जी भाईसाहब जी: महिला आरक्षण में फंस गई बीजेपी की ओबीसी पॉलिटिक्स
MP News: केंद्र की मोदी सरकार ने नारी शक्ति वंदन अधिनियम के नाम से महिला आरक्षण विधेयक पेश किया है। पूरे देश में बीजेपी इस विधेयक को लेकर माहौल बना रही है लेकिन एमपी की बीजेपी सरकार और संगठन का तो दर्द ही कुछ और है। वह दर्द जिसके लिए उमा भारती कह रही हैं कि पार्टी अपने मतदाता का भरोसा खो देगी।
मध्यप्रदेश में ओबीसी पॉलिटिक्स बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग का ऐसा हिस्सा रहा है जिसके दम पर वह न केवल 2003 में सत्ता में आई बल्कि उसके बाद भी सरकार में बनी रही। ओबीसी के नाम परचम फहराने वाली बीजेपी अब महिलाओं के आरक्षण के मामले में ऐसी उलझी है कि अपनी ही पार्टी की वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के सवालों का जवाब उसके पास नहीं है।
केंद्र की मोदी सरकार ने नारी शक्ति वंदन अधिनियम के नाम से महिला आरक्षण विधेयक पेश किया है। पूरे देश में बीजेपी इस विधेयक को लेकर माहौल बना रही है लेकिन एमपी की बीजेपी सरकार और संगठन का तो दर्द ही कुछ और है। प्रदेश में 51 फीसदी से ज्यादा ओबीसी आबादी है। 2003 के चुनाव में ओबीसी वर्ग की नेता उमा भारती के दम पर ही बीजेपी प्रदेश में सत्ता में आई थी। उसके बाद से तीन मुख्यमंत्री उमा भारती, बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चौहान ओबीसी वर्ग से ही बनाए गए। बीजेपी ओबीसी को अपना बड़ा वोट बैंक मानती है और इतना बड़ा आधार मानती है कि उमा भारती या प्रहलाद पटेल जैसे ओबीसी नेताओं की नाराजगी से भी पार्टी को फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उसे यकीन है कि ओबीसी वोट उसके पास से नहीं जाएगा।
मगर कमलनाथ सरकार ने जब ओबीसी आरक्षण 14 फीसदी से बढ़ा कर 27 फीसदी किया तो पदोन्नति में आरक्षण सहित अन्य मुद्दों पर ढुलमुल रवैया रखने वाली बीजेपी संकट में आ गई। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, ओबीसी कोटे से मंत्री भूपेंद्र सिंह आदि ओबीसी आरक्षण पर कांग्रेस को घेरने में फ्रंट पर ही रहे। कांग्रेस हमेशा आरोप लगाती रही है कि ओबीसी आरक्षण पर बीजेपी केवल बातें कर रही है। फिर सुप्रीम कोर्ट ने मई 2022 में जब ओबीसी आरक्षण बढ़ाए बिना ही पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव करवाने के आदेश दिए तो बीजेपी बैकफुट पर आ गई। कोर्ट में पक्ष रखने के लिए सीएम शिवराज सिंह चौहान ने इंवेस्टर्स समिट के सिलसिले में होने वाली विदेश यात्रा भी निरस्त कर दी लेकिन कोर्ट में ओबीसी आरक्षण पर फंसा पेंच सुलझा नहीं है।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ घोषणा कर चुके हैं कि कांग्रेस की सरकार बनी तो ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा। इस मामले पर बीजेपी ले राहुल लोधी को मंत्री बना कर ओबीसी को खुश करने का प्रयास किया है।
