दफ्तर दरबारी: निवेश की चमक पर नाराजगी की उदासी, सजा मिलेगी या शाबाशी
MP News: प्रवासी सम्मेलन में मेहमानों की नाराजगी से उभरी खराश अब भी कायम है। यह उदासी ग्लोबल इनवेस्टर्स समिट की चमक पर भारी पड़ी है। आयोजन की जिम्मेदारी निभानेवाले अफसर और उनके चाहने वाले खुश हैं कि साहब को इस सफलता पर शाबाशी मिलेगी। दूसरी तरफ इंदौर की छवि बिगाड़ने के दोषियों को सजा मिलने का भी इंतजार किया जा रहा है।

इंदौर में दो बड़े आयोजन हुए। प्रवासी भारतीय सम्मेलन और ग्लोबल इनवेस्टर्स समिट का आयोजन नाम का सवाल था। इसीलिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने न केवल अपने श्रेष्ठ अफसरों को मैदान में उतारा था बल्कि आयोजन को पूरी तरह से सफल बनाने में ताकत झोंक दी थी। सरकार कह रही है कि समिट में 15 लाख 42 हजार 514 करोड़ रुपए के निवेश प्रस्ताव मिले है। इससे 29 लाख रोजगार के नए अवसर सृजित होने की उम्मीद है। इन आयोजनों की बागडोर संभाल रहे अफसरों में इस सफलता से प्रसन्नता तो है मगर इस खुशी में प्रवासी भारतीयों की नाराजगी से उपजी उदासी भी शामिल है।
प्रवासी भारतीय सम्मेलन में शामिल होने आए प्रवासी मेहमाननवाजी से खुश नजर आए। सभी की चाहत थी कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रत्यक्ष सुनें। मगर जब प्रवासी भारतीय पीएम मोदी का भाषण सुनने और समारोह में शामिल होने पहुंचे तो पता चला कि हॉल छोटा पड़ गया। बैठने की जगह नहीं मिली। अतिथियों को प्रवेश द्वार पर रोकना पड़ा। पास के हॉल में स्क्रीन लगा कर पीए मोदी का भाषण दिखाने/ सुनाने की व्यवस्था की गई। मगर इससे मेहमान नाराज हो गए। नाराजगी जाहिर करते प्रवासियों के वीडियो भी वायरल हुए।
बात मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक पहुंची। उन्होंने प्रवासी अतिथियों को हुई इस असुविधा पर खेद व्यक्त जताते हुए सार्वजनिक रूप से माफी मांगी। उन्होंने कहा कि अगर कोई असुविधा हुई है तो मैं दोनों हाथ जोड़कर आपसे माफी मांगता हूं। हमारे प्यार को दिल में रखकर जाइए और हमें क्षमा कर दीजिए।
मुखिया का यूं माफी मांगना आयोजन की सारी चमक पर भारी पड़ा। मुद्दा यह है कि जब प्रवासी भारतीयों की अनुमानित संख्या 3500 थी तो हॉल में इस अनुपात में इंतजाम क्यों नहीं हुए? यह आरोप क्यों लगे कि स्थानीय नेताओं को जगह दे दी गई जबकि प्रवासी भारतीय बाहर छूट गए? आयोजन में मुख्य भूमिका निभाने वाले महापौर पुष्यमित्र भार्गव कैसे नजरअंदाज हुए? ऐसे सवाल उठना लाजमी है।
प्रवासी सम्मेलन हुआ और अगले दो दिन निवेशकों ने मध्य प्रदेश में निवेश की कल्पनातीत रूचि दिखाई। आयोजन की जिम्मेदारी निभाने वाले अफसर और उनके चाहने वाले खुश हैं कि साहब को इस सफलता पर शाबाशी मिलेगी। दूसरी तरफ इंदौर की छवि बिगाड़ने के दोषियों को सजा मिलने का भी इंतजार किया जा रहा है। नजरें टिकी हैं कि किससे हिस्से सजा आती है और किसके हिस्से में प्रसाद आता है।
जब आईपीएस सेवा में थे तब दाग अच्छे थे?
