दफ्तर दरबारी: कभी इन आईएएस की तूती बोलती थी आज अदने बाबुओं ने किया परेशान

कहते हैं समरथ को नहीं दोष गुंसाई... मगर जब सामर्थ्‍य चुकता है तो दुर्दिन भी आने में देरी नहीं करते हैं। ऐसी ही कुछ हुआ मध्‍य प्रदेश के प्रशासनिक जगत के ऐसे दो किरदारों के साथ जिनकी तूती बोलती थी। मुख्य सचिव स्‍तर के इन पूर्व अधिकारियों को ‘अदने’ समझे जाने बाबुओं की टिप ने उलझा दिया है।

Updated: Jun 25, 2022, 08:44 AM IST

पूर्व मुख्‍य सचिव आईएएस आदित्‍य विजय सिंह
पूर्व मुख्‍य सचिव आईएएस आदित्‍य विजय सिंह

प्रशा‍सनिक जगत में मुख्‍य सचिव से बड़ा कोई नहीं होता है और जब बात पूर्व सीएस आदित्य विजय सिंह यानि एवी सिंह और एसीएस राधेश्याम जुलानिया की हो तो इनके जलवों के किस्‍से इसके रिटायर होने के बरसों बाद भी आम हैं। एक दौर गुजरा है जब इन अफसरों के इशारों से प्रशासन चलता था। रसूख ऐसा कि लोग पनाह मांगते थे। मगर चढ़ता सूरज भी एक दिन ढल जाता है। और जब सूरज ढला तो इन अफसरों को दुर्दिन ने घेर लिया। और यह मुसीबत भी आई ऐसे ‘बाबुओं’ के कारण जिन्‍हें इन आईएएस अधिकारियों ने कभी महत्‍व ही नहीं दिया। 

सबसे पहले बात पूर्व मुख्‍य सचिव एवी सिंह की। एवी के नाम से मशहूर आदित्‍य विजय सिंह अचानक चर्चा में आए क्‍योंकि भोपाल के कोलार डेम के पास बने उनके रिसोर्ट रातापानी जंगल लॉज को अवैध मान लिया गया। सीहोर वनमंडल ने इस रिसोर्ट को वन भूमि में बना होना बताते हुए सिंह के बेटे को नोटिस भेज कर कोई भी गैर वानिकी कार्य करने से रोक दिया है।

अपनी तरह से काम करने के आदी आदित्‍य विजय सिंह यानि एवी के लिए तो यह नागवार गुजरा कि वीरपुर वन परिक्षेत्र का एक रेंजर उन्‍हें नोटिस थमा दे। नोटिस से आदित्य विजय सिंह नाराज हो गए। उन्‍होंने मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस को शिकायत कर बताया कि उन्होंने वर्ष 1989 में यह जमीन खरीदी थी और सभी अनुमतियां लेकर 2010 में रिसोर्ट शुरू किया। अब फारेस्ट रेंजर क्‍यों जागे? 

सिंह की नाराजगी का असर हुआ। प्रमुख सचिव वन ने मामले की जांच शुरू करवा दी है। 

दूसरी तरफ, पूर्व अतिरिक्‍त मुख्‍य सचिव आईएएस राधेश्याम जुलानिया और उनकी पत्नी अनिता जुलानिया भी कोर्ट केस में उलझे हैं। वे अवैध व बिना अनुमति निर्माण के आरोप झेल रहे  हैं। जुलानिया ने बरखेड़ी खुर्द गांव में स्थित व्हीसप्रिंग पॉल्मस कॉलोनी में 10 हजार वर्गफीट के प्लॉट पर 600 वर्गफीट निर्माण की अनुमति मिली थी। आरोप है कि उन्होंने लगभग 7000 वर्गफीट निर्माण कर लिया है। कोर्ट की सख्‍ती हुई तो  नगर निगम ने अवैध निर्माण के लिए आर्किटेक्ट को दोषी बताते हुए उनके पंजीयन निरस्त करने की चेतावनी दी है।

