जी भाईसाहब जी: छठी अनुसूची और राष्ट्रपति, राहुल गांधी व पीएम मोदी के मन में आदिवासी
Election 2024: मध्य प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में पहुंचे कांग्रेस नेता राहुल गांधी और पीएम नरेंद्र मोदी आदिवासी मतदाताओं को साधने का जतन करते नजर आए। राहुल गांधी ने छठीं अनुसूची लागू करने का वादा कर बड़ा दांव चला है। पीएम मोदी ने आदिवासी राष्ट्रपति से बात शुरू कर स्वयं को महाकाल का भक्त बताते हुए हिंदुत्व पर भी फोकस किया।

नई सरकार को चुनने की घड़ी करीब आ रही है, वैसे-वैसे हर सीट पर प्रभुत्व का संघर्ष तेज हो गया है। लोकसभा की 543 सीटों में से 47 सीट आदिवासियों के लिए आरक्षित है। मध्य प्रदेश की 21 फीसदी आबादी आदिवासियों की है। 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 163 सीटें जीती हैं और कांग्रेस को 66 सीटों पर जीत मिली हे। आदिवासियों के लिए आरक्षित 22 सीटें कांग्रेस ने तथा 24 सीटें बीजेपी के खाते में आई हैं। यही कारण है कि मध्य प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में पहुंचे कांग्रेस नेता राहुल गांधी और पीएम नरेंद्र मोदी आदिवासी मतदाताओं को साधने का जतन करते नजर आए।
सोमवार को राहुल गांधी मध्य प्रदेश के मंडला और शहडोल में थे। जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी छत्तीसगढ़ के बस्तर पहुंचे थे। पीएम मोदी ने छत्तीसगढ़ में दौरे की शुरुआत बस्तर से की क्योंकि बस्तर ठेठ आदिवासी क्षेत्र है। बस्तर के बाद पीएम मोदी महाराष्ट्र के आदिवासी इलाके चंद्रपुर पहुंचे थे। मंगलवार को वे मध्यप्रदेश के बालाघाट आए।
मंडला और शहडोल में राहुल गांधी ने आदिवासी के जंगन पर हक की बात कही। पेसा एक्ट लाने का श्रेय लेने के साथ ही छठीं अनुसूची लागू करने का वादा कर उन्होंने बड़ा दांव चला है। राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस युवाओं को रोजगार, गरीब परिवार में एक महिला को एक लाख रुपए देगी। आदिवासियों को उनका अधिकार देने के लिए हम पेसा कानून लाए, जमीन अधिग्रहण और ट्राइबल बिल लाए। अब हिंदुस्तान में जहां भी आदिवासियों की आबादी 50 फीसदी से ज्यादा है, वहां हम छठीं अनुसूची लागू करेंगे।
अगले दिन मंगलवार को बालाघाट पहुंचे पीएम मोदी ने कांग्रेस पर आदिवासियों के साथ अन्याय करने का आरोप लगाते हुए कहा, कांग्रेस ने हमारे आदिवासी भाई-बहनों को जल, जंगल, जमीन के अधिकारों से वंचित रखा था। आज 1 करोड़ से ज्यादा जनजातीय समाज के लोग पेसा कानून का लाभ ले रहे हैं। जब देश में पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति पद के लिए आगे बढ़ीं, तब कांग्रेस ने उन्हें हराने के लिए पूरी ताकत लगा दी। कांग्रेस ने कभी आदिवासी विरासत का सम्मान तक नहीं किया। कांग्रेस ने तो गोविंद गुरु जैसे क्रांतिकारी को स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा तक नहीं दिया था। कांग्रेस आजादी का श्रेय किसी आदिवासी को नहीं, अपने शाही परिवार को देना चाहती है।
खुद को महाकाल का भक्त बताते हुए पीएम मोदी ने कहा कि मोदी झुकता है तो जनता जनार्दन के सामने या महाकाल के सामने। इसतरह पीएम मोदी ने आदिवासी राष्ट्रपति से बात शुरू कर स्वयं को महाकाल का भक्त बताते हुए आदिवासी के साथ हिंदुत्व को भी साधने का काम किया है।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के अति आत्मविश्वास पर नरोत्तम मिश्रा की नसीहत
