भारत में कम हो रहा है एंटीबायोटिक दवाओं का असर, ICMR के अध्‍ययन में बड़ा खुलासा

आईसीएमआर की स्टडी में पता चला है कि देश में अब एंटीबायोटिक दवाओं का असर कम होता जा रहा है, ऐसा ही रहा तो महामारी भी फैल सकती है

Updated: Sep 11, 2022, 05:16 AM IST

नई दिल्ली। यदि आप भी अक्सर बीमार पड़ते हैं अथवा चोटिल होते हैं तो इलाज के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का सहारा लेते हैं। आपको यह जानकर आश्‍चर्य होगा कि अब एंटीबायोटिक दवाओं का असर कम होता जा रहा है। यह खुलासा भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के नए शोध में हुआ है।

आईसीयू पहुंचे निमोनिया और सेप्टिसीमिया मरीजों के इलाज के लिए कार्बापेनम दवा दी जाती है। यह बहुत शक्तिशाली एंटीबायोटिक है। लेकिन भारत में कई मरीजों पर अब यह काम नहीं कर रही है। कार्बापेनम अकेली दवा नहीं है जो बेकार साबित हो रही है। कई बैक्टीरियल संक्रमण में माइनोसाइक्लिन, इरिथोमाइसिन, क्लिंडामाइसिन जैसी कई दवाएं बहुत से मरीजों पर अब काम नहीं कर रहीं।

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दुनियाभर में एंटीबायोटिक के बेअसर होने को लेकर इस तरह की रिपोर्ट लगातार आ रही हैं। सबसे चिंताजनक बात यह है कि इन दवाओं के बेअसर होने से दुनियाभर में लाखों लोगों की मौत हो रही है। साल 2019 में एंटीबायोटिक दवाओं के असर को लेकर एक स्टडी हुई थी। स्टडी में सामने आया था कि उस साल दुनिया भर में 12 लाख लोगों की मौत ऐसे बैक्टिरिया से हुए संक्रमण के कारण हुई जिन पर दवाओं का असर नहीं हुआ। 

मेडिकल टर्म में दवाओं के असर नहीं करने की स्थिति को एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR) कहा जाता है। ऐसा उस स्थिति में होता है जब बैक्टिरिया, वायरस, फंगस या पैरासाइट समय के साथ बदलते रहते हैं। ऐसी स्थिति में उन पर दवाओं का असर नहीं होता है। ऐसे में निर्धारित बीमारी के लिए दी जाने वाली दवाई रोगी पर असर नहीं करती है। इसका परिणाम होता है कि संक्रमण से उसकी मौत हो जाती।

ICMR की सीनियर साइंटिस्ट डॉ कामिनी वालिया ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि, 'सुधार के लिए जल्द ही कदम नहीं उठाए, तो एंटी माइक्रोबियल रजिस्टेंस निकट भविष्य में एक महामारी का रूप ले सकता है। हर साल 5 से 10 प्रतिशत की दर से यह रजिस्टेंस बढ़ रहा है। इनकी वजह से भारत में बड़े स्तर पर डायरिया भी फैल सकता है।'