जी भाई साहब जी: बीजेपी में एक सवाल, ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया दावा कर सकते हैं तो हम क्‍यों नहीं

कॉडर आधारित पार्टी बीजेपी में पार्टी की ताकत कहे जाने वाले नेताओं व कार्यकर्ताओं ने ही पार्टी की मुसीबतें बढ़ा दी हैं । कार्यकर्ता सवाल कर रहे हैं कि प्रयोग के नाम पर अनुभवहीन चेहरों को स्‍वीकार क्‍यों करें?

Updated: Jun 15, 2022, 10:03 AM IST

केंद्रीय मंत्री ज्‍योतिरा‍दित्‍य सिंधिया और  मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह
केंद्रीय मंत्री ज्‍योतिरा‍दित्‍य सिंधिया और मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह

बीजेपी कॉडर आधारित पार्टी है। इसके अनुशासन की नजीर दी जाती है। इसका अपना खास वोट बैंक भी है। इसी कारण यहां एक राजनीतिक मान्‍यता प्रचलित है कि कमल निशान ही प्रत्‍याशी होता है, चेहरा कोई हो फर्क नहीं पड़ता है। मगर, इस बार के नगरीय निकाय चुनाव में यह मान्‍यता गलत साबित हुई। पार्टी के बड़े नेताओं ने अपनी पसंद के नाम पर संगठन के निर्णय को उलझाए रखा तो विधायकों ने भी ताकत दिखाने में चूक नहीं की।

स्‍थानीय नेताओं ने यह सवाल उठाया कि जब केंद्रीय मंत्री ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया अपने समर्थकों के लिए दावा कर सकते हैं तो बीजेपी के बरसों पुराने नेता क्‍यों नहीं? सोशल मीडिया पोस्‍ट के जरिए संगठन के निर्णय का विरोध शुरू हो गया है। कार्यकर्ता सवाल कर रहे हैं कि प्रयोग के नाम पर अनुभवहीन चेहरों को स्‍वीकार क्‍यों करें? 

बीजेपी में महापौर प्रत्याशियों को लेकर शनिवार को कोर ग्रुप और चुनाव समिति की बैठक में मंथन शुरू हुआ। बीजेपी कोरग्रुप की पहली बैठक में ही 16 में से 13 नामों पर सहमति बन गई थी। इसे देख कर लगा था कि बीजेपी जल्‍द नाम घोषित कर मैदानी प्रचार में जुट जाएगी। मगर एक के बाद एक ऐसे पेंच फंसें कि इंदौर, भोपाल व ग्‍वालियर के साथ अन्‍य जगहों पर भी तय नामों पर असमंजस हो गया। इंदौर व भोपाल में केंद्रीय संगठन द्वारा तय नियम आड़े आ रहे थे तो ग्‍वालियर में केंद्रीय मंत्री ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया की पसंद को लेकर मामला अटक गया।

इंदौर और भोपाल में विधायक को टिकट ने देने का केंद्रीय संगठन का नियम आड़े आया। यहां से प्रमुख दावेदार रमेश मेंदोला विधायक हैं और विधायक को टिकट न देने के नियम के कारण उनका नाम कट गया। उनके विरोधियों ने भी नाम कटवाने में कुछ कसर शेष नहीं रख छोड़ी थी। विरोध बड़ा तो डॉ. निशांत खरे का नाम तय किया गया। डॉ. खरे को संघ की पसंद बताया गया। कोरोना के दौरान उनके कार्य उनकी बड़ी उपलब्धि बनी। मगर उनके नाम पर स्थानीय नेता सहमत नहीं हुए। इंदौर का नाम तय करने के लिए स्थानीय नेताओं को भोपाल बुलाया गया है। फिर, पुष्‍यमित्र भार्गव का नाम आया। कद्दावर नेता के बदले अपेक्षाकृत नए चेहरे को मैदान में उतारने पर बड़े नेता सहमत हो गए। लेकिन अंदरूनी विवाद सतह पर आ रहा है।