आईएएस जुलानिया भी अपनी प्रशासनिक सख्‍ती के कारण जाने जाते हैं। आतंक इतना था कि कई अफसर उनके सामने जाने से बचते थे। मगर अब नियमों में घिरे हैं तो नगर निगम के छोटे अफसर की टीप भी उनका तनाव बढ़ा सकती है। 

खासबात यह है ये दो आईएएस ही नहीं, मुख्‍य सचिव इकबाल सिंह बैंस सहित कई आईएएस ने केरवा क्षेत्र में जमीन ली है और निर्माण किए हैं। देखना होगा कि आईएएस के रसूख के आगे अदना समझे जाने वाले बाबुओं का ‘एक्‍शन’ फाइलों में कैद हो कर रह जाता है या निर्माण जमींदोज होता है। 

अफसर क्‍यों भूल रहे नियम बनाना, बोझ या सुस्‍ती?

आंकड़ें बताते हैं कि मध्‍य प्रदेश मंत्रालय में कुशल अफसरों और उनके अंडर में श्रेष्‍ठ कर्मचारियों की कमी है। मगर यह कमी क्‍या इतनी है कि अफसर विधानसभा में पास कानूनों के आधार पर नियम बनाना भी भूल जाएं? उनकी नींद जब टूटे जब आपदा से घिर चुके हों या संकट सिर पर खड़ा हो। बाबूशाही की यह लापरवाही सरकार की किरकिरी तो करवा ही रही है। 

प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव के मतदान में कुछ ही दिन बचे हैं और राजधानी भोपाल में मंत्रालय में अफसर सरकार को किरकिरी से बचाने के प्रयास में जुटे हैं। वे नगर पालिका और नगर परिषद के अध्यक्ष पदों की आयु घटाने के लिए सरकार नियमों में संशोधन के लिए अध्यादेश लाने की तैयारी कर रहे हैं। सरकार अध्यक्ष पदों के लिए आयु की सीमा 25 वर्ष से घटाकर 21 वर्ष करेगी। 

असल में प्रदेश के नगरीय निकाय चुनाव में पार्षद के लिए पात्रता आयु 21 वर्ष निर्धारित है, लेकिन अध्यक्ष बनने के लिए पात्रता आयु 25 वर्ष या इससे अधिक तय है। ऐसे में 25 वर्ष से कम आयु वाला युवा पार्षद तो बन सकता है मगर अध्यक्ष नहीं बन सकता है। जब 2019 में पार्षद के लिए न्‍यूनतम उम्र का निर्धारण हो रहा था तभी यह गड़बड़ी पकड़ ली जानी थी। मगर अफसरों ने इस तरफ ध्‍यान ही नहीं दिया। अब जब आग लगी है तब वे कुआं खोदने की तैयारी कर रहे हैं। 

ऐसे लापरवाही और सुस्‍ती का यह पहला मामला नहीं है। इसके पहले सरकारी व निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के कानून में भी ऐसा ही हुआ था। शिवराज सरकार ने सरकारी व निजी संपत्ति नुकसान की वसूली (संशोधन) विधेयक 2021 विधानसभा के शीतकालीन सत्र में दिसंबर 2021 में   बहुमत से पारित हुआ था। इसके बाद इसका राजपत्र में प्रकाशन भी किया गया था। इसके मुताबिक मध्यप्रदेश में अब सांप्रदायिक दंगे, हड़ताल, धरना- प्रदर्शन या जुलूस के दौरान पत्थरबाजी करने वाले या सरकारी और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ इस कानून के तहत एक्शन लिया जाएगा। तब ही कानून भी बन जाना था लेकिन आईएएस अफसर भूल गए। 

इस कानून के नियम नहीं बने हैं यह बात तब याद आई जब अप्रैल 2022 में खरगोन हिंसा के दौरान 30 से अधिक मकानों-दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया। खरगोन दंगे के बाद नियम बनाने की प्रक्रिया तेजी से शुरू की गई ताकि आरोपियों से नुकसान की वसूली हो सके। 

