जी भाईसाहब जी: बुंदेलखंड-महाकौशल बीजेपी में चुप की चिंगारी

MP BJP: अंतत: मुख्‍यमंत्री मोहन यादव के मंत्रिपरिषद का विस्‍तार हो गया है। इस विस्‍तार में जातीय, गुटीय, क्षेत्रीय समीकण साधने का उपक्रम किया गया। यह सारा गुणा-भाग लोकसभा चुनाव की दृष्टि से भी था लेकिन इस कोशिशों के बाद भी नाराजगी की आग धधक ही रही है। सवाल तो यह है कि आक्रोश व असंतोष की यह चिंगारी कितनी राजनीतिक लपटें तैयार करेगी?

Updated: Dec 26, 2023, 02:50 PM IST

प्रदेश के नए मुखिया डॉ. मोहन यादव के मंत्रिमंडल ने आकार ले लिया है। मुख्यमंत्री व दो डिप्टी सीएम की शपथ के 12 दिन बाद हुए मंत्रिमंडल विस्तार में 18 कैबिनेट व 10 राज्य मंत्री बनाए गए। इस विस्‍तार को समझने के लिए कोई एक फार्मूला नहीं है मसलन, गुजरात फार्मूला लागू होता तो सभी मंत्री बदल दिए जाने थे लेकिन ऐसा हुआ नहीं। पार्टी की नई रीति-नीति के अनुसार पहली बार चुने गए 7 विधायक मंत्री बनाए गए हैं। उम्र के बहाने 71 वर्षीय गोपाल भार्गव व अजय विश्‍नोई, 76 वर्षीय जयंत मलैया जैसे नेता मंत्री नहीं बनाए गए हैं तो करण सिंह वर्मा (68 वर्ष) और कैलाश विजयवर्गीय (67 वर्ष) जरा छोटे होने की वजह से जगह पा गए हैं। सांसदी छोड़ कर विधानसभा में आई रीति पाठक को कोई पद नहीं मिला है जबकि साथ के अन्‍य नेता पद पा गए हैं। 

जातिगत समीकरण देखें तो ओबीसी मुख्‍यमंत्री बनाने के साथ ही 28 मंत्रियों में से सबसे ज्‍यादा 11 अन्‍य पिछड़ा वर्ग से बनाए गए हैं। यह विपक्ष के जातीय जनगणना के मुद्दे पर बीजेपी का जवाब है। जबकि सामान्य वर्ग से 7 और एससी से 6 व एसटी वर्ग से 4 विधायक मंत्री बनाए गए हैं। 

क्षेत्र की दृष्टि से मंत्रिमंडल में मालवा की जय जय है। कैबिनेट में सीएम व डिप्टी सीएम जगदीश देवड़ा समेत सबसे ज्यादा 11 मंत्री मालवा से हैं जबकि उम्मीद के विपरित बुंदेलखंड और महाकौशल का प्रतिनिधित्‍व कम है। बुंदलेखंड, महाकौशल और मध्य से 4-4 विधायक मंत्री बनाए गए हैं। बुंदेलखंड से वरिष्‍ठ नेता गोविंद सिंह राजपूत को तो जगह मिली है लेकिन गोपाल भार्गव, जयंत मलैया, भूपेंद्र सिंह, शैलेंद्र जैन जैसे दावेदार हाशिए पर हैं। महाकौशल में मंडला से संपतिया उइके, नरसिंहपुर से प्रहलाद पटेल,जबलपुर से राकेश सिंह व गाडरवारा से राव उदय प्रताप शामिल किए गए हैं। लेकिन जबलपुर से अजय विश्‍नोई, अशोक रोहणी जैसे नेता मंत्री नहीं बनाए गए हैं। इन नेताओं के समर्थकों में नाराजगी है। 