भाजपा के जमीनी कार्यकत्ताओं के बीच पैराशूट लेंडिंग वाले नाम का विरोध खुले तौर पर शुरू हो गया। सोशल मीडिया पर जारी पोस्‍ट में एक वरिष्ठ भाजपा नेता के हवाले से कहा गया है कि भाजपा का कार्यकर्ता अथक परिश्रम के साथ भाजपा की सरकार लाया हैं और जब पद प्रतिष्ठा, नेतृत्‍व की बात आती हैं तो पैराशूट लैंडिंग करवाकर मेहनतकश कार्यकर्ताओं के ऊपर गैर अनुभवान व्यक्ति को बैठाना कहां तक उचित है? जीती हुई सीट हैं तो क्या हमारे मेहनत पर पलीता लगाकर हमारे ऊपर ऐसे निर्णय नही थोपे जा सकते हैं, हम विरोध करेंगे या नहीं,यह तो वक्त बताएगा परंतु कार्यकर्ताओं के साथ अन्याय कतई नही होना चाहिए। इंदौर महापौर के लिए डॉ निशांत खरे, सरकारी वकील पुष्यमित्र भार्गव या वकील मनोज द्विवेदी भाजपा के किसी भी पद पर सीधे नही रहे तो महापौर का टिकट कैसे ले सकते हैं? एक तरफ कांग्रेस अपने नेताओं को मौका देकर स्थापित कर रही हैं और वही भाजपा आयातित नेताओं को लाकर भाजपा कार्यकर्ताओं के ऊपर लाकर अपने लिए आने वाले समय के लिए गड्ढे खुद खोद रही हैं जिसके परिणाम आने वाले 2023 के आम चुनाव में देखने को मिलेंगे।

ग्वालियर में केंद्रीय मंत्री ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया के रिश्‍ते की मामी माया सिंह के नाम पर स्‍थानीय नेताओं ने असहमति जता दी है। एक ही परिवार के लोगों को मिल रहे टिकट को लेकर सवाल उठ रहे हैं। बीजेपी ने परिवार, विधायक और सांसद को टिकट न देने की गाइडलाइन बनाई है। 72 वर्षीय माया सिंह उम्र के क्राइटेरिया में भी फिट नहीं बैठती है। ग्वालियर सीट सामान्य महिला के लिए आरक्षित है, तो ओबीसी को टिकट देने का भी विरोध है।

छिंदवाड़ा में जितेंद्र शाह का नाम लगभग तय था। स्थानीय स्तर पर विरोध के कारण अनंत धुर्वे को टिकट दिया गया। धुर्वे नगर निगम में अपर कमिश्‍नर हैं। पार्टी ने आदिवासी बाहुल क्षेत्र में पैठ को देखकर नाम तय किया है। उनके आने से नगरीय निकाय चुनाव में ब्‍यूरोक्रेट की आमद हो गई है। इस फैसले से विधानसभा चुनाव में बीजेपी से टिकट की आस लगाए सभी वर्तमान और पूर्व अफसरों के चेहरे खिल गए हैं। 

रीवा में वेंकटेश पांडे का नाम भी तय होने के बाद कट गया। पांडे का नाम पहले तय होने पर उनका स्थानीय स्तर पर विरोध शुरू हो गया था। पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ला ने रीवा से वेंकटेश और प्रबोध शुक्ला का नाम दिया था। अन्य नेताओं से सहमति नहीं बन पाने के कारण प्रबोध शुक्ला को प्रत्याशी बनाया गया है।

भोपाल में जब मामला उलझा तो मंत्री विश्‍वास सांरग आगे आए। उन्‍होंने अपने साथ दो अन्‍य विधायकों को लिया और पार्टी को मालती राय के नाम पर मुहर लगाने के‍ लिए मजबूर कर दिया। 

इस तरह नगरीय निकाय चुनाव में अपने समर्थकों को चुनाव मैदान में उतारने के बड़े नेताओं के सपने पर स्‍थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं ने पानी फेर दिया है। प्रदेश संगठन ने अपने को दबाव की राजनीति में फंसा पाया। विवाद और दबाव को देखते हुए मैदानी फीडबैक को तवज्‍जो दी गई ताकि फैसला का जिम्‍मेदार कार्यकर्ताओं व अन्‍य नेताओं को बताया जा सके। जो जीतेंगे वे संगठन व सत्‍ता की उपलब्धियों पर सवार हो कर जीते माने जाएंगे। 

