दफ्तर दरबारी: राज लीला, राम पथ बना नहीं और कृष्ण सर्किट की तैयारी में बीजेपी
MP Politics: साल पर साल गुजर रहे हैं लेकिन दो दशक से सत्ता पर काबिज बीजेपी ने राम वन गमन पथ बनाने का वादा पूरा नहीं किया है। अब मिशन 2023 के लिए कृष्ण की लीलाओं का सहारा लेने की घोषणा कर दी गई है। उधर, सत्ता बचाए रखने की गरज से आदिवासी वोट बैंक को साधन के लिए खास उद्देश्य से पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह फिर मध्य प्रदेश आ रहे हैं।
बीजेपी ने मध्यप्रदेश में अपनी सरकार बनाने के बाद 2003 से ही राम वन गमन पथ बनाने का वादा किया है। तब से लेकर अब तक 20 साल गुजरे लेकिन राम वन गमन पथ का कार्य शुरुआती चरणों में है। शिवराज सरकार ने कहा जरूर है कि वह चुनाव के पहले राम वन पथ गमन का कार्य शुरू कर देगी। फिलहाल चुनाव करीब है और मिशन 2023 को फतह करने के लिए जी जान से जुटी बीजेपी ने नई घोषणा कर दी है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यादव वोटों को साधने के लिए भगवान कृष्ण का सहारा लिया है। इंदौर में यादव समाज के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि राज्य में भगवान कृष्ण के लीला स्थलों का सिलसिलेवार तरीके से विकास किया जाएगा। इसके लिए उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव को ही जिम्मा दिया गया है कि वे कृष्ण लीला के स्थानों की जानकारी जुटाएं।
वैसे अब तक कि जानकारी है कि उज्जैन के सांदीपनि आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण ने शिक्षा ग्रहण की थी। इस स्थान को ही विकसित किया गया है। अब कृष्ण से जुड़े अन्य स्थानों के संदर्भ तलाशले का काम शुरू होगा। राम वन पथ गमन की ही तरह इस सर्किट का विकास जब होना होगा तब होगा लेकिन फिलहाल तो बीजेपी सरकार कृष्ण के नाम पर कुर्सी बचाए रखने की जुगत में है। धर्म के रथ पर सवार हो कर मिशन 2023 को विजय करने का संकल्प पूरा करने की यही बीजेपी की राज लीला कही जानी चाहिए।
लीला इसलिए कि इसी कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जानकारी दी कि गोशालाओं को सरकारी खजाने से दी जाने वाली राशि चार गुना बढ़ा दी गई है जिससे गायों का उचित भरण-पोषण और देखभाल हो सके। उन्होंने गोशाला संचालन से जुड़ी नीतियों का सरलीकरण होगा। मगर हमने ही कुछ माह पहले गोशालाओं में एक साथ सैंकड़ों गायों को मरते देखा है। आरोप भी लगे थे कि इन गोशालाओं के संचालक बीजेपी से जुड़े हैं मगर इतनी गायों के मरने के बाद भी कोई राजनीतिक हंगामा नहीं हुआ।
गर्त में जा रहा है समाज और गौरव मना रही है बीजेपी
बीजेपी एक बार फिर आदिवासी जयकार की तैयारी कर चुकी है। दो साल में यह जून दूसरा बड़ा माह है जब आदिवासियों को लुभाने वाले दो भव्य कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह मध्य प्रदेश आ रहे हैं। बीजेपी 22 जून को प्रदेश के पांच अंचलों से वीरांगना रानी दुर्गावती गौरव यात्रा प्रारंभ कर रही है। इसका शुभारंभ केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह करेंगे। छिंदवाड़ा से सांसद दुर्गादास उईके, सिंगरामापुर में नबतरी से मंत्री विजय शाह, रानी दुर्गावती के जन्मस्थान कालिंजर में संपतिया उईके और धोहनी सीधी में हिमाद्रि सिंह गौरव यात्रा का शुभारंभ करेंगे। यह यात्रा गांव-गांव होते हुए 27 जून को शहडोल पहुंचेगी। यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में यात्रा का समापन होगा।
इसके पहले 2021 में जबलपुर में 17 सितंबर को राजा शंकर शाह व रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर कार्यक्रम आयोजित किया गया था जिसमें गृहमंत्री अमित शाह शामिल हुए थे। 2021 में ही 15 नवंबर को बिरसा मुंडा जयंती पर भोपाल में जनजातीय सम्मेलन आयोजित हुआ था जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आदिवासियों से जुड़ी कई घोषणाएं की थीं।
दो सालों में आयोजित इन चारों भव्य आयोजनों का मकसद आदिवासी वोट बैंक साधना है। मध्य प्रदेश की 230 सीटों में से 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। इसके अलावा 30 सीटों पर आदिवासी वोटर प्रभाव रखता है। 2003 विधानसभा चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित 41 में से 37 सीटें बीजेपी ने जीती थी। 2008 के विधानसभा चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीट बढ़कर 47 हो गई। इस चुनाव में बीजेपी ने 29 सीटें तथा कांग्रेस ने 17 सीटें जीती। 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 31 तथा कांग्रेस की सीटें बढ़कर 15 पहुंच गई। 2018 के विधानसभा चुनाव में आरक्षित 47 में कांग्रेस को 30 और भाजपा को 16 सीट पर जीत मिली थी। एक सीट निर्दलीय के खाते में गई थी। यही कारण है कि बीजेपी आदिवासी वोटर को अपने साथ रखने के लिए तमाम उपक्रम कर रही हैं।
रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर गौरव यात्रा के बहाने बीजेपी विंध्य में भी अपने प्रभाव को बनाए रखना चाहती है। विंध्य में विधायक नारायण त्रिपाठी के नई पार्टी बना लेने तथा पंचायत चुनाव में उनके समर्थकों को मिले बहुमत के कारण भी बीजेपी की मुसीबत बढ़ गई है। मुसीबत केवल राजनीति ही नहीं है। मैदानी स्थिति भी बीजेपी की चिंता बढ़ा रही है।
आदिवासी क्षेत्रों में रोजगार की कमी से बढ़ता पलायन बड़ा मुद्दा है। सरकार ने कभी इस पलायन को महत्वपूर्ण मुद्दा माना ही नहीं है। इसी तरह आदिवासी छात्रावासों की दुर्दशा तथा छात्रवृत्ति का नहीं मिलना जैसी कई समस्याएं हैं जिन पर बीजेपी सरकार ने गौर नहीं किया है। इसबीच आदिवासियों को लुभाने के लिए पेसा एक्ट लागू जरूर किया गया लेकिन उसका भी सरकार को फिलहाल बहुत लाभ मिलता दिखाई नहीं दे रहा है। यही कारण है कि समाज भले ही संकटों से घिरा हो लेकिन बीजेपी तो गौरव गान गा रही है।
दर-दर बीजेपी, घर-घर बीजेपी
हिंदी का प्रख्यात मुहावरा है दर दर की ठोंकरे खाना। जिसका अर्थ है परेशान हो कर मारे-मारे घूमना। इस बार हार के आकलनों से परेशान बीजेपी अपने नाराज नेताओं के घर के साथ मतदाताओं के दर पर बार-बार दस्तक दे रही है। उनकी मनुहार कर रही है, मना रही है कि रूठना अलग बात है मगर रूठ कर अगर सब ने नकार दिया तो बीजेपी सरकार खो देगी।
इसी भय के कारण बीजेपी लगातार बड़े आयोजन तथा मैदानी मशक्कत जारी रखे हुए है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित अनेक राष्ट्रीय नेता तथा मंत्री बार-बार मध्य प्रदेश आ रहे हैं जबकि प्रदेश और जिले के पदाधिकारियों को मतदाताओ के घर-घर भेजा जा रहा है। बीजेपी नेताओं को जिम्मा दिया गया है कि वे घर-घर जाएं और लोगों के बीच अपनी सरकारों का महिमा गान करें, नाराज कार्यकर्ता तथा मतदाताओं के गिले शिकवे दूर करें।
बीजेपी का यह घर-घर संपर्क अभियान 21 जून से शुरू हुआ है जो 30 जून तक चलेगा। संगठन की निगाह इस बात पर है कि यह घर-घर संपर्क अभियान भी पिछले अभियानों की तरह जुलूस कार्यक्रम बन कर न रह जाएं। पदाधिकारी वास्तव में उपलब्धियां जनता तक पहुंचाएं तथा जहां नाराजगी है वहां असंतोष खत्म करने का काम करें तभी तो यूं दर-दर भटकने का कुछ परिणाम भी हासिल होगा।
भरमा गए नगरीय निकाय उप चुनाव
बीजेपी पिछले दो दशक से सत्ता में जरूर है लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में जनता ने उसे सत्ता से बेदखल कर दिया था। विपक्षी विधायकों का साथ लेकर फिर सत्ता में आई बीजेपी को अब आंतरिक सर्वे डरा रहे हैं। ये सर्वे बता रहे हैं कि मिशन 2023 आसान नहीं है। कई जगहों से विधायको के प्रति मिले नकारात्मक रूझानों से बीजेपी परेशान हैं। जब हर सर्वे में बीजेपी को नुकसान का आकलन किया जा रहा है ऐसे में नगरीय निकाय उपचुनाव भी उसका तनाव बढ़ाने जैसे ही रहे हैं।
प्रदेश के 13 नगरीय निकाय उपचुनाव के परिणाम आए तो बीजेपी को कांग्रेस एक सीट ही ज्यादा मिली। 7 सीट बीजेपी के खाते में आई तो कांग्रेस ने छह पर कब्जा किया। धार, मंदसौर, देवास, बुरहानपुर में कांग्रेस पार्षदों के जीत जाने से कांग्रेस को संदेश गया है कि मालवा में उसकी स्थिति मजबूत है। कांग्रेस ने इसे बीजेपी को जनता का सबक करार दिया है। बीजेपी ने सात सीट जितने से ज्यादा इस बात पर फोकस किया कि उसने कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा में अपना एक पार्षद जितवा लिया है।
हालांकि, इन परिणामों ने बहुत स्पष्ट संकेत नहीं दिए है और इसी कारण दोनों ही पार्टियां अपने भ्रम पैदा करने वाले रहे क्योंकि दोनों ही पार्टियों को लगभग बराबर सीट मिली है इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि जनता ने कोई संदेश दिया है। बीजेपी में जश्न है कि छिंदवाड़ा में पार्षद का पद जीत कर कमलनाथ के किले में सेंध लगा दी है जबकि कांग्रेस खुश है कि मुकाबला बराबरी का रहा बल्कि कांग्रेस ने मालवा में बेहतर प्रदर्शन किया है। दोनों को ही लगता है कि मिशन 2023 तो उनकी फतह का ही है।