जी भाईसाहब जी: किसकी कुर्सी, किसके साथ, राज और नीति का गुणा भाग
MP Politics: राजनीति हो या प्रशासन, किसकी कुर्सी कहां लगी है, इस बात से व्यक्ति का कद तय होता है। एक खास कुर्सी मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से दूर चली गई थी वह फिर पास आ गई है। इस राज और नीति के गुणा भाग के अपने अपने अर्थ निकाले जा रहे हैं।
प्रदेश के राजनीतिक मुखिया मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव समय के साथ अपने रंग में आ रहे हैं। मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने अपनी अलग छवि बनाने के लिए कुछ चौंकाने वाले काम किए थे। दबंग छवि दिखाने का एक काम था प्रशासनिक कसावट लाना। अफसरों को लापरवाही की सजा देने के लिए पूरे के पूरे परिवहन विभाग को बदल देने जैसे निर्णय इस दिशा में उनके शुरुआती फैसले थे। ऐसी एक दृश्य तब बना जब कैबिनेट बैठक का नजारा बदला दिखाई दिया।
जिस तरह से बीजेपी संगठन ने नए चेहरे के रूप में डॉ. मोहन यादव को मुख्यमंत्री चुन कर जितना चौंकाया था उतना ही अचरज तब हुआ जब कैबिनेट बैठक में मुख्य सचिव की कुर्सी को पीछे कर दिया गया। जब सालों पुरानी परंपरा है कि कैबिनेट मीटिंग में सीएम के दाहिनी ओर मुख्य सचिव की कुर्सी लगाई जाती है। यह एक तरह से प्रशासनिक मुखिया को सम्मान देने तथा निर्णयों को लागू करने में प्रशासनिक प्रतिबद्धता का प्रतीक भी है। यह मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के बीच समन्वय का संदेश भी होता है।
लेकिन जब मोहन यादव सरकार में मुख्य सचिव की कुर्सी पीछे कर दी गई तो यह सरकार में मुख्य सचिव के दबदबे को कम करने का जतन माना गया। तत्कालीन मुख्यसचिव वीरा राणा ने इसे स्वीकार भी किया। जब दिल्ली से भेजे गए आईएएस अनुराग जैन ने कार्यभार संभाला तब सभी की निगाहें लगी थीं कि कुर्सी आगे आती है या पीछे। कुर्सी आगे नहीं आई। कैबिनेट बैठकों में अनुराग जैन पीछे ही बैठे। इसबीच सीएम मोहन यादव और सीएस अनुराग जैन में तालमेल पर सवाल उठे। सीएस अनुराग जैन ने अपनी कार्यशैली में प्रशासनिक सख्ती की।
कुछ प्रशासनिक निर्णयों में दोनों मुखियाओं के बीच खाई सा महसूस हुआ। यह दूरी ज्यादा बढ़ती इसके पहले मंगलवार को कैबिनेट बैठक में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने पहल कर दी। उन्होंने यह कहते हुए दूर बैठे मुख्य सचिव अनुराग जैन की कुर्सी पास लगवा दी कि ‘आपकी आवाज सुनाई नहीं देती। बाजू में आकर बैठें।’ मुख्य सचिव अनुराग जैन पीछे से उठकर मंत्रियों वाली लाइन में आकर बैठ गए।
यह आगे आना राज और नीति के बीच तालमेल का नया चेहरा है। माना गया था कि मुख्य सचिव को पीछे बैठाना आईएएस बिरादरी को रास नहीं आया था। इस बदले मिजाज के राजनीतिक और प्रशासनिक संकेत समझे जा रहे हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने पहल कर संकेत दिया है कि वे मुख्य सचिव के साथ समन्वय बनाना चाहते हैं। इस तालमले का असर अगले कुछ दिनों में होने वाली प्रशासनिक सर्जरी पर भी दिखाई देना तय है।
इंदौर पुलिस की इससे बड़ी फजीहत क्या?
