किसान आंदोलन फ्लैशबैक: आजाद भारत का सबसे बड़ा आंदोलन, जानें पिछले डेढ़ साल में कब क्या हुआ

दुनियाभर में हाल के वर्षों में इस तरह का यह पहला मामला है जहां किसी मुद्दे पर इतनी लंबी लड़ाई लड़ी गई, किसान सत्याग्रह की शुरुआत से लेकर आंदोलन के खात्मे तक के सभी महत्वपूर्ण डेवलपमेंट

Updated: Dec 09, 2021, 12:27 PM IST

Photo Courtesy: The Indian Express
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नई दिल्ली। आजद भारत के इतिहास का सबसे लंबे आंदोलन की समाप्ति का 9 दिसंबर को औपचारिक ऐलान हो गया। किसानों का यह आंदोलन बेहद मुश्किलों और कठिनाइयों से जूझते हुए एक नतीजे पर पहुंचा है। इस दौरान देश के किसानों को पानी की बौछारें, आंसू गैस के गोले, आतंकवादी और खालिस्तानी जैसे संबोधनों के प्रहार और न जाने क्या-क्या झेलना पड़ा। यहां तक कि इनपर गाडियां भी चला दी गई। इस अभूतपूर्व आंदोलन के शुरुआत से लेकर अंत तक हम पाठकों के लिए किसान आंदोलन से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण घटनाओं का फ्लैशबैक लेकर आए हैं।

जानें कब क्या हुआ

05 जून 2020: इस दिन भारत सरकार ने तीन कृषि अध्यादेशों को राजपत्र में प्रकाशित किया।

14 सितंबर 2020: संसद के मॉनसून सत्र के दौरान केंद्र सरकार ने तीनों कृषि विधेयकों को पेश किया।

17 सितंबर 2020: विपक्ष के हंगामे के बीच लोकसभा में बिना चर्चा के पारित हुए तीनों विवादित कानून।

20 सितंबर 2020: राज्यसभा में भी हंगामे के बीच ध्वनिमत से तीनों कानून पारित कर दिया गया। यहां भी चर्चा नहीं हुई।

24 सितंबर 2020: केंद्र के खिलाफ आक्रोशित किसानों ने तीन दिवसीय रेल रोको आंदोलन शुरू कर दिया।

25 सितंबर 2020: अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बैनर तले सड़कों पर उतरे देशभर के किसान।

26 नवंबर 2020: दिल्ली कूच कर रहे किसानों पर अंबाला में ठंडे पानी की बौछार हुई, फिर भी बढ़ते रहे किसान, पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे, लेकिन काफिला नहीं रुका और वे दिल्ली बॉर्डर तक पहूंच गए। 

3 और 5 दिसंबर को किसानों और सरकार के बीच पहली और दूसरी राउंड की बैठक हुई, कोई परिणाम नहीं आया।

8 दिसंबर 2020: भारत बंद का आह्वान, देशभर में फैला किसान आंदोलन, एकजुट होकर दर्जनों राज्यों में किसानों ने दिखाई अपनी ताकत।

9 दिसंबर को किसानों ने कृषि कानूनों में संशोधन के प्रस्ताव को ठुकराया और कानून वापसी की मांग हुई। 11 दिसंबर को भारतीय किसान यूनियन ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

13 दिसंबर 2020: केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि किसान आंदोलन में टुकड़े-टुकड़े गैंग का हाथ

21 दिसंबर को किसानों ने एक दिवसीय भूख हड़ताल की और 30 दिसंबर तक सरकार और किसानों के 6 राउंड की बातचीत विफल रही।

26 जनवरी 2021: गणतंत्र दिवस के दिन किसानों का ट्रैक्टर मार्च, लाल किले पर हंगामा, पुलिस और किसानों के बीच झड़प। बीजेपी नेताओं ने किसानों को खालिस्तान होने की संज्ञा दी। 

5 दिसंबर को किसान टूलकिट मामले में दिल्ली पुलिस ने देशद्रोह के तहत मुकदमा दर्ज किया, 6 दिसंबर को किसानों का देशव्यापी चक्का जाम।

14 फरवरी 2021: किसान टूलकिट मामले में एक्टिविस्ट दिशा रवि की गिरफ्तारी, 23 को दिशा को जमानत मिला।

7 अगस्त 2021: 14 विपक्षी दलों के नेताओं ने संसद भवन में बैठक की और जंतर मंतर पर आयोजित किसान संसद में शामिल हुए। इसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी समेत कई दिग्गज शामिल हुए।

5 सितंबर 2021: मुजफ्फरनगर में किसानों ने महापंचायत बुलाई जिसमें लाखों की संख्या में किसान शामिल हुए। यहीं से उत्तर प्रदेश चुनाव में किसान आंदोलन के प्रभाव का आंकलन शुरू हुआ।

3 अक्टूबर 2021: उत्तर प्रदेश के लखीमपुर में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री टेनि के बेटे ने किसानों पर बेरहमी से थार चढ़ा दी। इस घटना ने किसानों को आक्रोशित कर दिया। 

19 नवंबर 2021: किसान आंदोलन के एक साल पूरा होने से हफ्तेभर पहले प्रधानमंत्री मोदी टीवी पर आए और उन्होंने तीनों कृषि कानून वापस लेने का ऐलान किया। लेकिन किसान एमएसपी सहित अन्य मांगों को लेकर आंदोलन पर अड़े रहे।

29 नवंबर 2021: संसद में शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन सरकार के तीनों कानूनों को वापस लिया। इस दौरान भी चर्चा नहीं हुई और विपक्ष ने हंगामा किया।

1 दिसंबर 2021: तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने वाले बिल पर राष्ट्रपति कोविंद ने हस्ताक्षर किया। इसी के साथ तीनों कानून आधिकारिक रूप से रद्द हो गए।

9 दिसंबर 2021: केंद्र सरकार ने लिखित रूप से किसानों को प्रस्ताव भेजकर बताया कि वह किसानों की सभी मांगें मानने को तैयार है। किसानों ने बैठक के बाद आंदोलन वापस लेने का निर्णय लिया।

11 दिसंबर को सभी किसान विजय जुलूस निकालते हुए अपने-अपने घर जाएंगे।

आंदोलन के दौरान देश सबसे भीषण कोरोना आपदा का भी गवाह बना लेकिन जान की परवाह किए बगैर किसान अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए डटे थे। यह कल्पना कर पाना भी बेहद मुश्किल है कि एक-एक दिन किसानों ने कितने दुःख और तकलीफ से काटे होंगे। इस आंदोलन में 700 से अधिक किसानों को जान गंवाना पड़ा। लेकिन सत्याग्रह की ताकत ने सरकार को न सिर्फ विवादित कानूनों को रद्द करने बल्कि किसानों के सभी मांगों को मानने पर मजबूर कर दिया।