ओबीसी आरक्षण पर बीजेपी-कांग्रेस के बीच शह-मात का खेल चलता रहता लेकिन महिला आरक्षण विधेयक ने बीजेपी की ओबीसी राजनीति का गणित गड़बड़ा दिया। ओबीसी की अनदेखी का आरोप विपक्ष ही नहीं लगा रहा है कि बल्कि बीजेपी की वरिष्ठ नेता उमा भारती खुद सवाल उठा रही हैं। उमा भारती का कहना है कि महिला आरक्षण बिल में एससी-एसटी के साथ ओबीसी महिलाओं को भी आरक्षण मिलना चाहिए। उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर मांग की है कि स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए सुनिश्चित 33 प्रतिशत आरक्षण में से 50 प्रतिशत एससी, एसटी और ओबीसी समुदाय के लिए अलग रखा जाना चाहिए।
उमा ने चेताया है कि महिला आरक्षण मिलना खुशी की बात है लेकिन कसक यह है कि यह बिना ओबीसी आरक्षण के आया है। अगर हमने ओबीसी महिलाओं की भागीदारी नहीं की तो उस समाज का भरोसा टूट जाएगा जो हम पर हमेशा से भरोसा करते आया है।
उमा भारती का इशारा ओबीसी वोट बैंक की तरफ है जिसने बीते 20 सालों में बीजेपी का भरपूर साथ दिया है। अभी आदिवासी, दलित और लाड़ली बहना जैसी योजना से महिलाओं को साधने की जुगत कर रही बीजेपी ओबीसी और खासकर ओबीसी महिलाओं को नाराज कर रही है। यह सवाल बेहद अहम् है कि ओबीसी महिलाओें की नाराजगी को क्या बीजेपी महिलाओं के लिए लुभावनी योजना और आरक्षण के लालच से उपायों से दूर कर पाएगी? ओबीसी आरक्षण को 27 फीसदी करने की कांग्रेस की घोषणा पर बीजेपी का ढुलमुल रवैया क्या आगे उसके लिए पॉलिटिकल सुसाइड साबित नहीं होगा? ओबीसी पॉलिटिक्स पर बीजेपी के इस द्वंद्व को यदि कांग्रेस बेहतर ढंग से ओबीसी समाज के बीच ले जा पाती है तो यह पेंच मिशन 2023 की सोशल इंजीनियरिंग को उलट सकता है।
टिकली, बिंदी, चूड़ी पर अटका विकास, खौफ दिखा कर खिलाफत में उतरी बीजेपी
धर्म के नाम पर वोट या विकास की राजनीति, यह प्रश्न हमेशा राजनीति की दिशा और दशा पर बहस का विषय रहा है। बीते दो दशक से मध्य प्रदेश में सत्ता सूत्र संभाले हुए बीजेपी ने मिशन 2023 फतह करने के लिए विकास के नाम पर वोट मांगना शुरू किए थे लेकिन अब बात खौफ दिखा कर खिलाफत तक आ पहुंची है।
सनातन के नाम पर देश भर जारी बहस के पहले मध्य प्रदेश में हनुमान, सुंदरकांड पाठ जैसे धार्मिक मामलों पर राजनीति गर्मा चुकी है। धर्म और आस्था के नाम पर हमेशा कांग्रेस को घेरने वाली बीजेपी सनातन के मुद्दे पर आक्रामक है। इस बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक कदम आगे चले गए। व्हाटस अप यूनिवर्सिटी द्वारा फैला जा रही नफरत और द्वैष की राजनीति से आगे बढ़ते हुए सागर की सुरखी विधानसभा में सीएम शिवराज सिंह चौहान ने जो कहा वह चौंकाने वाला था। हिंदु-मुस्लिम राजनीति की लाइन का गाढ़ा करते हुए सीएम चौहान ने कहा कि अगर मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनती है तो प्रदेश की महिलाओं का बिंदी लगाना, चूड़ी पहनना, त्योहार मनाना, और रामायण के साथ-साथ भजन कीर्तन करना मुश्किल भी कर देगी।
तुष्टीकरण की राजनीति में यह भय दिखा कर, खौफ पैदा कर वोट साधने और विरोधियों को परास्त करने का तरीका है जिसे बार-बार आजमाया जाता है। विधानसभा चुनाव में इस मुद्दे का प्रवेश माहौल बिगाड़ कर जीत हासिल करने की कोशिशों को लेकर जताई जा रही आशंकाओं को सच साबित करता है।
बीजेपी में यह भगदड़ क्यों है भाई? शाह की चाणक्य नीति का क्या हुआ?
