दफ्तर दरबारी: कलेक्टरी हॉर्सपावर से भी नहीं जल पा रही व्यवस्था की बत्ती
MP News: मध्य प्रदेश का प्रशासनिक वर्क कल्चर क्या खत्म हो रहा है? ट्यूबलाइट बन चुकी व्यवस्था को जलाने के लिए सुपर पॉवर कहे जाने वाले कलेक्टर को अपने 10 हजार वोल्ट से ज्यादा का करंट लगाना पड़ रहा है। एक सीनियर आईएएस अपने पुराने खत और ताजा व्यवहार के कारण चर्चा में आ गई हैं तो सरकार कह रहे हैं जो दरबारी नहीं बनेगा उसे दफ्तर से बेदखल कर दिया जाएगा।

मध्य प्रदेश में राजनीतिक सौहार्द्र की ही नहीं प्रशासनिक वर्क कल्चर की भी देश भर में प्रशंसा की जाती रही है मगर अब हालात ऐसे हो गए हैं कि बिगड़े तंत्र के लिए नाम गिनना हो तो मध्य प्रदेश का नाम उस सूची में अव्वल होगा। अब ये दिन आ गए हैं कि जिले का राजा और सर्वेसर्वा कहे जाने वाले कलेक्टर को अपने दफ्तर की गुल बत्ती जलाने के लिए 440 नहीं बल्कि 10 हजार वोल्ट के हाई पॉवर का इस्तेमाल करना पड़ा रहा है।
मामला ग्वालियर का है। शिवपुरी से स्थानांतरित हो कर ग्वालियर पहुंचे कलेक्टर अक्षय कुमार सिंह चर्चा में हैं क्योंकि कभी वे कहते हैं कि सिस्टम का पूरा सपोर्ट नहीं मिल रहा है। कभी लापरवाह 19 अफसरों को नोटिस दे कर उनकी सूची सार्वजनिक कर देते हैं। ताजा मामला कलेक्टर कार्यालय की स्ट्रीट लाइट का है।
कलेक्टर अक्षय कुमार सिंह का एक आदेश वायरल हो रहा है जिसमें उन्होंने ग्वालियर नगर निगम आयुक्त तथा स्मार्ट सिटी के मुख्य कार्यपालन अधिकारी को लिखा है कि कलेक्टर कार्यालय में लगी 20 स्ट्रीट लाइट को चालू करवाने के लिए समन्वय से कार्य करें। खास बात यह है कि कलेक्टर ने लिखा है कि स्ट्रीट लाइट कई दिनों से बंद है और कई बार कहने के बाद भी स्ट्रीट लाइट चालू नहीं हो रही है।
जिस बात को कलेक्टर मौखिक भी कह सकते थे उसके लिए आदेश निकालने की जरूरत आन पड़ी इसका मतलब है कि व्यवस्था ट्यूबलाइट हो गई है जो देरी से ही जलती है। कलेक्टर का मौखिक आदेश ही व्यवस्था में 440 वोल्ट के करंट जितना पॉवरफुल होता है लेकिन यहां तो आदेश जारी करने जैसे 10 हजार वोल्ट के करंट का इस्तेमाल करना पड़ गया है। यह कलेक्टरी का हाई पॉवर भी सिस्टम की ट्यूबलाइट को चालू नहीं कर पा रहा है।
व्यवस्था की स्टील फ्रेम में जंग
कलेक्टरी के पॉवर से भी सिस्टम की ट्यूबलाइट नहीं जल रही है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि निचला तंत्र ही खराब है। इसका एक अर्थ यह भी है कि व्यवस्था की स्टील फ्रेम में जंग लग चुकी है। स्टील फ्रेम यानी आईएएस, भारतीय प्रशासनिक सेवा। जहां एक ओर, ग्वालियर कलेक्टर अक्षय कुमार सिंह अपने पत्र के कारण चर्चा में आए वहीं सतना कलेक्टर अनुराग वर्मा व नगर निगम कमिश्नर राजेश शाही की आरएसएस के कार्यक्रम में भाग लेने की तस्वीरें वायरल हो गईं। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने सवाल उठाते हुए कहा कि ऐसे अफसरों से निष्पक्ष चुनाव कराने की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
दूसरी तरफ तेज तर्रात आईएएस वाणिज्य कर विभाग तथा महिला एवं बाल विकास विभाग की प्रमुख सचिव दीपाली रस्तोगी अपने एक पुराने लेख के कारण सवालों से घिर गई। असल में एक आलेख वायरल हुआ जो 2018 में एक अंग्रेजी अखबार में प्रकाशित हुआ था। आलेख में आईएएस दीपाली रस्तोगी ने नौकरशाहों की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए लिखा था कि अच्छा आईएएस अधिकारी वही माना जाता है, जो नेता की इच्छा के अनुरूप काम करे। नेताओं के डर से ऐसे अधिकारी मुंह नहीं खोलते। समाज सेवा करने के लिए बने आईएएस सेवा का व्यवहार ही नहीं करते।