असंतुष्‍ट नेताओं के फेर में बीजेपी के बनते बिगड़ते समीकरण 

बीजेपी का लक्ष्‍य मिशन 2023 फतह कर सत्‍ता में वापसी है। इसके लिए दिल्‍ली से लेकर भोपाल तक के पदाधिकारी हर तरह की तै‍यारियों को अंजाम दे रहे हैं। मगर पार्टी में असंतुष्‍ट नेताओं की संख्‍या बढ़ती जा रही है। उन नेताओं के क्रियाकलाप पार्टी के समीकरण प्रभावित का रहे हैं। 

परिवारवाद की राजनीति को नो कह चुकी बीजेपी और इसके उम्र के क्राइटेरिया ने वरिष्‍ठ नेताओं को असहज कर दिया है। आधा दर्जन नेताओं के पुत्र या परिजन राजनीति में प्रवेश के लिए तिलक लगाए बैठे हैं। नगरीय निकाय चुनाव में पार्टी नेतृत्व की सख्‍ती साफ दिखाई दी है। विधायकों को टिकट ने देने के नियम में ढील नहीं दी गई। इससे कई विधायक व उनके समर्थक नाराज हैं। दूसरी तरफ, सक्रिय राजनीति छोड़ने का मन बना चुके नेताओं ने अपने पुत्रों को लॉच करने की तैयारी की है मगर अब वे अपने राजनैतिक भविष्य को लेकर चिंतित हैं। 

दमोह में यही हुआ। यहां बीजेपी का पर्याय कहे जाने वाले मलैया परिवार के प्रतिनिधि सिद्धार्थ मलैया ने पैतृक पार्टी से नाता तोड़ दिया है। दमोह उपचुनाव में जब मलैया परिवार की भूमिका पर सवाल उठे तो उन्‍हें अनुशासनात्मक कार्रवाई भोगनी पड़ी थी। अब उन्‍होंने पार्टी छोड़ने का निर्णय किया है। किसी और दल में जाने की जगह सिद्धार्थ मलैया ने अपनी मैदानी ताकत दिखाने का निर्णय लिया है। वे नगरीय निकाय चुनाव में अपने समर्थकों को मैदान में उतारेंगे। यानि उनके समर्थक जो कले बीजेपी का झंडा लहरा रहे थे वे आने वाले कल में बीजेपी के खिलाफ ताकत दिखलाएंगे। मैदान में यह ताकत बीजेपी का वोट ही काटेगी।

मलैया परिवार को पार्टी ने बहुत कुछ दिया है और परिवार ने पार्टी को खड़ा करने में अहम् योगदान दिया है। फिर भी उपेक्षा से त्रस्‍त हो कर जब सिद्धार्थ मलैया ने पार्टी छोड़ी है तो इसका संदेश दूर तक जा सकता है। उनके समर्थक बीजेपी को कितना नुकसान पहुंचाएंगे यह तो भविष्‍य बताएगा लेकिन सिद्धार्थ मलैया का यह कदम उन सभी नेताओं व नेतापुत्रों के लिए एक नजीर हो सकती है जो 2023 विधानसभा चुनाव में टिकट की आस लगाए बैठे हैं और पार्टी जिनकी उम्‍मीदों पर पानी फेरने की नित नई तैयारी कर रही है। 

असंतुष्‍ट नेताओं में केंद्रीय जलशक्ति राज्‍य मंत्री प्रह्लाद पटेल, एमपी के कैबिनेट मंत्री गोपाल भार्गव, पूर्व सीएम उमा भारती जैसे नाम प्रमुख हैं जिनकी सक्रियता से पार्टी के समीकरण रोज ही बन और बिगड़ रहे हैं। 