सांडों की लड़ाई में बागड़ का नुकसान वाली कहावत इंदौर पुलिस के लिए उपयुक्त है। एक तो पुलिस पर पहले ही राजनीतिक दबाव में काम करने के आरोप लगते हैं और कुछ उसकी कार्यप्रणाली भी ऐसी है। इंदौर के दो बीजेपी पार्षदों की आपसी लड़ाई इस हद तक पहुंच गई कि एमआईसी सदस्य बीजेपी नेता जीतू यादव के समर्थकों ने दूसरे बीजेपी पार्षद कमलेश कालरा के घर पर हमला कर दिया। अपनी ही पार्टी के नेता के घर न केवल तोड़फोड़ की गई बल्कि पार्षद के नाबालिग बेटे को परिवार के सामने निर्वस्त्र कर दिया गया। महिलाओं के सामने हुए इस दुर्व्यवहार का वीडियो भी वायरल हुआ।
इस मामले पर पुलिस ने कार्रवाई तब कि जब इंदौर में राजनीतिक कोहराम मचा, सिंधी समाज सड़क पर उतरा और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सोशल मीडिया के माध्यम से सख्त कार्रवाई निर्देश दिए। चूड़ी वाला कांड में राजनीतिक दबाव से काम करने के कारण देश भर में किरकिरी झेल चुकी इंदौर पुलिस के लिए इससे शर्मनाक कुछ नहीं है कि बीच शहर में एक नाबालिग किशोर को उसके परिवार की महिलाओं के सामने निर्वस्त्र कर दिया जाता है पुलिस घंटों खामोश बैठी रहती है। वह कार्रवाई भी तब करती है जब बीजेपी नेता ही आक्रोश में आरपार की लड़ाई चुनौती देते हैं।
राजनीति गैंगवार जैसे मामलों में पुलिस की चुप्पी जनता का भरोसा तो़ड़ रही है। पुलिस की इससे बड़ी फजीहत क्या होगी? जबकि सबसे सख्त अफसर की छवि वाले आईपीएस संतोष सिंह इंदौर के पुलिस कमिश्नर हैं। इस मामले में मानव अधिकार आयोग ने पुलिस को नोटिस जारी कर अब तक की गई कार्रवाई का ब्यौरा मांगा है. इंदौर पुलिस कमिश्नर को 3 हफ्ते में जवाब देना है। पुलिस आयोग में तो जवाब दे देगी लेकिन अपनी छवि पर लगा दाग धोने और जनता का विश्वास पाने के लिए पुलिस को बरसों लगेंगे।
एक पेशी से बचाने पेशियों की लाइन लगवा दी
अक्टूबर में मुख्य सचिव पद ग्रहण करने के बाद आईएएस अनुराग जैन ने अपने अंदाज से कार्य शुरू किया था। उन्होंने जनता से मुलाकात भी की और अफसरों के कामकाज की समीक्षा भी की। मीडिया से भी भी अनौपचारिक रूप से मिलते रहे। हर काम में उनका अंदाज सख्ती वाला ही रहा। लेकिन एक निर्णय की चूक से ने केवल प्रशासनिक मुखिया को सफाई देने के लिए मजबूर होना पड़ा बल्कि सरकार की किरकिरी भी हो गई।
मामला भोपाल गैस त्रासदी से जुड़ा है। इस त्रासदी के 40 साल बाद भी सरकार कर रवैया असमंजस में डालने वाला ही है। यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे को पीथमपुर में नष्ट करने का विरोध डेढ़ दशक से हो रहा है। सरकार और प्रशासन यह जानते थे कि अब जब कचरा पीथमपुर ले जा कर जलाया जाएगा तो उसका कड़ा विरोध होगा। इसी कारण इतने दिनों तक इस मामले में कोई सक्रियता नहीं दिखाई गई।