कहते हैं, इतिहास खुद को दोहराता है। या जो लोग इतिहास से कुछ नहीं सीखते हैं वे इतिहास को दोहराने के लिए अभिशप्त हैं। ऐसा ही कुछ संकेत पूर्व गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा दे रहे हैं। वे कह रहे हैं कि अति आत्मविश्वास में न रहना, वरना बनी बात बिगड़ भी सकती है। कुछ दिनों पहले उन्होंने यह सीख सागर में कार्यकर्ता सम्मेलन में दी थी। अब उन्होंने यह सीख केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को दी है। जब अनुभवी डॉ. नरोत्तम मिश्रा यह सीख दे रहे हैं तो इसका यह सामान्य बात नहीं है। इसके गहरे मंतव्य हैं।
अति आत्मविश्वास कितना घातक हो सकता है, यह डॉ. नरोत्तम मिश्रा से ज्यादा बेहतर कौन जान सकता है? पिछले वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी की भारी जीत के बाद भी तत्कालीन गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा चुनाव हार गए थे। वे अति आत्मविश्वास में थे लेकिन जीत हो न सकी। यही कारण है कि न्यू जाइनिंग टोली के मुखिया डॉ. नरोत्तम मिश्रा जब ग्वालियर में आयोजित एक कार्यक्रम में पहुंचे तो स्वयं की हार तथा पानीपत युद्ध का भी हवाला देते हुए केंद्रीय मंत्री सिंधिया को सावधान कर गए।
डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि अति आत्मविश्वास के कारण उन्हें दतिया में हार झेलनी पड़ी। अगली बात गुना से लोकसभा उम्मीदवार ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए थी। डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि पानीपत की लड़ाई में अहमद शाह अब्दाली से मराठा सैनिक जीत चुके थे लेकिन उनके सेनापति घायल सैनिकों का हाल-चाल जानने के लिए हाथी से नीचे उतर गए। इतने में ही बाजी पलट गई। सेना को लगा कि सेनापति दुश्मन के हाथों मारे गए हैं या घायल हो गए या तो उन्हें बंदी बना लिया गया है। वहां भगदड़ मच गई और मराठा सेना हार गई। डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने इतना कहते ही सिंधिया की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह उनके राजवंश से जुड़ा मामला है, वे बेहतर जानते हैं।
डॉ. नरोत्तम अनुभवी नेता हैं। उनकी इस सीख से सवाल उठ रहा है कि क्या सिंधिया फिर चुनाव हार रहे हैं? इसके पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने प्रभाव की सीट हार चुके हैं और अपनी खाई प्रतिष्ठा पाने के लिए एक बार फिर मैदान में हैं। उस वक्त भी कांग्रेस के नेताओं ने सिंधिया को समझाया था कि वे जीत के आत्मविश्वास में न रहें। इस बार भी बीजेपी के नेता ही ज्योतिरादित्य सिंधिया को समझा रहे हैं कि अति आत्मविश्वास कहीं इतिहास दोहरा न दे।
निर्विरोध की आस, विरोधी हताश
मुकाबला कोई भी हो, लड़े बगैर तो हार नहीं मानी जानी चाहिए लेकिन ऐसा लगता है योग-दुर्योग से खजुराहो में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के लिए मैदान खुला छोड़ दिया गया है। सांसद वीडी शर्मा के मुकाबले में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का कोई उम्मीदवार है ही नहीं। सांसद वीडी शर्मा के समर्थक कोशिश में हैं कि वे निर्विरोध ही जीत जाएं और इन कोशिशों के आगे विरोधी पक्ष हताश और निराश है।