कभी ताकत का पर्याय रहे प्रदेश के आधा दर्जन आईपीएस के सितारे गर्दिश में हैं। लोकायुक्त ने पूर्व जेल डीजी संजय चौधरी और उनकी सास के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का केस दर्ज किया है। करीब दो साल पहले लोकायुक्त को संजय चौधरी के पास आय से अधिक संपत्ति होने की शिकायत मिली थी।
लोकायुक्त पुलिस में 3 साल पहले भी उनके खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतें हुई थीं। आरोप थे कि जब संजय चौधरी खेल विभाग में डायरेक्टर थे तब उन्होंने कई तरह के घोटाले किए। उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला मध्यप्रदेश विधानसभा में भी उठ चुका है। उसके बाद जांच के लिए कमेटी भी बनी थी, लेकिन बात आई गई हो गई।
संजय चौधरी के पहले तीन आईपीएस अधिकारी बी मधुकुमार, संजय माने और सुशोभन बैनर्जी के नाम तत्कालीन कमलनाथ सरकार के करीबियों पर आयकर छापे से जुड़ी सीबीडीटी की रिपोर्ट में आए थे। तब से रिटायर्ड होने के बाद अफसरों के भत्ते, पेंशन रोक दी गई थी। आयकर छापे की अंतिम रिपोर्ट में इन तीनों आईपीएस का नाम नहीं है। रिटायर्ड हो चुके आईपीएस संजय माने को उम्मीद थी कि फाइनल रिपोर्ट के बाद राज्य सरकार पूरी पेंशन व अन्य राशि का भुगतान कर देगी। लेकिन फैसला हुआ नहीं। अब रिटायरमेंट के एक वर्ष बाद सीनियर आईपीएस संजय माने ने नियमानुसार 90 प्रतिशत पेंशन देने की गुहार लगाई है।
दूसरी खबर है कि सरकार के दो वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों को चार्जशीट देने की तैयारी में है। इनमें एक आईपीएस राजेंद्र कुमार मिश्रा पिछले दिनों स्पेशल डीजी के पद से रिटायर हुए हैं। बताया जाता है कि साइबर क्राइम में पदस्थापना के समय पुणे की एक महिला की गिरफ्तारी के मामले में महिला की बेटी ने इन अफसरों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। कोर्ट के आदेश का हवाला देकर स्पेशल डीजी राजेन्द्र कुमार मिश्रा को रिटायरमेंट के एक दिन पहले शोकॉज नोटिस जारी किया गया। उनके साथ ही अनिल गुप्ता एडीजी टेक्निकल सर्विस पीएचक्यू को भी शोकॉज दिया गया था।
प्रशासनिक जगत में यह चर्चा है कि जो अफसर नौकरी के दौरान सरकार को प्रिय होते हैं वही रिटायरमेंट के बाद निशाने पर क्यों आ जाते हैं? सेवा के दौरान लगे आरोपों पर उस वक्त चुप्पी होती है और रिटायर होते ही सारे दाग दिखाई देने लगते हैं।
आईपीएस को अच्छा होना पड़ा भारी
चुनाव सिर पर है और बीजेपी सरकार किसी तरह की लापरवाही नहीं चाहती है। अफसरों की मैदानी जमावट भी सरकार के नफा-नुकसान देख कर की जा रही है। इस कवायद में एक आईपीएस को मन मार कर रह जाना पड़ा है। वे इतने अजीज हैं कि उन्हें सरकार फिलहाल मन की करने की इजाजत नहीं दे रही है।
लंबे इंतजार के बाद जब दिसंबर 2021 में जब भोपाल और इंदौर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू की गई थी तब मकरंद देउस्कर को भोपाल और हरिनारायणचारी मिश्र को इंदौर का पुलिस कमिश्नर बनाया गया था। मकरंद देउस्कर 1997 बैच के आईपीएस अफसर हैं। मुख्यमंत्री के ओएसडी रहे मकरंद देउस्कर सीएम के सबसे भरोसेमंद अफसरों में से एक है। वहीं, हरिनारायणचारी मिश्र 2003 बैच के आईपीएस अफसर हैं।
दोनों ही अफसरों की अच्छी छवि इस नियुक्ति में सहायक बनी थी। मगर अब यही अच्छी छवि बाधा बन गई है। भोपाल के पुलिस कमिश्नर मकरंद देउस्कर प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली जाने का मन बना चुके हैं। उन्होंने पीएचक्यू में अपने मुखिया से इस बारे में चर्चा भी कर ली थी। पॉजीटिव संकेत के बाद फाइल आगे बढ़ाई गई मगर राज्य सरकार ने प्रतिनियुक्ति पर जोन की स्वीकृति नहीं दी है। सरकार का मानना है कि मकरंद देउस्कर जैसी छवि के आईपीएस अफसर का अभी मैदान में होना जरूरी है। यह भी संभव है कि आईपीएस अफसरों की प्रस्तावित पोस्टिंग में उन्हें कोई और जिम्मेदारी दे दी जाए मगर दिल्ली जाने पर तो फिलहाल ब्रेक ही है।
जिसने सम्मान किया उसकी साथ महिला आईएएस का बुरा बर्ताव क्यों?
छिंदवाड़ा कलेक्टर आईएएस शीतला पटेल फिर चर्चा में हैं। गरीबों को कंबल बंटवा कर संवेदनशीलता के कारण चर्चा में आई शीतल पटेल इस बार मंत्री दर्जा प्राप्त बीजेपी के वरिष्ठ नेत गौरीशंकर बिसेन के निशाने पर आ गईं। छिंदवाड़ा में कलेक्टर शीतला पटेल ने मिलने के लिए मध्य प्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष गौरीशंकर बिसेन को इतना इन्तजार करवाया कि वे भड़क गए।
मंत्री दर्जा प्राप्त वरिष्ठ नेता बिबिसेन ने भरी बैठक में पत्रकारों से कहा कि कलेक्टर को आने की फुर्सत नहीं है। 2 दिन बहाना करती रही, कल आऊंगी। अभी तक पता नहीं है। मुझे लगता था कि बालाघाट की लड़की है कुछ काम करेगी, और मुझे खुशी थी कि मेरे समाज की लड़की है तो और काम करेगी।
नाराज बिसेन ने याद दिलाया कि वे कलेक्टर के बचपन को जानते हैं, उनकी शिक्षा को जानते हैं। परिवार को जानते हैं। आईएएस बनी थीं तब बिसेन ने सम्मान किया था। फिर ऐसा क्या हुआ कि कलेक्टर अपने ही जिले के वरिष्ठ बीजेपी नेता का अपमान कर गई। क्या यह भी वैसा ही है जैसा कि बीजेपी के अन्य नेता भी आरोप लगाते हैं कि अफसर उनकी सुनते नहीं हैं।