दफ्तर दरबारी: कैलाश विजयवर्गीय क्‍यों बोले कि अफसरों की मालिश बंद करो

बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने ब्‍यूरोक्रेसी को वहां आईना दिखाया जहां अफसरों का जय-जयकार हो रहा था। दूसरी तरफ, इंदौर में एमपीसीए पर नगर निगम की कार्रवाई को बीजेपी की राजनीति में आकार ले रहे नए 'याराना' पर हमला माना जा रहा है।

Updated: Oct 10, 2022, 11:26 AM IST

ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया और कैलाश विजयवर्गीय
ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया और कैलाश विजयवर्गीय

मध्‍य प्रदेश में 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं। बीजेपी मिशन 2023 को पूरा करने में जुटी है। सरकार और संगठन की रीत-नीतियों को देख कर लगता है, कड़वा-कड़वा थूं-थूं, मीठा-मीठा गप-गप। यह कहावत इसलिए याद आई क्‍यों काम न होने पर जहां ठीकरा ब्‍यूरोक्रेसी के सिर पर फोड़ा जाता है तो काम होने का श्रेय नेताओं के खाते में न जाने की बेचैनी भी है। अभी यह मामला इसलिए चर्चा में है क्‍योंकि कैलाश विजयवर्गीय जैसे कद्दावर नेता ने अफसरशाही पर सवाल उठाए हैं। 

बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय न केवल तीखा बोले बल्कि ऐसी जगह बोले जहां अफसरों का जय-जयकार हो रहा था। स्वच्छता में देशभर में शहर के लगातार छठे साल अव्वल रहने पर आयोजित कार्यक्रम में हर कोई कह रहा था कि अफसरों ने शहर की सूरत बदल दी। तब कैलाश विजयवर्गीय ने नेताओं और कर्मचारियों के लिए मोर्चा खोल दिया। उन्होंने कहा कि जनता के कारण स्वच्छता में इंदौर देश में सबसे आगे है, अफसरों की वजह से नहीं। सफाई में इंदौर नंबर वन है तो उसका श्रेय सफाई मित्रों और शहर की जनता को जाता है, अधिकारियों को नहीं। मीडिया को भी अधिकारियों की ज्यादा मॉलिश नहीं करना चाहिए। 

कैलाश विजयवर्गीय ने लगभग चुनौती देने वाले अंदाज में कहा कि यदि अधिकारियों में दम होता तो इंदौर के तत्कालीन निगमायुक्त यहां के बाद उज्जैन कलेक्टर बने थे। उज्जैन के वर्तमान कलेक्टर भी इंदौर के निगमायुक्त रह चुके हैं। उन्हें तो अमिताभ बच्चन ने अवार्ड भी दिया था। दोनों अफसर उज्जैन को स्वच्छता में नंबर वन क्‍यों नहीं बना पाए? 

इतना ही नहीं, अफसर, नेता और मीडियाकर्मियों तीनों ही की उपस्थिति में कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि मैं कड़वी बात बोल रहा हूं। हो सकता है कि किसी को बात बुरी भी लगे, लेकिन यह कहना जरूरी है। मेरे अलावा किसी और में ताकत भी नहीं है कि ऐसा बोल सके।

ऐसा कहते हुए कैलाश विजयवर्गीय ने उन जनप्रतिनिधियों की पीड़ा को आवाज दे दी है जो ब्‍यूरोक्रेसी के हावी होने के कारण घुटन महसूस कर रहे हैं। बीजेपी सरकार पर लंबे समय से यह आरोप लग रहा है कि नौकरशाही के हौंसले इतने बुलंद हैं कि जनप्रतिनिधियों का सम्‍मान पीछे छूट गया है। सरकार अफसरों के भरोसे है और नेता हाशिए पर। संगठन की बैठक में बीजेपी पदाधिकारी खुल कर तथा बैठकों में मंत्री दबे-खुले स्‍वरों में अफसरों के हावी होने की शिकायतों करते रहे हैं।

ऐसे में जब कैलाश विजयवर्गीय कहते हैं कि काम करने का श्रेय अफसरों को नहीं है नेताओं व जनता को है तो बीजेपी का एक धड़ा चैन अनुभव करता है कि कोई तो हावी हुई अफसरशाही को आईना दिखा रहा है। वरना, इंदौर ही क्‍या किसी भी जिले व मंत्रालय में सरकार के प्रिय अफसरों को कौन कुछ कह पाया है? 

क्‍या ये बीजेपी में परवान चढ़ते नए याराना पर आघात है?  

