जी भाईसाहब जी: गौ, गोपाल, गीता की मोहनिया सरकार
MP Politics: 2023 विधानसभा चुनाव के पहले बीजेपी सरकार का फोकस बहनों, किसानों और राम वन गमन पथ जैसे कार्यों पर था तो वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अलग पॉलिटिकल एजेंडा सेट किया है। यह गोपाल, गाय और गीता से जन मन को मोहने का जतन करने वाली सरकार बन रही है।
मध्य प्रदेश में अपराध और कानून-व्यवस्था को लेकर भले ही सरकार आरोपों से घिरी हुई है लेकिन मुख्यमंत्री और गृहमंत्री डॉ. मोहन यादव का पॉलिटिकल एजेंडा साफ हो गया है। कृष्ण जन्माष्टमी, गौ पूजा और गोवर्धन पूजा, गोपालकों के लिए विभिन्न घोषणाओं के बाद अब प्रदेश भर में गीता जयंती मनाने की तैयारी है। हर शहर में गीता भवन बनाने का कार्य भी तभी गति पकड़ेगा।
सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान ने बहनों, किसानों और राम वन गमन पथ जैसे कार्यों से अपनी लोकप्रियता में इजाफा किया था। वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के सामने शिवराज सिंह चौहान से बड़ी रेखा खींचने की चुनौती है। इसलिए, उन्होंने गोपाल, गौ, गोपालक, गीता को केंद्र में रखा है। वे जब पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष थे तब उन्होंने कृष्ण से जुड़े स्थानों को पर्यटन के नक्शे पर लाने की योजना तैयार की थी। मुख्यमंत्री बनते ही डॉ. मोहन यादव ने कृष्ण पाथेय निर्माण को स्वीकृति दे दी। फिर कृष्ण जन्माष्टमी पर विविध आयोजन हुए। पहली बार प्रदेश में गोवर्धन पूजा भव्य स्तर पर आयोजित की गई।
भोपाल में आयोजित राज्य स्तरीय गोवर्धन पूजा समारोह में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने गायों और उनके गोवंश का पालन करने वालों को किसानों की तरह क्रेडिट कार्ड उपलब्ध करवाने की घोषणा की। 10 से अधिक गायों की देखभाल करने वाले लोगों को विशेष वित्तीय सहायता देने की योजना भी है। गौ हत्या के दोषी को सात साल की सजा के प्रावधान की भी घोषणा की गई।
अब 12 दिसंबर को गीता जयंती मनाने की तैयारी है। मुख्य समारोह उज्जैन में संभावित है। इसके पहले जन्माष्टमी कार्यक्रम में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव हर जिले में गीता भवन का निर्माण की घोषणा कर चुके हैं। इसके लिए नगरीय निकाय को अलग से बजट दिया जाएगा।
बीते दस माह की इन सभी गतिविधियों से साफ है कि प्रशासनिक स्तर पर कार्यों की गति जैसी भी हो, सरकार का राजनीतिक एजेंडा साफ है। गोविंद, गौ माता और गीता के सहारे डॉ. मोहन यादव की सरकार जनता का मन मोहने का जतन करेगी। आयोजनों का स्वरूप भव्य होगा और लोक लुभावनी घोषणाएं की जाएंगी।
मंत्री बनेंगे वीडी, किनारे पड़े नेताओं का क्या होगा?
मध्य प्रदेश बीजेपी में नया प्रदेश अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इसके साथ ही वर्तमान अध्यक्ष वीडी शर्मा के पुनर्वास तथा नए अध्यक्ष के नाम को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं।
वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष और खजुराहो सांसद वीडी शर्मा को बीजेपी के लिए शुभंकर कहा जा रहा है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी सभा में वीडी शर्मा की पीठ थपथपाई थी। अब तक के कार्यकाल और बीजेपी में समीकरणों को देखते हुए वीडी शर्मा का मंत्री बनना तय हे। यदि उन्हें मोदी सरकार में मंत्री नहीं बनाया गया तो बीजेपी संगठन में स्थान तय है। उन्हें राष्ट्रीय संगठन में मंत्री बनाए जाने की संभावना है।
वीडी शर्मा के भविष्य से अधिक उत्सुकता नए प्रदेश अध्यक्ष को लेकर है। सारे जातीय और राजनीतिक समीकरणों के आधार पर कई नाम चर्चा में हैं। यदि वीडी शर्मा के बाद दोबारा किसी सवर्ण को पार्टी की बागडोर देने की संभावना के आधार पर पूर्व मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा, अरविंद भदौरिया, भूपेंद्र सिंह और रामेश्वर शर्मा के नाम चर्चा में हैं। यदि आदिवासी प्रदेश अध्यक्ष चुनने की बारी आएगी तो फग्गन सिंह कुलस्ते, सुमेर सिंह सोलंकी जैसे नाम सामने आए हैं।
संघ की पसंद के आधार पर भी कुछ नामों की चर्चा है। लेकिन जिस तरह केंद्रीय संगठन अतीत में व्यवहार करता आया है संभावना है कि किसी नए चेहरे को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है। ऐसा होने पर उन सभी नेताओं का क्या होगा जो वर्तमान में हाशिए पर हैं और प्रदेश अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी में ही अपना भविष्य देख रहे हैं। नया चेहरा चुना गया तो प्रदेश अध्यक्ष बन कर मुख्य धारा में वापसी का इन सभी नेताओं का सपना ध्वस्त होना तय है।
क्यों झगड़ रहे हैं बीजेपी नेता?