उन्होंने यह लेख लिखा तब वे प्रमुख पद पर नहीं थीं। उनके पति आईएएस मनीष रस्तोगी भी ई टेंडर घोटाला उजागर करने के कारण सरकार की आंख की किरकिरी बने हुए थे। अब मनीष रस्तोगी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रमुख सचिव हैं तो दीपाली रस्तोगी वाणिज्य कर तथा महिला एवं बाल विकास विभाग की प्रमुख सचिव हैं। वे खुद तो काफी सख्त हैं मगर उनके विभाग के हाल ऐसे हैं कि मुखिया की सख्ती से कोई डरता नहीं। ऐसे में वायरल लेख से उन्हीं पर सवाल उठ रहे हैं कि जो कभी ताव दिखाते थे वहीं कुम्हलाए हुए हैं।
जो दरबारी न बना उसे दफ्तर कर देंगे बेदखल
विधानसभा चुनाव करीब हैं और बीजेपी की चिंता यह कि मैदानी स्थिति संभाले नहीं संभल रही हैं। नाराज वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को मनाने के लिए प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा सहभोज का एक दौर पूरा कर चुके हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी ताबड़तोड़ नाराज नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं। अब मुख्यमंत्री निवास में बीजेपी कोर कमेटियों की बैठक जारी है। खबरें हैं कि इन बैठकों में बीजेपी नेता अपनी बरसों पुरानी शिकायतें दोहरा रहे हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इन शिकायतों से आजिज आ कर यहां तक कह दिया है कि सरकार है तो शिकायत भी कर पा रहे हो। सरकार नहीं रहेगी तो किससे कहोगे? इसलिए सरकार बनवाने में जुट जाओ। जवाब में बीजेपी नेता कह रहे हैं कि जब अफसर उनकी सुनते नहीं है, जनता के काम होते नहीं हैं तो वोट किस मुंह से मांगे?
अफसरों द्वारा सुनवाई नहीं होने की शिकायत इतनी हो गई है कि मुख्यमंत्री चौहान को कहना पड़ा है कि अधिकारियों से शिकायत है तो नाम बताओ, जिस अफसर को कहोगे बदल दिया जाएगा। मतलब जो बीजेपी के राजनीतिक समीकरणों को नहीं साधेगा, जो दरबारी नहीं बनेगा उसे दफ्तर से बेदखल कर दिया जाएगा और ऐसे अफसर की बेदखली के लिए बीजेपी कार्यकर्ता पूरा जोर लगा देंगे।
सतपुड़ा की आग में खाक हुए भ्रष्टाचार के सबूत
सतपड़ा भवन में आग से स्वास्थ्य विभाग में हुए भ्रष्टाचार की फाइलों के जल जाने के आरोप लग रहे हैं। हर कोई मानता है कि आग लगी नहीं है बल्कि लगाई गई ताकि संकट में डालने वाले दस्तावेजों का निशान भी न रहे। सरकार कह रही है कि आग में जली सारी महत्वपूर्ण फाइल का कहीं न कहीं बैकअप या कॉपी है और उसे किसी तरह रिकवर कर लिया जाएगा। मगर असली सवाल तो उन सबूतों का जल जाना है जिनके आधार पर आदिवासी विभाग में भ्रष्टाचार की शिकायत हुई थी।
सतपुड़ा भवन की आग जिस तृतीय तल के आदिवासी क्षेत्रीय विकास योजनाओं के संचालनालय से लगना शुरू हुई थी वहां के भ्रष्टाचार की शिकायतें लंबित हैं। इस दफ्तर की साज सज्जा में 90 लाख रुपए खर्च हुए थे और आरोप लगे थे कि इस काम में बड़ा भ्रष्टाचार हुआ है। इस भ्रष्टाचार की शिकायत की गई थीं लेकिन शिकायतों की जांच भी नहीं हुई और सबूत ही जल गए। अब शिकायत की फाइल किस काम की जब भ्रष्टाचार का सबूत कहे जाने वाला रिनावेशन ही जल गया। अब न बांस है, न बांसुरी। हुए न भ्रष्टाचारी सुरक्षित।