अफसरों की मन‍मर्जियों की बात चली है तो इंदौर के ही एक और मामला छाया रहा। यह क्रिकेट की पिच पर राजनीति और उसके भी आगे अफसरों के मुफ्त पास के लालच की अंतर्कथा है। यूं तो ईडी-सीबीआई जैसी संस्‍थाओं के राजनीतिक इस्‍तेमाल के आरोप लगते रहे हैं। स्‍थानीय स्‍तर पर नगर निगम प्रशासन भी राजनीतिक मंशा से काम करते हुए देखा गया है।

मगर संभवत: यह पहला मामला होगा जब सत्‍ताधारी दल के प्रभावी व्‍यक्तियों पर ‘बदले’ की कार्रवाई की गई हो। और बकौल पीडि़त पक्ष यह बदले की कार्रवाई ‘मुफ्त’ का पास न देने का कारण हुई है। आरोप में कितना दम है, यह तो दोनों पक्ष जाने मगर इससे इंदौर की छिछालेदारी जरूर हुई है।   

मामला भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच तीन मैचों की टी-20 सीरीज के मैच का है। सीरीज का तीसरा मैच इंदौर में खेला गया। मगर इस मैच के पहले राजनीतिक-प्रशासनिक गेंदबाजी हुई। मैच के पहले नगर निगम की टीम ने मध्य प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (एमपीसीए) के दफ्तर पहुंची और लगभग छापे की शक्‍ल में कार्रवाई करते हुए बकाया टैक्स भरने का दबाव बनाया। मामला इतना सीधा नहीं है। एमपीसीए के पास टैक्‍स भरने के लिए 31 मार्च 2023 तक का समय था, फिर अन्‍य बकायेदारों को महीनों याद न रखने वाले निगम प्रशासन ने एमपीसीए पर ही ‘छापेमारी’ क्‍योंकि? वह भी समय सीमा के पहले। 

एमपीसीए के अध्यक्ष अभिलाष खांडेकर का मुख्य सचिव को लिखा पत्र इस ओर संकेत करता है। अभिलाष खांडेकर ने लिखा कि एमपीसीए के दफ्तर में छापा मारा गया, जबकि 31 मार्च 2023 तक भुगतान करने का वक्त था। इंदौर की छवि बचाने के लिए हमें 32 लाख रुपये का भुगतान करना पड़ा। इंदौर नगर निगम ने एक अंतरराष्ट्रीय मैच से एक दिन पहले यह कार्रवाई की, जबकि संगठन ने इससे पहले कभी भी कोई गलती नहीं की थी। निगम में पदस्‍थ युवा आईएएस अधिकारियों को क्रिकेट मैच के कुछ पास चाहिए थे। परंपरा और शिष्टाचार के नाते निगम आयुक्त प्रतिभा पाल को 25 पास भिजवा दिए थे। इसके बाद भी यह छापेमारी आश्चर्यजनक है।

एमपीसीए के अध्‍यक्ष का यह आरोप संगीन है। खासकर उसी हफ्ते जब कैलाश विजयवर्गीय जैसे नेता अफसरों की जयजयकार नहीं करने की सलाह दे रहे थे।  एमपीसीए के अध्यक्ष अभिलाष खांडेकर के पत्र के बाद एमपीसीए पर ताबड़तोड हमले हुए। मैच के टिकट ब्लैक में बेचे जाने का आरोप लगा। आरोपों के इस दंगल में नए महापौर खामोश रहे। अब पड़ताल की जा रही है कि जिस एमपीसीए से कैलाश विजयवर्गीय और केंद्रीय मंत्री ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया जैसे कद्दावर नेता जुड़े हों उस संगठन पर बिना कोई अवैधानिक कार्य हुए कार्रवाई करने की शक्ति निगम अधिकारियों में कहां से आई? इसे केवल प्रशासनिक मामला नहीं माना जाना चाहिए।

आकलन है कि यह वास्‍तव में बीजेपी की अंदरूनी लड़ाई का हिस्‍सा है जिसके तहत क्रिकेट की पिच पर दांव आजमाए गए। क्रिकेट और राजनीति में कभी एक दूसरे के आमने सामने रहने वाले ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया और कैलाश विजयवर्गीय आज भले ही एक दल में हो लेकिन क्रिकेट में वर्चस्‍व की लड़ाई वैसी ही बनी हुई है। इसलिए इस आकलन में दम है कि सिंधिया खेमे के अधिकार वाले एमपीसीए की मुश्किलें बड़ा कर राजनीतिक संदेश दिया गया है। यह दोनों नेताओं के बीच गाढ़ी होती दोस्‍ती पर भी हमला माना जा रहा है।  तभी तो अफसरों पर गंभीर आरोप लगा, मगर अफसरों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।  

अफसरों द्वारा अड़चन पैदा करने की कोशिशों के बाद भी मैच तो हो गया और भारत हार भी गया लेकिन इस राजनीति मुकाबले का अभी इंटरवेल ही हुआ है। हमें किसी और पेस अटैक को देखने के लिए तैयार रहना चाहिए। 

अफसर हटे तो आतिशबाजी का राज क्‍या है? 

