जी भाई साहब जी: महाराज बीजेपी की हांडी में कुछ पक रहा है, सिंधिया की कैलाश यात्राओं के मायने 

मध्‍य प्रदेश बीजेपी में तेजी से राजनीतिक समीकरण बदल रह हैं। कोर ग्रुप की बैठक में संगठन को दुरूस्‍त करने की कवायद की गई तो ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया नए अंदाज में पेश आ रहे हैं। उनकी कैलाश यात्राओं के अपने राजनीतिक अर्थ तलाशे जा रहे हैं। 

Updated: Sep 06, 2022, 12:25 PM IST

कैलाश विजयवर्गीय और ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया
कैलाश विजयवर्गीय और ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया

ज्‍यादा वक्‍त नहीं गुजरा जब बीजेपी  के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और वर्तमान केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया में छत्‍तीस का आंकड़ा था। फिर वे अलग-अलग दलों में भी थे तो यह विरोध सुविधाजनक था। फिर जब ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया कांग्रेस को छोड़ कर बीजेपी में आ गए तब भी रिश्‍ते की दूरियां बनी रही। यहां तक कि इंदौर यात्रा के दौरान सिंधिया जब कैलाश के घर पहुंचे तो कैलाश विजयवर्गीय उन्‍हें मिले नहीं। वे अपने प्रभार के प्रदेश कलकत्‍ता चले गए थे। लेकिन इन दिनों दोनों की गलबहियां राजनीति के नए सूत्र दे रही हैं। दोनों की जुगलबंदी ऐसी कि इस पक रही खिचड़ी को कोई नजरअंदाज नहीं कर पा रहा है। 

कुछ दिन पहले ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया इंदौर गए थे तो अपने पुत्र महाआर्यमन सिंधिया के साथ कैलाश विजयवर्गीय के निवास पर गए थे। इस मुलाकात की चर्चा शांत भी नहीं हुई थी कि एक और मुलाकात चर्चा में आ गई। ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थक मंत्रियों के साथ मध्‍य प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के कार्यक्रम में शामिल होने इंदौर पहुंचे थे। आयोजन स्‍थल पर कैलाश विजयवर्गीय अन्य बीजेपी नेताओं के साथ मंच के नीचे बैठे थे। जैसे उन्‍हें पहली पंक्ति में बैठा देखा, ज्योतिरादित्य सिंधिया मंच से नीचे आए और कैलाश विजयवर्गीय को पकड़कर मंच पर ले गए। 

कैलाश विजयवर्गीय और ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस मेलमिलाप की राजनीतिक संभावना की पड़ताल की जा रही है। मालवा की राजनीति में कैलाश विजयवर्गीय का अपना असर है। फिलहाल उनके पास बतौर राष्ट्रीय महासचिव कोई प्रभार नहीं है। ऐसे में जब मध्‍य प्रदेश के चुनाव करीब हैं और राजनीतिक मुखिया को बदलने की खबरें जब तब सामने आ जाती है तब माना जा रहा है कि दोनों नेताओं की ये मीठी मुलाकातें राजनीकि रंग दिख लाएगी। 

इसबीच, सिंधिया ने जब केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल से मुलाकात की तो कयास और तेज हो गए। पिछड़ा वर्ग के प्रति‍निधि राजनेता प्रह्लाद पटेल का एक फोटो नगरीय निकाय चुनाव के बाद वायरल हुआ था। इस फोटो में वे सिंधिया समर्थक मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के भतीजे को उनके गृह ग्राम में हराने वाले बीजेपी समर्थक को जीत पर मिठाई खिलाते दिखाई दे रहे थे। बुंदलेखंड की राजनीति में पटेल की सक्रियता भी बढ़ी है। ऐसे में सिंधिया जब कैलाश विजयवर्गीय के बाद प्रह्लाद पटेल से मिले तो सम्‍बंध सुधार की इस राजनीति के मंतव्‍य खोजे गए। 