एमपी में बीजेपी का जितना विस्तार होता जा रहा है यादवी संघर्ष भी उतना ही बढ़ता जा रहा है। बीत कुछ माह से बीजेपी नेताओं का आपसी टकराव उस यादवी संघर्ष की याद दिलाता है जिसमें अपने हितों के लिए आपस में ही लड़ना एक कुनबे का संकट बन गया था।
ताजा मामला नीमच जिले का है। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में बीजेपी के दो विधायकों के बीच बहस होती दिखाई दे रही है। बताया जाता है कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के स्वागत के लिए पहुंचे नेताओं के बीच यह बहस कार्यकर्ताओं के हेलीपैड पर प्रवेश को लेकर हुई थी। वीडियो में नीमच विधायक दिलीप परिहार और जावद विधायक व पूर्व मंत्री ओमप्रकाश सकलेचा के बीच तनातनी साफ दिखाई दे रही है। मामले की शिकायत संगठन प्रमुखों तक पहुंच गई है।
आपसी संघर्ष का यह इकलौता मामला नहीं है। मालवा में दिखा यह आपसी संघर्ष हर जगह है क्योंकि बीजेपी में महत्वपूर्ण बने रहना मुश्किल होता जा रहा है। कुछ समय पहले टीकमगढ़ से सांसद और केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार खटीक के खिलाफ पूर्व मंत्री मानवेंद्र सिंह ने मोर्चा खोल दिया था। विधायक ललिता यादव ने भी मानवेंद्र सिंह का ही समर्थन किया था।
इसी तरह रायसेन जिले के एक स्कूल में नर्मदापुरम सांसद दर्शन सिंह चौधरी और राज्य मंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल के बीच महत्व को लेकर विवाद हो गया था। स्कूल के आमंत्रण पत्र में सांसद का नाम ऊपर था और मंत्री का नीचे। यह बात मंत्री को नागावार गुजरी। स्कूल प्रबंधन की माफी के बाद मामला शांत हुआ।
विंध्य क्षेत्र में रीवा सांसद जनार्दन मिश्रा ने और त्योंथर से बीजेपी विधायक सिद्धार्थ तिवारी के बीच संघर्ष को ज्यादा दिन नहीं हुए हैं। सांसद जनार्दन मिश्र ने एक कार्यक्र में बीजेपी विधायक सिद्धार्थ तिवारी के दादा और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी को लेकर टिप्पणी कर दी थी। इस पर बीजेपी विधायक सिद्धार्थ तिवारी ने तीखी आपत्ति दर्ज करवाई थी। सागर में आयोजित रीजनल इंडस्ट्रीयल कॉन्क्लेव में तो मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के सामने अपनी उपेक्षा से आहत कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव व भूपेंद्र सिंह कार्यक्रम आधे में छोड़ कर चल दिए थे।
बीजेपी नेताओं में यह आपसी संघर्ष वास्तव में महत्वपूर्ण बने रहने और वर्चस्व बनाए रखने की जद्दोजहद है। यह लड़ाई सत्ता और संगठन दोनों को असहज करने वाली है।
कांग्रेस में सक्रियता बनाए रखना दरकार
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने के 10 माह बाद जीतू पटवारी की कार्यकारिणी का गठन हो गया है। एमपी कांग्रेस की इस नई जंबो कार्यकारिणी के ऐलान के बाद से ही कांग्रेस के कई दिग्गज नेता नाराज चल रहे हैं। यही कारण है कार्यकारिणी से कई लोग नाराज है। पद न मिलने पर सार्वजनिक रूप से नाराजगी व्यक्त की जा रही हे। पार्टी में इस्तीफों का दौर है।
पार्टी नेताओं का मानना है कि उतनी नाराजगी है नहीं जितनी बताई जा रही है। सबको संतुष्ट करना संभव नहीं है। जो थोड़ी बहुत नाराजगी है वह भी जल्द खत्म हो जाएगी। यह तर्क अपनी जगह है लेकिन नई कार्यकारिणी गठन के बाद अब प्रदेश कांग्रेस के सामने दो उपचुनावों में बेहतर प्रदर्शन की चुनौती है। जीत के लिए रणनीति बना रही कांग्रेस का चुनाव में बेहतर प्रदर्शन उसके हौंसले बढ़ाने के लिए काफी होगा।
इन उप चुनावों के साथ ही विभिन्न राजनीतिक मोर्चों पर कांग्रेस को अपनी सक्रियता बनाए रखना है। टीम जीतू पटवारी जितनी अधिक सक्रिय रहेगी उतनी ही कांग्रेस सदन के अंदर और बाहर ताकतवर होगी।