जब कोर्ट द्वारा दी गई समय सीमा भी गुजर गई और कोर्ट की अवमानना का खतरा उपजा तो मुख्य सचिव को कोर्ट में पेशी से बचाने के लिए ताबड़तोड़ भोपाल से यूनियन कार्बाइड का कचरा पीथमपुर भेज दिया गया। प्रचार तंत्र के माध्यम से इसे सबसे बड़ी उपलब्धि बताया गया लेकिन यह जल्दबाजी आखिरकार भारी पड़ी। पीथमपुर में नागरिक भड़क गए। बीजेपी नेताओं को भी जनता के साथ आना पड़ा। आखिरकार, सरकार बैकफुट पर आई और उसने जनता को इस बारे में जागरूक करने के लिए कोर्ट से समय मांगा। कोर्ट से समय दे भी दिया है लेकिन मामले में हस्तक्षेप के लिए तैयारियां हैं।
इस पूरे मामले में विफलता का आकलन करें तो प्रशासनिक निर्णय कठघरे में खड़ा नजर आता है। समय पर कचरे का निपटारा न करने पर कोर्ट की अवमानना का मामला तय था और इसके लिए सीएस अनुराग जैन को कोर्ट में पेश होना पड़ता। प्रशासनिक मुखिया को पेशी से बचाने के लिए ताबड़तोड़ कचरा पीथमपुर भेज दिया गया।
इस निर्णय से दुबले और दो आषाढ़ वाली स्थिति बन गई। कहां तो सीएस अनुराग जैन को पेशी से बचाने का जतन किया जा रहा था कहां अब उन्हें सफाई देनी पड़ रही है। सरकार का पक्ष रखने के लिए सीएस अनुराग जैन ने मीडिया से भी बात की और अन्य प्रबंध भी संभाले।
चर्चा में ठाकुर साहब की तीन विदाई पार्टी
प्रशासनिक जगत में ठाकुर साहब नाम से चर्चित राज्य निर्वाचन आयुक्त बीपी सिंह की विदाई पार्टियां चर्चा में हैं। सेवा खत्म होने के तीन बार आसार बने और सहकर्मियों ने उन्हें विदाई दे दी। दो बार उनकी वापसी हो गई लेकिन तीसरी बार की पार्टी असली विदाई साबित हुई।
आईएएस बसंत प्रताप सिंह को 2018 में कांग्रेस सरकार ने राज्य निर्वाचन आयुक्त बनाया था। उनका कार्यकाल 30 जून 2024 को पूरा होने वाला था। सेवानिवृत्ति की तारीख समीप आने पर उन्होंने स्टॉफ को पार्टी दे दी थी। इसे विदाई पार्टी माना गया। लेकिन उनका कार्यकाल बढ़ा दिया गया। सितंबर 2024 में मुख्य सचिव वीरा राणा का कार्यकाल पूरा होना था और मुख्य सचिव को रिटायर होने के बाद उन्हें परंपरानुसार राज्य निर्वाचन आयुक्त बनाया जाएगा। माना गया कि इसीलिए बीपी सिंह को सेवावृद्धि दी गई थी।
जब 30 सितंबर करीब आई और तत्कालीन मुख्य सचिव वीरा राणा का रिटायरमेंट करीब आया तो उनका राज्य निर्वाचन आयुक्त के रूप में पुनर्वास तय मान कर तत्कालीन राज्य निर्वाचन आयुक्त बीपी सिंह ने आधिकारिक रूप से विदाई पार्टी ले ली। लेकिन आदेश जारी होते होते अटक गया और वीरा राणा को राज्य निर्वावन आयुक्त नहीं बनाया गया।
अंतत: तीन माह बाद नए साल 2025 में नए राज्य निर्वाचन आयुक्त के रूप में बीपी सिंह की सेवावृद्धि का अंत निकट आया तो नई नियुक्ति के पहले ही उन्होंने विदाई पार्टी दे कर दफ्तर छोड़ दिया। साथ में अपना सारा सामान भी वे घर ले गए। इसके बाद नए आयुक्त की नियुक्ति के आदेश जारी हुए।