ये मेलजोल इसलिए भी चर्चा में आया क्‍योंकि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की भोपाल यात्रा के बाद प्रदेश में नेतृत्‍व परिवर्तन की खबरें हैं। 2020 में भी सिंधिया से ऐसी ही एक मुलाकात के बाद केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल ने ट्वीट कर नई जिम्‍मेदारी संभालने के लिए शुभकामनाएं दी थी। इसके कुछ समय बात सिंधिया को केंद्रीय मंत्री बनाया गया था। तो क्‍या सिंधिया की ये ‘कैलाश’ यात्राएं शिव ‘राज’ में कुछ नए गुल खिलाएगी? धुंआ है तो आग भी होगी ही। 

खत्‍म नहीं होती बीजेपी नेताओं की घुटन 

बीते दो सालों में कई मौके आए जब बीजेपी के आम से लेकर खास नेताओं ने सार्वजनिक और व्‍यक्तिगत मुलाकातों में अपनी घुटन की चर्चा की है। वे नेता जिन्‍होंने पार्टी को खड़ा किया, संकट के समय प्राणप्रण से साथ खड़े रहे, वे आज हाशिए पर हैं। उनकी पीड़ा यह कि हाल ही में पार्टी में आए नेताओं के हिस्‍से में तो मलाई आ गई मगर उनके त्‍याग और समर्पण का मोल नहीं है। अब इन नेताओं की घुटन और बढ़ गई है। उनकी तकलीफ यह है कि सिंधिया गुट के नेताओं को महत्‍वपूर्ण दायित्‍व देते समय पार्टी के कार्यकर्ताओं व नेताओं को नजर‍अंदाज तो किया ही गया। ये नेता अपनी पीड़ा को बयां भी नहीं कर सकते जबकि सिंधिया खेमे के मंत्री खुल कर अपनी सरकार पर सवाल उठा देते हैं। 

बीते हफ्ते केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी दो मंत्रियों ने राज्य की अफरसरशाही के कामकाज को लेकर सार्वजनिक रूप से अपनी शिकायतें की हैं। पंचायत मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया ने प्रशासनिक मुखिया इकबाल सिंह बैंस को निरकुंश कह दिया तो मंत्री बृजेंद्र सिंह यादव ने राज्य सहकारी समितियों के आयुक्त के साथ-साथ स्थानीय कलेक्टर को पत्र लिखकर नाराजगी जताई। वे कलेक्‍टर की कार्यप्रणाली से खफा बताए जाते हैं। 

मंत्री‍ सिसोदिया ने मुख्‍यमंत्री के पसंदीदा अफसर सीएस इकबाल सिंह बैंस पर सवाल उठाए, बृजेंद्र सिंह ने यादव ने कलेक्‍टर के प्रति अपनी नाराजगी को व्‍यक्त किया मगर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। उल्‍टे मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया से बात की। बीजेपी नेताओं का कहना है कि वे भी अफसरों की कार्यप्रणाली से नाराज है। यहां तक कि अफसर मंत्रियों की बात भी नहीं सुनते हैं। मगर वे यह बात खुलकर कह भी नहीं सकते हैं। संगठन द्वारा उन पर अनुशासनात्‍मक कार्रवाई का डर बना रहता है। 

सिंधिया खेमे के मंत्रियों को लेकर मैदान में नाराजगी भी है, वे अपनी ही सरकार पर सार्वजनिक रूप से सवाल भी उठाने में गुरेज नहीं कर रहे हैं। संगठन उन्‍हें कुछ नहीं कहता है। यह आक्रोश अब घुटन में बदल रहा है। मैदान में बीजेपी नेताओं की बेचैनी भरी घुटन को हर तरफ महसूस किया जा सकता है। 

बीजेपी में कसावट का दौर

मैदान में बीजेपी कार्यकर्ताओं और नेताओं की नाराजगी और असंतोष से केंद्रीय नेतृत्‍व अनजान नहीं है। पंचायत और नगरीय निकाय चुनावों में पार्टी उम्‍मीदवारों के जो हाल हुए हैं उससे मिले फीडबैक से भी संगठन अनभिज्ञ नहीं है। यही कारण है कि बीजेपी संगठन में कसावट लाने की कसरत शुरू हो गई है। 