मध्‍य प्रदेश में ऐसे अनेक किस्‍से हैं जब अफसरों ने अपने काम से जनता का दिल जीता और उस लोकप्रिय अफसर के तबादले पर लोग फूट फूट कर रोये हैं। शिक्षक से लेकर कलेक्‍टर तक ऐसे कर्मचारियो के बीसियों उदाहरण हैं जब जनता तबादला रूकवाने के लिए स़ड़क पर उतर आई है। मगर उज्‍जैन में जो हुआ ऐसे उदाहरण मिलना मुश्किल है। उज्‍जैन में निगम आयुक्‍त के तबादले पर खुशियां ही नहीं मनी बल्कि प्रसन्‍नता में निगम कार्यालय पर आतिशबाजी कर जश्‍न मनाया गया। 

मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जब उज्‍जैन नगर निगम आयुक्त अंशुल गुप्ता को हटाने का आदेश दिया तो अचानक हुए इस तबादले ने सभी को चौंका दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के ठीक पहले अफसर बदला गया जबकि ऐसे मामलों में डेमेज कंट्रोल तथा व्‍यवस्‍था सुधार को प्राथमिकता दी जाती है।  बताया गया कि आईएएस अधिकारी अंशुल गुप्ता की कार्यप्रणाली से विभाग के मंत्री भूपेंद्र सिंह नाराज थे। घाट पर सफाई न देख मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान नाराज हुए और मौका देखते हुए पुरानी शिकायतें आगे बढ़ा दी गईं। इन शिकायतों में आग में घी का काम किया और अंशुल गुप्‍ता का तबादला हो गया। 

राजनीतिक खबरी बताते हैं कि वास्‍तव नगर निगम में ‘सफाई’ ही आयुक्त अंशुल गुप्ता को भारी पड़ी।  उनके तबादले की खबर आने पर नगर निगम के जिन कर्मचारियों और ठेकेदारों को ढोल धमाके के साथ नगर निगम के गेट पर आतिशबाजी की, वे ही अंशुल गुप्‍ता के निशाने पर थे। गुप्‍ता काकस को तोड़ कर नया सिस्‍टम बना रहे थे जो रसूखदारों को चुभ रहा था। ऐसे में ज्‍यों ही पीएम नरेंद्र मोदी की यात्रा को लेकर मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सक्रियता दिखाई, मामूली चूक को सामने लाते हुए अफसर की रवानगी करवा दी गई। अब अफसर जा चुके हैं और वे लोग खुश दिखाई दे रहे हैं जो उनके सफाई अभियान से कष्‍ट में थे। 

आईएएस को राहत, आईपीएस को चार महीनों से पोस्टिंग का इंतजार 

क्‍या आईएएस को सरकार के करीब रहने का ज्‍यादा फायदा मिलता है? यह सवाल इसलिए कि मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नाराजगी के बाद जिन आईएएस अफसरों को मैदान से हटाया गया है, उन्‍हें तो जल्‍द नई पोस्टिंग मिल गई लेकिन वरिष्‍ठ आईपीएस अब तक नया पद मिलने का इंतजार कर रहे हैं। प्रतीक्षा करते हुए चार माह हुए लेकिन उनका इंतजार खत्‍म ही नहीं हो रहा है। 

सामान्‍य प्रशासन विभाग ने झाबुआ कलेक्टर के पद से हटाकर मंत्रालय में अटैच किए गए 2013 बैच के आईएएस अधिकारी सोमेश मिश्रा को तकनीकी शिक्षा, कौशल विकास एवं रोजगार विभाग में उप-सचिव बनाने के आदेश जारी किए हैं। इसके साथ ही राजभवन में उप सचिव रहे 2012 बैच के धरणेन्द्र कुमार जैन को लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग में उप सचिव बनाया गया है। ये दोनों अधिकारी हटाए जाने के बाद नई पोस्टिंग का इंतजार कर रहे थे। 

ऐसी किस्‍मत आईपीएस की नहीं है। कथित शिकायतों पर हटाए गए परिवहन आयुक्त मुकेश जैन को फिलहाल पोस्टिंग के लिए इंतजार करना पड़ सकता है। 1989 बैच के आईपीएस मुकेश जैन 16 मई 2022 को हटाए गए थे। उनके पहले ग्‍वालियर के आईजी अनिल शर्मा को लापरवाही के आरोप में 14 मई 2022 को हटा दिया गया था। वे तब से अपनी पोस्टिंग का इंतजार कर रहे हैं। झाबुआ के एसपी अरविंद तिवारी को भी आदिवासी छात्रों के साथ दुर्व्‍यवहार पर हटा दिया गया था। तीन अफसरों को पोस्टिंग का इंतजार है।

10 अक्‍टूबर को सुबह की बैठक में मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ऐसे अफसरों की ‘कुंडली’ बनाने को कहा है जिनका रिकार्ड खराब है। ऐसे अफसरों की मैदानी पोस्टिंग नहीं होगी। मुख्‍यमंत्री चौहान के तेवर को देखते हुए तो लगता है कि हटाए गए आईपीएस को पोस्टिंग के लिए और इंतजार करना होगा।