वोटर लिस्ट बनाना और बदलना सिर्फ हमारा काम, सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप उचित नहीं: चुनाव आयोग
चुनाव आयोग ने कहा कि पूरे देश में समय-समय पर स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) कराना हमारा विशेषाधिकार है। कोर्ट इसका निर्देश देगी तो ये अधिकार में दखल होगा।

नई दिल्ली। बिहार में वोटर पुनरीक्षण के मामले में पर देश की दो बड़ी संवैधानिक संस्थाएं आमने-सामने आ गए हैं। निर्वाचन आयोग ने वोटर लिस्ट बनाने से लेकर स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को अपना विशेषाधिकार बताया है। आयोग ने कहा कि इसमें सुप्रीम कोर्ट का दखल उचित नहीं है।
चुनाव आयोग ने कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार वोटर लिस्ट बनाना और उसमें समय-समय पर बदलाव करना सिर्फ चुनाव आयोग (EC) का अधिकार है। यह काम न किसी और संस्था और न ही अदालत को दिया जा सकता।
चुनाव आयोग ने कहा कि हम अपनी जिम्मेदारी समझते हैं और वोटर लिस्ट को पारदर्शी रखने के लिए लगातार काम करते हैं। यह हलफनामा एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर दायर किया गया था। याचिका में मांग की गई थी कि चुनाव आयोग को भारत में विशेष रूप से चुनावों से पहले SIR कराने का निर्देश दिया जाए, ताकि देश की राजनीति और नीति केवल भारतीय नागरिक ही तय करें।
आयोग ने अपने हलफनामे में कहा कि धारा 21 के मुताबिक, वोटर लिस्ट में बदलाव करने की कोई तय समय सीमा नहीं है। बल्कि ये सामान्य जिम्मेदारी है, जिसे हर आम चुनाव, विधानसभा चुनाव या किसी सीट के खाली होने पर होने वाले उपचुनाव से पहले पूरा करना जरूरी है। नियम 25 से साफ है कि मतदाता सूची में थोड़ा-बहुत या बड़े स्तर पर बदलाव करना है या नहीं, यह पूरी तरह चुनाव आयोग के फैसले पर निर्भर करता है।
आयोग ने आगे कहा कि मतदाता सूची को सही और भरोसेमंद रखना चुनाव आयोग की कानूनी जिम्मेदारी है। इसलिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के तहत 24 जून 2025 के SIR आदेश के मुताबिक अलग-अलग राज्यों में SIR कराने का फैसला किया है। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के अनुसार आयोग को छूट है कि वह तय करे कि कब समरी रिवीजन किया जाए और कब इंटेंसिव रिवीजन।
इससे पहले 8 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बिहार में जारी SIR प्रक्रिया में आधार कार्ड को पहचान प्रमाण के तौर पर अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए। चुनाव आयोग को 9 सितंबर तक इस निर्देश को लागू करने का निर्देश दिया था। हालांकि अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है। कोर्ट ने EC को निर्देश दिया कि वह वोटर सूची में नाम जुड़वाते समय दिए गए आधार नंबर की प्रामाणिकता की जांच कर सकता है।