हालांकि, बड़े बाबू कहे जाने वाले आईएएस अफसरों की इस लापरवाही पर यह कह कर पर्दा डाला जा रहा है कि मंत्रालय में कुशल व अनुभवी कर्मचारियों का टोटा है। कर्मचारी लगातार रिटायर हो रहे हैं और उनके विकल्‍प है नहीं। आंकड़े बताते हैं कि 2025 तक मध्य प्रदेश के सरकारी विभागों से लगभग 2.63 लाख कर्मचारी यानी लगभग 60 फीसदी से अधिक कर्मचारी रिटायर होने वाले हैं। पदोन्‍नति में आरक्षण विवाद और नई भर्तियां न होने से कुशल कर्मचारियों का संकट है। 

सामान्‍य प्रशासन विभाग ने 2017 में पदेन उप सचिव, अवर सचिव और अनुभाग अधिकारी के खाली पदों पर रिटायर कर्मचारियों की संविदा नियुक्त का प्रस्‍ताव तैयार किया था मगर यह रास्‍ता भी काम नहीं आया। और इस तरह, कभी बेहतर प्रशासनिक कौशल के लिए पहचानी जाने वाली एमपी की ब्‍यूरोक्रेसी अब लापरवाही के कारण चर्चा में आ रही है। 

एसडीएम साहब का जलवा, जनप्रतिनिधियों को दिखाया बुलडोजर का डर 

कहते हैं, नेता जनता के सेवक होते हैं और अफसर इस काम में जनप्रतिनिधियों के सहायक। मगर मध्‍य प्रदेश में जारी पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव में अलग ही तस्‍वीर सामने आ रही है। कई क्षेत्रों से शिकायत पहुंची है कि प्रशासन चुनिंदा नेताओं के दबाव में काम कर रहा है। अफसर मैदान में डटे नेताओं पर दबाव बना रहे हैं कि वे चुनाव न लड़ें। देवास में एक नेत्री नाम वापस लेने के इतने दबाव में थी कि कलेक्‍टोरेट में ही गश खा कर गिर पड़ी़।

इन्‍हीं खबरों के बीच एक खबर वायरल हुई कि मुरैना जिले के अम्बाह के एसडीएम ने भावी सरपंच, पंच और जनपद प्रतिनिधियों को अफसरी अंदाज में धमकाया। तमाम बाधाओं को पार कर किसी तरह चुनाव मैदान में उतरी महिला प्रत्याशियों व उनके प्रस्तावकों की बैठक में एसडीएम साहब खुल कर बोले। वे यहां तक कह गए कि महिला प्रत्याशियों को ध्यान रखना है कि अगर उनके परिजनों ने कोई गड़बड़ की तो ऐसी कार्रवाई होगीकि वे अपने मायके में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगी। भाई और भतीजे पूछेंगे कि बहन, बुआ आपने ऐसा क्यों किया। इसलिए अगर उनके ससुर, पति या परिजन गड़बड़ी करने की कोशिश भी करें तो महिला प्रत्याशी एसडीएम को आवेदन दे दें कि वे चुनाव नहीं लड़ रही हैं। 

बताते हैं कि एसडीएम राजीव समाधिया ने कहा कि प्रत्याशियों और परिजनों के गले में बांड भरने का पट्टा है। इसलिए गड़बड़ी की तो राशि जब्त करने के साथ ही छह माह की जेल और मकान पर बुल्डोजर चलना तय है। सामान्य तौर पर हम किसी को छेड़ते नहीं हैं, लेकिन महत्वपूर्ण समय पर हम किसी को छोड़ते भी नहीं है। चुनाव महत्वपूर्ण है, इसलिए गड़बड़ी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। मकानों पर बुलडोजर चलेंगे।

यूपी की देखादेखी बुलडोजर चलवाने के फेर में अफसर पहले ही मध्‍य प्रदेश सरकार की बदनाम करवा चुके हैं और अब ये साहब भावी जनप्रतिनिधियों से इस भाषा में बात कर लालफीताशाही का चरित्र उजागर कर रहे हैं।