बीजेपी की राजनीति का चाणक्य कहे जाने वाले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के मिशन 2023 की बागडोर संभाल लेने के बाद सभी ने सोचा था कि एमपी बीजेपी में उभरा आक्रोश और नाराजगी का बंवडर थम जाएगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। बल्कि मर्ज बढ़ता ही चला जा रहा है। हैरानी है कि बीजेपी ने इस आक्रोश को थामने का जतन भी नहीं कर रहे हैं।
पूर्व मंत्री दीपक जोशी ने जब बीजेपी छोड़ी थी तब कार्यकर्ताओं और नाराजगी के सवाल इस तेजी से उठे थे कि दिल्ली ने भोपाल से जवाब तलब कर लिया था। सत्ता और संगठन से नाराजगी की खबरों के बीच जब गृहमंत्री अमित शाह भोपाल और फिर इंदौर आए तब उन्होंने मंच से सीधा सवाल किया था कि कार्यकर्ता नाराज क्यों हैं?
इस सार्वजनिक सवाल का असर भी हुआ। नाराज नेताओं और कार्यकर्ताओं को मनाने के जतन किए गए। बड़े नेताओं को उन्हें मनाने के लिए भेजा गया। इस प्रयास का नतीजा वरिष्ठ नेता कृष्ण मुरारी मोघे के बयान से समझा जा सकता है। मोघे ने बीते दिनों कहा है कि हमें नाराज नेताओं को मनाने भेजा गया। उनसे बात करने का आश्वासन दिया गया था मगर किसी ने बात नहीं की।
पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती, लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा, पूर्व मंत्री विक्रम वर्मा, कुसुम मेहदेले जैसे नेता पार्टी में खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। ये नेता तो केवल नाराजगी जाहिर कर रहे हैं पूर्व मंत्री दीपक जोशी के बाद कई कद्दावर नेताओं ने बीजेपी की रीति-नीतियों से निराश हो कर पार्टी को छोड़ दिया है। यह सिलसिला निरंतर जारी है और पार्टी को अपने इन नेताओं के जाने की फिक्र भी नहीं है लेकिन मुद्दा तो बना हुआ है कि असंतोष को खत्म करने के ‘शाही मैनेजमेंट’ का क्या हुआ? केंद्रीय मंत्री अमित शाह की टीम मोर्चा संभाले हुए है फिर भी बीजेपी में यह भगदड़ क्यों है?
जन आक्रोश यात्रा शक्ति प्रदर्शन का मौका
जन आशीर्वाद लेकर जनता के बीच पहुंची बीजेपी को जवाब देने के लिए कांग्रेस जन आक्रोश यात्रा निकाल रही है। यह मैदान में बीजेपी सरकार के खिलाफ जनमत तैयार का उपक्रम ही नहीं बल्कि कांग्रेस से टिकट पाने वाले नेताओं का शक्ति प्रदर्शन का मौका भी है। जो जितनी भीड़ जुटाएगा वह अपनी दावेदारी को उतना ही पुख्ता कर पाएगा।
गणेश चतुर्थी से कांग्रेस ने सात स्थानों से जन आक्रोश यात्रा शुरू की है। इन यात्राओं के माध्यम से प्रदेश के सात क्षेत्रों में कांग्रेस बीजेपी सरकार के 18 सालों के कामकाज पर सवाल उठाएगी। ये यात्राएं मैदान में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को सक्रिय तो करेगी ही लेकिन इस बहाने पार्टी अपने संभावित प्रत्याशियों की मैदानी स्थिति का जायजा भी ले लेगी। टिकट वितरण के लिए सर्वे पर बल देने के साथ ही मैदानी स्थितियां भी टटोली जा रही है। ऐसे में जन आक्रोश रैली में भीड़ जुटाना टिकट के दावेदार नेताओं की परीक्षा भी है।
यह उन नेताओं की भी परीक्षा है जो बीजेपी छोड़ कर कांग्रेस में आए हैं और जिनका बड़ा जनाधार कहा जाता है। तय है कि ये शक्ति प्रदर्शन ही आगे इन नेताओं की ‘शक्ति’ में इजाफा करेगा।