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव लड़ने के कारण खजुराहो लोकसभा सीट पहले ही वीआईपी सीट थी लेकिन अब यहां संघर्ष न्यूनतम हो गया है। पहले तो गठबंधन की शर्तों के चलते कांग्रेस ने यह सीट समाजवादी पार्टी के लिए छोड़ी। समाजवादी पार्टी ने पहले मनोज यादव को टिकट दिया फिर उनकी जगह मीरा यादव को उम्मीदवार बना दिया। त्रुटियों के कारण सपा की उम्मीदवार मीरा यादव का नामांकन निरस्त हो गया है। अब बीजेपी उम्मीदवार के सामने कोई ताकतवर विपक्षी उम्मीदवार है ही नहीं।
इस गड़बड़ी के कारण सपा तो ठीक लेकिन कांग्रेस को अच्छी खासी आलोचना झेलनी पड़ी है। कहां तो कांग्रेस समर्थक बीजेपी सांसद वीडी शर्मा को तगड़ा मुकाबला देने की सोच रहे थे और कहां अब मैदान साफ हो गया है। वीडी शर्मा के समर्थक इस योग से खुश हैं और वे चाहते हैं कि निर्दलीय लड़ रहे उम्मीदवारों को भी हटने के लिए राजी कर लिया जाए तो वीडी शर्मा का निर्वाचन निर्विरोध हो सकेगा। इसके लिए कोशिशें की जा रही हैं। जबकि वीडी शर्मा और बीजेपी के विरोधी हताश हैं। वे कोशिश कर रहे हैं कि किसी तरह एक उम्मीदवार को कांग्रेस व सपा का समर्थन दिलवा कर मैदान में डटा रहा जाए ताकि एकतरफा जीत न हो।
फॉरवर्ड ब्लॉक के उम्मीदवार आरबी प्रजापति की कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी से मुलाकात को इन्हीं कोशिशों की एक कड़ी माना जाना चाहिए। पूर्व आईएएस आरबी प्रजापति आरोप लगा चुके हैं कि उन पर नाम वापस लेने का दबाव है। यदि उन्हें कांग्रेस, सपा आदि का समर्थन मिलता है तो विपक्ष के साझा उम्मीदवार की मौजूदगी संभव हो सकेगी। इस तरह कम से कम बीजेपी विरोधियों को वोट देने और नाराजगी जताने का मौका मिल सकेगा अन्यथा तो कई मतदाता वोट ही न देने का मन बना चुके हैं।
बीजेपी सदस्यता खरीद रहे हैं कांग्रेस के नेता!
मध्य प्रदेश की राजनीति में इनदिनों दलबदल का मौहाल है। कई क्षेत्रों में कांग्रेस के छोटे-बड़े नेता मूल पार्टी का साथ छोड़ कर बीजेपी में शामिल हो रहे हैं। दोनों तरफ से दल-बदल करने वाले नेताओं व कार्यकर्ताओं के अलग-अलग आंकड़ें आ रहे हैं। लोग हैरत में हैं कि ऐसा क्या हुआ है कि थोक में नेता-समर्थक कांग्रेस का साथ छोड़ कर बीजेपी में जा रहे हैं। कोई इसे अवसरवादिता कह रहा है तो कोई व्यापार व राजनीति बचाए रखने की जुगत। किन्हीं को इसमें ईडी और आयकर की भूमिका नजर आती है। कुछ नेताओं पर बिकने का आरोप लगा रहे हैं।
ऐसा ही एक आरोप पिछले दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। पिछोर से बीजेपी विधायक प्रीतम लोधी के बेटे दिनेश लोधी ने अपना एक वीडियो पोस्ट कर कहा कि उनके पिता विधायक जरूर बन गए हैं, लेकिन बीजेपी के 20 साल पुराने समर्पित कार्यकर्ताओं का कोई काम नहीं हो पा रहा है और वे घर पर बैठे हुए हैं।
पिता प्रीतम लोधी बीजेपी से विधायक हैं और दिनेश लोधी कांग्रेस में रहे हैं। दोनों के बीच कई बार पहले भी टकराव हो चुका है। इस बार दिनेश लोधी ने वीडियो जारी कर कहा कि कुछ नेता कल कांग्रेस में काम कर रहे थे। बढ़िया पैसा कमा रहे थे और अब बीजेपी में चले गए हैं। उनका बढ़िया काम चल रहा है। दिनेश लोधी का आरोप है कि एक-दो लोग हैं जो 10-10 लाख रुपये ले कर सदस्यता दिलवा रहे हैं और काम करवा रहे हैं। दिनेश लोधी के इस बयान से कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में शामिल होने के अर्थ गणित दिखाई दे रहे हैं।