सबसे बड़ी जीत के उत्‍सव में इन नेताओं व उनके समर्थकों की आवाज अनसुनी ही है। फिर भीद बुंदलेखंड के कद्दावर नेता गोपाल भार्गव की शुरुआती प्रतिक्रिया बहुत कुछ कहती है। नौ बार से लगातार विधानसभा चुनाव जीत रहे गोपाल भार्गव ने मंत्रिमंडल विस्‍तार के बाद सोशल मीडिया पर एक पोस्‍ट में कहा था कि मैं फ़िलहाल मौन हूँ। खाली समय में अब मैं प्रदेश में समाज को संगठित कर समाज उत्थान के लिए कार्य करूंगा। उन्‍होंने आंकड़ों से अपनी बात कही थी लेकिन बाद में पोस्‍ट को संशोधित कर आक्रोश वाली बात हटा दी। 

पोस्‍ट जरूर एडिट कर दी गई है लेकिन भीतर का अंसतोष एडिट नहीं हुआ है। अकेले गोपाल भार्गव ही नहीं इस तरह नजरअंदाज कर दिए गए सभी नेताओं का मौन वास्‍तव में असंतोष की चिंगारी है। अभी वे बड़े जनाधार वाली पार्टी को बड़ा नुकसान नहीं कर पा रहे हैं लेकिन इन्‍हीं नेताओं ने पार्टी को खड़ा किया है और जब ये नेता समाज के उत्‍थान को अपने भविष्‍य की योजना बताते हैं तो इसके राजनीतिक  मंतव्‍य को समझा जाना चाहिए। पूर्व मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी कहा है कि वे अपने स्‍तर पर महिलाओं के सशक्तिकरण का कार्य जारी रखेंगे। इसका अर्थ यह है कि अपने प्रभाव क्षेत्र में ताकत को बनाए रखने के लिए ये नेता कार्य करेंगे ताकि पार्टी में उनकी हैसियत बनी रहे। 

संतुलन का गड़बड़ झाला,  एक लोकसभा सीट से तीन मंत्री 

बीजेपी सरकार का मंत्रिमंडल लोकसभा चुनाव की दृष्टि से जातीय और क्षेत्रीय समीकरण साधने के लिए तैयार किया गया है लेकिन इसमें भी कई लोचे हैं। मालवा इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। मुख्‍यमंत्री मोहन यादव खुद मालवाउ (उज्‍जैन) से हैं तो उन्‍हीं के संभाग के मल्‍हारगढ़ (मंदसौर) से विधायक जगदीश देवड़ा को उपमुख्‍यमंत्री बनाया गया है। इसके बाद भी मालवा से 9 और मंत्री बनाए गए गए हैं।

इनमें 9 में से तीन मंत्री अकेली रतलाम लोकसभा सीट से हैं। ये तीन मंत्री रतलाम से चेतन काश्‍यप, झाबुआ के पेटलावद से निर्मला भूरिया और अलीराजपुर से नागर सिंह चौहान हैं। इन तीन मंत्रियों के जरिए जैन, भील और भिलाला वर्ग को साध लिया है। यूं तीन जिले भी साधे गए हैं मगर रतलाम के सैलाना आदिवासी सीट हारने के बाद बीजेपी ने लोकसभा चुनाव 2024 की दृष्टि से लोकसभा सीट से तीन मंत्री बना कर रणनीतिक फैसला किया है। इसका एक अर्थ यह भी है कि बीजेपी की अंदरूनी रिपोर्ट में झाबुआ लोकसभा सीट पर स्थिति बेहतर नहीं है।   

दूसरी तरफ, महाकौशल है जहां से सांसद रीति पाठक केवल इसलिए मंत्री पद नहीं पा सकी कि उन्‍हीं के क्षेत्र से ब्राह्मण विधायक राजेंद्र शुक्‍ला उपमुख्‍यमंत्री बनाए गए हैं। ब्राह्मण बीजपी की चिंता के केंद्र में नहीं है इसलिए रीति पाठक को खामियाजा उठाना पड़ा़। 

अपने हर शिव ‘राज’ के खिलाफ बीजेपी की सरकार

बीजेपी में सत्ता हस्तांतरण का असर ऐसा है कि पार्टी खुद अपनी ही शिवराज सरकार की आलोचना करने से नहीं चूक रही है। इंदौर हुकुमचंद मिल मामले में शिवराज सरकार की अनदेखी में ऐसा ही है। 

