PIB ने स्वामी विवेकानंद को लेकर बताया भ्रामक इतिहास, आपत्ति के बाद मांगी माफी
प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो ने स्वामी विवेकानंद और रमण महर्षि को बताया 1857 की क्रांति का अग्रदूत, जबकि तथ्य यह है कि 1857 की क्रांति के दौरान विवेकानंद और रमण महर्षि का जन्म भी नहीं हुआ था
नई दिल्ली। प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) स्वामी विवेकानंद और रमण महर्षि को लेकर भ्रामक इतिहास बताने को लेकर निशाने पर है। पीआईबी ने इन दोनों महापुरुषों को 1857 की क्रांति का अग्रदूत बताया है, जबकि उस दौरान इनका जन्म भी नहीं हुआ था। हालांकि, मामले पर बवाल बढ़ता देख पीआईबी ने माफी मांग ली है।
दरअसल, मंगलवार को सुबह 11 बजकर 6 मिनट पर PIB इंडिया ने एक ट्वीट किया था। इसमें दो फोटो अटैच थे। पहली फोटो में पीएम नरेंद्र मोदी की तस्वीर है वहीं दूसरी फोटो में ऐतिहासिक संदर्भों का उल्लेख है। पीएम मोदी की तस्वीर पर लिखा है 'न्यू इंडिया समाचार'। यह पीआईबी की पाक्षिक पत्रिका का नाम और तस्वीर जनवरी माह के पहले अंक के मुख्य पृष्ठ की है। इस अंक में कवर स्टोरी छपी है उसका टाइटल 'AMRIT YEAR: TOWARDS A GOLDEN ERA' है।
पीआईबी ने ट्वीट के कैप्शन में लिखा है कि, 'स्वतंत्रता आंदोलन में आम लोगों की बहुत भागीदारी रही है, लेकिन उनमें से कई लोगों को भुला दिया गया है। इन गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों पर ध्यान केंद्रित करने के उद्देश्य से अमृत महोत्सव समारोह शुरू किया गया है।' पीआईबी ने इस पत्रिका में छपे 'Inspiration from history' शीर्षक वाले पन्ने को साझा किया है।
अंग्रेजी में लिखे इस आर्टिकल के अंदर एक पैराग्राफ में भक्ति आंदोलन का जिक्र है और उसे गोल्डन पीरियड के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसमें लिखा है कि, 'भक्ति आंदोलन से भारत में स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत हुई। भक्ति युग के दौरान, इस देश के संत चाहे वह स्वामी विवेकानंद, चैतन्य महाप्रभु, रमण महर्षि हों, आध्यात्मिक चेतना को लेकर चिंतित थे। भक्ति आंदोलन ने 1857 के विद्रोह में अग्रदूत की भूमिका निभाई।'
सावरकर की लिखी 1857 का स्वातंत्र्य समर भी पढ़ लेते तो इतना मूर्खतापूर्ण न लिखते सरकारी इतिहासकार
— Ashok Kumar Pandey अशोक اشوک (@Ashok_Kashmir) January 12, 2022
सूर कबीर तुलसी रसखान मीराँ के भक्ति आंदोलन में विवेकानंद को जोड़ दिया और उसको 1857 से
सावरकर ने तो फ़क़ीरों और मस्जिदों की भूमिका भी बताई थी। नफ़रत तो जेल से निकलने के बाद शुरू की। pic.twitter.com/gKqIr2tsac
हालांकि, यदि इतिहास के पन्नों को पलटा जाए तो यह दावा बिल्कुल गलत है। स्वामी विवेकानंद और रमण महर्षि ने 1857 के आंदोलन में कोई भूमिका नहीं निभाई थी। क्योंकि ये दोनों महापुरुष तब पैदा भी नहीं हुए थे। स्वामी विवेकानंद की जन्मतिथि 12 जनवरी, 1863 बताई जाती है। साथ ही रमण महर्षि 30 दिसंबर 1879 को जन्मे थे। स्पष्ट है कि इस क्रांति के 6 साल बाद विवेकानंद और 22 साल बाद रमण महर्षि का जन्म हुआ था। ऐसे में यह कतई संभव नहीं हो सकता है कि जिसका जन्म भी न हुआ हो वह किसी आंदोलन का नेतृत्व करे। जबकि, चैतन्य महाप्रभु का जन्म 18 फरवरी 1486 बताया जाता है यानी वे 1857 कि क्रांति से सदियों पहले पैदा हुआ थे और स्वाभाविक रूप से तब जीवित नहीं थे।
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इतिहासकारों से लेकर विपक्षी नेताओं ने पीआईबी के इस भ्रामक दावे की आलोचना की है। पीआईबी के इस दावे को लोग भूल नहीं बल्कि ऐतिहासिक तथ्यों के साथ छेड़छाड़ करने की कुत्सित मानसिकता करार दे रहे हैं। बता दें कि प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) भारत सरकार की मीडिया डिपार्टमेंट है। पीआईबी इन दिनों सरकार विरोधी दावों का फैक्ट चेक करने को लेकर सुर्खियों में रहती है। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि दूसरों के दावों का फैक्ट चेक करने वाली संस्था गलत इतिहास कैसे पोस्ट कर सकती है।
Swami Vivekananda was born in 1863 (6 years after 1857); Ramana Maharishi was born in 1879 (22 years after 1857). But @PIB_India says they were a precursor to the ‘revolt of 1857.’ Slow claps for this degree in Entire History https://t.co/Cb6aDctH7A
— Pawan Khera (@Pawankhera) January 11, 2022
बहरहाल, सोशल मीडिया पर बवाल बढ़ने के बाद पीआईबी को बैकफुट पर आना पड़ा है। इतिहासकारों की आलोचना को देखते हुए पीआईबी ने न केवल अपनी गलती स्वीकारी है, बल्कि माफी भी मांगी है। पीआईबी ने भक्ति आंदोलन वाले पैराग्राफ से इन महापुरुषों का नाम भी हटा दिया है। हालांकि भक्ति आंदोलन को जरूर स्वतंत्रता संग्राम की नींव के रूप में पेश किया गया है।
The English version of latest issue of #NewIndiaSamachar inadvertently mentioned Swami Vivekananda and Raman Maharshi as contemporaries of Chaitanya Mahaprabhu. The error is regretted and has been corrected. The Hindi version had mentioned the facts correctly. https://t.co/NB9Ho4miG6 pic.twitter.com/yqcW9PoXD9
— PIB India (@PIB_India) January 11, 2022
इतिहासकारों का मानना है कि भक्ति आंदोलन एक सामाजिक आंदोलन था जो संभवत: छठीं-सातवीं शताब्दी के आसपास तमिलनाडु से शुरू हुआ था। यह आंदोलन कविताओं के माध्यम से काफी लोकप्रिय हुआ। 13 वीं शताब्दी तक यह आंदोलन महाराष्ट्र पहुंच चुका था और बाद में उत्तर भारत में भी लोकप्रिय हुआ। उत्तर भारत में भी 17वीं शताब्दी तक यह खत्म हो चुका था। यह पूरा समय अवधि भक्ति काल, स्वर्णकाल अथवा लोक जागरण काल के रूप में इतिहास में दर्ज है।