानिवृत्त होने के अगले दिन यानी 24 नवंबर को पदभार ग्रहण करेंगे। सूर्यकांत देश के 53वें मुख्य न्यायाधीश होंगे और उनका कार्यकाल लगभग 14 महीने का रहेगा। वे 9 फरवरी 2027 को सेवानिवृत्त होंगे। यह पहली बार है जब हरियाणा से कोई न्यायाधीश भारत के सर्वोच्च न्यायिक पद पर पहुंचेगा। 

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सीजेआई गवई ने दो दिन पहले ही न्यायमूर्ति सूर्यकांत की सिफारिश केंद्र सरकार को भेजी थी। उन्होंने उन्हें हर दृष्टि से सक्षम और संवेदनशील न्यायाधीश बताया था जो समाज के उन वर्गों के दर्द को समझ सकते हैं जिनके अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायपालिका बनी है।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत का जन्म 10 फरवरी 1962 को हरियाणा के हिसार जिले के पेटवार गांव में हुआ। वे पांच भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं। उनके पिता संस्कृत शिक्षक थे और माता गृहिणी हैं। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल से प्राप्त की और 1981 में हिसार के गवर्नमेंट पीजी कॉलेज से स्नातक किया था। इसके बाद उन्होंने 1984 में रोहतक के महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री ली थी। अपने न्यायिक करियर के वर्षों बाद भी उन्होंने शिक्षा जारी रखी और 2011 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से एलएलएम में फर्स्ट क्लास हासिल किया। उन्हें जीवन भर सीखते रहने में विश्वास है, वे अकादमिक अनुशासन और जिज्ञासा के प्रतीक माने जाते हैं।

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सूर्यकांत ने 1984 में हिसार जिला न्यायालय से वकालत की शुरुआत की थी। अगले साल वह चंडीगढ़ स्थानांतरित हो गए  जहां उन्होंने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में संवैधानिक, सेवा और सिविल मामलों में अपनी मजबूत पहचान बनाई। उस दौरान उन्होंने कई विश्वविद्यालयों, सरकारी संस्थानों और निगमों की पैरवी की थी।

जुलाई 2000 में सिर्फ 38 वर्ष की उम्र में उन्हें हरियाणा का महाधिवक्ता नियुक्त किया गया था। यह पद संभालने वाले वे सबसे युवा व्यक्ति थे। अगले वर्ष उन्हें सीनियर एडवोकेट का दर्जा मिला। जनवरी 2004 में उन्हें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। कहा जाता है कि उन्होंने यह पद स्वयं नहीं मांगा था। बल्कि, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ए.बी. साहारिया के आग्रह पर उन्होंने यह जिम्मेदारी स्वीकार की थी। यह मानते हुए कि न्यायपालिका में योगदान देना उनके लिए संस्थान के प्रति नैतिक ऋण चुकाने जैसा था।

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उच्च न्यायालय में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले दिए थे। इनमें जेल बंदियों के वैवाहिक अधिकार को मानव गरिमा और पारिवारिक जीवन का हिस्सा मानना, 2017 में डेरा सच्चा सौदा हिंसा के बाद सिरसा स्थित आश्रम की सफाई और निगरानी का आदेश और पंजाब, हरियाणा तथा चंडीगढ़ में नशे के खिलाफ समन्वित कार्रवाई के लिए कई निर्देश जारी करना शामिल है।

अक्टूबर 2018 में उन्हें हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया। यहां उन्होंने न्यायिक पारदर्शिता, प्रशासनिक स्पष्टता और वकीलों के साथ खुले संवाद को प्राथमिकता दी। वे अक्सर कहते हैं कि जिला न्यायपालिका ही असली न्याय प्रणाली का आईना है। मई 2019 में वे सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बने। छह वर्षों में उन्होंने 300 से अधिक फैसले दिए हैं, जिनमें कई संवैधानिक और प्रशासनिक मुद्दे शामिल रहे हैं।