गौरतलब है कि 12 दिसंबर 1991 को बंद हुई हुकुमचंद मिल के 5,895 मजदूर अपने हक के लिए भटक रहे थे। करीब 16 वर्ष पहले हाईकोर्ट ने मजदूरों के पक्ष में 229 करोड़ मुआवजा तय किया था। लेकिन उन्‍हें अब तक यह मुआवजा नहीं मिला। अपना हक पाने के इस संघर्ष में अब तक लगभग 2200 मजदूरों की मौत हुई है। लेकिन हाईकोर्ट ने मिल मजदूरों की सुनी और हाउसिंग बोर्ड को पूरी राशि 425 करोड़ रुपया श्रमिकों के खाते में जमा करने का आदेश दिया। 

इसी आदेश के पालन के लिए नई सरकार का पहला सार्वजनिक कार्यक्रम रखा गया। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऑनलाइन जुड़े। मुख्‍यमंत्री मोहन यादव और कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय भी मौजूद थे। इस कार्यक्रम में कहा गया कि 32 साल के अन्याय के बाद अब श्रमिकों के साथ न्‍याय हुआ है। इन 32 सालों में तो 20 साल तो बीजेपी की ही सरकार थी। प्रश्‍न यह है कि इन गुजरे सालों में क्‍यों शिव ‘राज’ ने ही श्रमिकों का हक देने के फैसले को कानूनी प्रक्रियाओं में उलझाए रखा? इस सवाल को बीजेपी की डबल इंजन सरकार के पहले उत्‍सव के शोर में छिपा दिया गया। जिस तर्ज पर पार्टी ने अपनी रीति नीति तय की है, वही तरीका चलता रहा तो अपनी ही सरकार को कोसने का यह चलन जारी रहेगा।   

जीतू और जितेंद्र की जोड़ी के दम पर कांग्रेस की ऊर्जा की उम्‍मीद

मिशन 2023 में असफल हुई कांग्रेस ने भी बदलाव की राह चुन ली है। इसका कारण भी है, लोकसभा चुनाव सिर पर हैं और यदि हार के कारणों की पड़ताल में बैठे रहे तो इसका असर मिशन 2024 पर पड़ेगा। इसलिए बीती को भुलाते हुए पार्टी आगे बढ़ गई है। पार्टी ने विधानसभा चुनाव के समय प्रदेश प्रभारी बना कर भेजे गए पार्टी महासचिव रणदीप सुरजेवाला को हटा कर भंवर जितेंद्र सिंह को नया प्रभारी बनाया है। इसके पहले प्रदेश अध्‍यक्ष कमलनाथ की जगह युवा जोश के प्रतीक जीतू पटवारी को प्रदेश की कमान दी गई। साथ ही विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष आदिवासी विधायक उमंग सिंघार और उप नेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे को बनाया गया। 

प्रदेश के तीन नेताओं के हाथ में पार्टी और सदन में प्रतिपक्ष की कमान है तो अभी असम का प्रभार देख रहे भंवर जितेंद्र सिंह केंद्रीय संगठन के प्रतिनिधि के रूप में काम करेंगे। ये सभी नेता कांग्रेस की खोई जमीन पाने की रणनीति तय करने और उसे मैदान में उतारने का कार्य करेंगे। इसी क्रम में मंगलवार को कांग्रेस की बड़ी बैठक रखी गई जिसमें प्रदेश से सभी जिला और शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, जिला प्रभारी, सह प्रभारी और जिला संगठन मंत्री शामिल हुए। इस बैठक का लक्ष्‍य हार की समीक्षा से ज्‍यादा लोकसभा चुनाव के लिए भी रोडमैप तैयार करना है।

बीजेपी की तर्ज पर कांग्रेस ने भी अपने युवा नेताओं को बागडोर सौंपी है। अब उन्‍हें व्‍यक्तिगत समीकरणों और हित-अहित को किनारे रख पार्टी की मुख्‍यधारा में वापसी के लिए कार्य करना होगा। इन नेताओं की दिशा ही पार्टी में नई ऊर्जा के संचार का कारण बन सकती है।