प्रदेश के शीर्ष नेताओं से मुलाकातों और बंद कमरा बैठकों के बाद जब महामंत्री पी मुरलीधर राव कोर ग्रुप की बैठक में पहुंचे तो उन्‍होंने नसीहत दी है कि नेता मीडिया से बात करने पर सावधानी रखें। उन्‍होंने कहा कि मीडिया में दिए गए बयानों से विवाद खड़े होते हैं। नेता कुछ भी बयान देने से बचें। ये वहीं मुरलीधर राव है जिनके ब्राह्मण बनिया नेता जेब में जैसे बयानों पर विवाद शुरू हुए थे। अपने अनुभव से उन्‍होंने कहा कि भाषा और अंदाज के कारण बयानों का जो संदेश जाता है, वह ठीक नहीं है। 

केंद्रीय संगठन के प्रतिनिधि पी. मुरलीधर राव और राष्‍ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश ने पार्टी नेताओं को समय की पाबंदी, अनुशासन और बैठकों में उपस्थित रहने के लिए कई सबक सिखाए हैं। रविवार को हुई दो बड़ी बैठकों में सत्ता और संगठन दोनों के कामकाज की समीक्षा की गई। चर्चा है कि 15 जिलों के अध्यक्षों की जमीनी रिपोर्ट नकारात्मक आने पर उन्हें बदला जाना तय है। यह रिपोर्ट नगरीय निकाय चुनाव के बाद तैयार हुई है।

इसी तरह संगठन ने शिवराज सरकार को करीब एक दर्जन कलेक्टरों को लेकर भी नकारात्‍मक प्रतिक्रिया दी है। मंगलवार को हुई कैबिनेट बैठक में तबादलों से प्रतिबंध हटाया जा चुका है। अब नई प्रशासनिक जमावट की तैयारी है। उम्‍मीद की जा रही है कि संगठन में कसावट की इस पहल के तहत आगे और कड़े निर्णय हों।

यूं मौकें क्‍यों चूक रही है कांग्रेस 

विपक्ष का काम यह होता है कि वह सरकार की आलोचना के मौकों की तलाश में रहे और मौका मिलते ही सरकार की नाक में दम कर दे। कांग्रेस सहित मध्‍य प्रदेश के विपक्षी दल इस परिभाषा पर खरे नहीं उतरते हैं। बसपा विधायक रामबाई अपने क्षेत्र में थोड़े थोड़े दिनों में सक्रिय होती है मगर सबसे बड़ा विपक्षी दल कांग्रेस द्वारा हाथ आए मौकों को भी छोड़ देना अचरज भरा है।

कारम डैम सहित प्रदेश में कई जगह बांध में दरार, नहर के टूटने, नई बनी सड़कों के बह जाने, पुल टूट जाने जैसी घटनाओं में भ्रष्‍ट आचरण के आरोप लगे हैं। पंचायत जैसे महत्‍वपूर्ण विभाग संभालने वाले मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया खुले रूप से प्रशासन के निरंकुश होने का आरोप लगा रहे हैं। सीएजी की रिपोर्ट मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अधीन विभाग में पोषण आहार घोटाले की ओर इशारा कर रहे हैं। 

सबकुछ घट रहा है मगर विपक्ष कांग्रेस द्वारा जैसा विरोध होना चाहिए वही दिखाई नहीं दे रहा है। कांग्रेस की ओर से सोशल म‍ीडिया पर विरोध के कुछ स्‍वर सुनाई देते हैं मगर मैदान से जैसे पुरजोर आवाज गायब है। चुनाव करीब हैं, बीजेपी जहां अपने में सुधार, बदलाव और योजना के विभिन्‍न चरणों पर काम कर रही हैं, वहीं कांग्रेस के स्‍थानीय संगठन उतने सक्रिय दिखाई नहीं देते हैं।