किसान आंदोलन में शामिल संत राम सिंह ने जान दी, सुसाइड नोट में लिखा किसानों पर ज़ुल्म हो रहा
Sant Baba Ram Singh: सुसाइड नोट में संत बाबा राम सिंह ने किसानों पर सरकार के जुल्म के खिलाफ जान देने की बात लिखी है, बाबा राम सिंह किसान होने के साथ ही हरियाणा SGPC के नेता थे

नई दिल्ली। नरेंद्र मोदी सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ 21 दिनों से जारी किसानों के आंदोलन में शामिल एक सिख संत बाबा राम सिंह ने बुधवार को दिल्ली-हरियाणा के सिंघु बॉर्डर पर खुद को गोली मारकर खुदकुशी कर ली। संत बाबा राम सिंह ने करनाल के रहने वाले थे। उनका एक सुसाइड नोट भी सामने आया है, जिसमें उन्होंने किसानों के साथ नाइंसाफी होने के खिलाफ शहादत देने की बात लिखी है।
पुलिस के मुताबिक 65 साल के बाबा राम सिंह को पानीपत के पार्क अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। सोनीपत के डेप्युटी पुलिस कमिश्नर श्याम लाल पूनिया के मुताबिक उनके पार्थिव शरीर को करनाल भेजा गया है जहां वो रहते थे। बाबा राम सिंह संत होने के साथ ही साथ एक किसान थे और हरियाणा एसजीपीसी के नेता थे। कुछ खबरों में यह भी बताया गया है कि वे नानकसर, सिंघड़ा में एक गुरुद्वारे के प्रमुख भी थे।
बाबा राम सिंह का जो सुसाइड नोट मिला है, उसमें लिखा है, 'मैं किसानों की तकलीफ को महसूस करता हूं जो अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। मैं उनका दुख समझता हूं। सरकार उनके साथ न्याय नहीं कर रही। वो अपना हक लेने के लिए सड़कों पर हैं। बहुत दिल दुखा है। सरकार न्याय नहीं दे रही। जुल्म है। जुल्म करना पाप है, जुल्म सहना भी पाप है। किसानों के समर्थन में कुछ लोगों ने सरकार को अपने पुरस्कार लौटा दिए, मैंने खुद को ही कुर्बान करने का फैसला किया है। यह जुल्म के खिलाफ आवाज़ है। वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह।'
कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के कारण अभी तक कई किसान अपनी जान गंवा चुके हैं। सोमवार को दो, मंगलवार को एक किसान और अब बुधवार को संत बाबा राम सिंह की मौत हुई है। सोमवार की देर रात को पटियाला जिले के सफेद गांव में एक सड़क हादसा हो गया था, जिसमें दिल्ली से धरना देकर लौट रहे दो किसानों की मौत हो गई थी। मंगलवार को सिंघु बॉर्डर के उषा टॉवर के सामने एक किसान की मौत हो गई। मृतक किसान की पहचान गुरमीत निवासी मोहाली (उम्र 70 साल) के रूप में हुई।
21 दिनों से जारी है आंदोलन
कृषि कानूनों के खिलाफ 21 दिनों से दिल्ली के बॉर्डर पर किसान प्रदर्शन कर रहे हैं। सरकार और किसानों में कई दौर की वार्ता हो चुकी। सभी बेनतीजा रहीं। किसान तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े हैं। लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं है। बुधवार को संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से सरकार को लिखित जवाब भी दिया गया। जिसमें किसान मोर्चा ने सरकार से अपील की है कि वो उनके आंदोलन को बदनाम ना करें और अगर बात करनी है तो सभी किसानों से एक साथ बात करें।
इस बीच, किसान आंदोलन को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई हुई। अदालत ने कहा है कि वो किसान संगठनों का पक्ष सुनेगी, साथ ही सरकार से पूछा कि अब तक समझौता क्यों नहीं हुआ। अदालत ने सरकार और किसानों के प्रतिनिधियों की एक कमेटी बनाने का प्रस्ताव दिया है ताकि दोनों आपस में चर्चा करके किसी नतीजे तक पहुंच सकें।