जिंदगी दो या घर जाने दो

मुम्बई। देश में लागू लॉक डाउन में फंसे प्रवासी मजदूरों की इन दिनों बस एक ही चाहत है कि सरकार या तो उन्हें जिंदा रहने के लिए पर्याप्त भोजन दे दे या फिर उन्हें उनके घर जाने दे।
लॉक डाउन के बाद से देश के अधिकांश हिस्सों से मजदूरों के पलायन की खबरें आती रही हैं। अपने घर और अपनों के बीच पहुंचने के लिए लोगों ने सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा की। पिछले कुछ दिनों से मजदूरों के पलायन की खबरें धीरे धीरे कम हो गई थीं। पर मंगलवार को एक बार फिर देश के अलग अलग हिस्सों से मजदूरों के घर जाने के लिए इकट्ठा होने की तस्वीरे सामने आने लगीं। मुम्बई, सूरत, अहमदाबाद, हैदराबाद में बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर घर जाने या पर्याप्त भोजन की मांग को लेकर जमा हो गए। मंगलवार को मुम्बई के बांद्रा पश्चिम स्टेशन पर दोपहर के वक़्त बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर घर जाने की आस में जमा हो गए। ऐसी ही स्थिति सूरत और अहमदाबाद में दिखी। मजदूरों को लग रहा था कि 14 अप्रैल को लॉक डाउन का आखिरी दिन है। कल से ट्रेनें चलने लगेंगी और वे अपने घर जा सकेंगे। दरअसल, देशव्यापी लॉक डाउन की वजह से रोजाना कमाने खाने वाले मजदूरों को काफी दिक्कत हो रही है। उन्हें कहीं काम नही मिल रहा है, उनके सामने खाने का संकट खड़ा हो गया है। राज्य सरकारें कोशिश तो कर रही हैं पर उनकी कोशिश हजारों लोगों के लिए नाकाफी साबित हो रहा है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आज दोपहर करीब 3 हजार मजदूर बांद्रा बस स्टॉप के पास इकट्ठा हो गए। उनकी मांग थी कि यूपी, बिहार जाने के लिए ट्रेनें चलाई जाए जिससे कि वो अपने गांव घर जा सकें। पुलिस के अनुसार अधिकांश मजदूर बांद्रा के पास स्थित पटेल नगरी झुग्गी बस्ती के रहने वाले थे। बाद में हल्का लाठी चार्ज कर पुलिस ने लोगों को यहां से तितर बितर कर दिया।
राज्य के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने इस घटना के बाद कहा कि राज्य सरकार प्रवासी मजदूरों की देखभाल में सक्षम है, किसी को खाने पीने की दिक्कत नहीं होने दी जाएगी। राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भी मजदूरों से लॉक डाउन के दौरान घरों में ही रहने की अपील की है। उन्होंने ने भी मजदूरों को किसी तरह की तकलीफ नहीं होने देने का आश्वासन दिया है।