जिन्‍हें शांत रहना चाहिए वही साध्वियां स्‍व हित के लिए अशांत

आमतौर पर मान्‍यता है कि साधु-संन्‍यासी अपने क्रोध, लोभ, मोह जैसे मानसिक विकारों पर विजय पा लेते हैं। यह संन्‍यासियों का सबसे बड़ा गुण व धर्म कहा गया है। एमपी की राजनीति की दो साध्वियों ने फिलहाल इस गुण को त्‍याग दिया है। वे क्रोध में हैं। आक्रोशित हैं और अपने कार्यों व बयानों से लगातार अपनी मातृ पार्टी बीजेपी को संकट में डाल रही हैं। 

शराब बंदी को लेकर अपनी ही सरकार के खिलाफ आक्रामक हुई पूर्व मुख्‍यमंत्री उमा भारती ने भोपाल की शराब दुकान पर पत्‍थर फेंक कर अपना आक्रोश जताया था। इस कदम की आलोचना भी हुई। मध्‍य प्रदेश के नेताओं ने यह कहते हुए बयान व उमा पर कार्रवाई से पल्‍ला झाड़ लिया था कि उन पर कार्रवाई केंद्रीय संगठन ही कर सकता है। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर निशाना साधने वाली उमा भारती कभी आक्रामक होती है तो कभी सरेंडर की मुद्रा में आ जाती हैं। 

अब उमा भारती ने बुंदेलखंड की अयोध्या कहे जाने वाले ओरछा में शराब दुकान पर गाय का गोबर फेंका है। राजा राम की नगरी ओरछा पहुंची उमा भारती ने मंगलवार को दर्शन करने के दौरान राह में दिखी शराब दुकान पर गोबर फेंका। 

उमा भारती ने स्वयं ट्वीट कर लिखा है, मुझे आज तो एक और दु:खद जानकारी हुई कि अयोध्या के बराबर पावन मानी जाने वाली ओरछा नगरी में जब रामनवमी पर दीपोत्सव हुआ, पांच लाख दिये जले, मुख्यमंत्री थे तथा मैं भी थी, तब भी यह शराब की दुकान उस पावन दिन पर भी खुली हुई थी। आज भी खुली हुई है मुझे अपने आप पर शर्म आ रही है।

उमा भारती के इन बयानों व क्रियाकलापों को उनकी राजनीतिक उपेक्षा से जोड़ कर देखा जा रहा है। वे पार्टी से साइड लाइन हैं और इस कारण माना जा रहा है कि अस्तित्‍व में बने रहने के लिए वे लगातार ऐसे कार्य कर रही हैं जो सबका ध्‍यान आकर्षित करे। 

दूसरी साध्‍वी भोपाल सांसद प्रज्ञा ठाकुर भी ऐसे ही कदम उठा रही हैं। पहले वे बीजेपी से निलंबित नुपुर शर्मा के समर्थन में बयान दे कर चर्चा में आई। सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने कहा कि सच कहना बगावत है तो समझो हम भी बागी हैं। उसके बाद जब नगरीय निकाय चुनावों के लिए उम्मीदवारों का चयन करने वाली भोपाल मंडल चयन समिति से सांसद प्रज्ञा ठाकुर को बाहर रखा गया तो कई सवाल उठे। 

इन सवालों के जवाब में प्रज्ञा ठाकुर ने तीखे अंदाज में ट्वीट किया है। उन्‍होंने लिखा कि मुझे चयन समिति में शामिल नहीं करने के पार्टी के फैसले को मैं स्वीकार करती हूं। हालांकि आठ विधानसभा क्षेत्रों के मतदाताओं ने वोट देकर मुझे एक सांसद के रूप में चुना है। मैं अपने लोगों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करती रहूंगी। और हां काँ. हम आग भी वहां लगाते हैं जहां मुर्दा भी आग से डरते हैं।

सांसद संन्यासी के नाम से यह ट्वीट असल में सांसद प्रज्ञा ठाकुर के आक्रोश का प्रतीक है। आकलन है कि मंडल स्तर पर गठित चयन समिति में अपने बहिष्कार से प्रज्ञा ठाकुर नाराज हैं क्योंकि अन्य सांसदों को समितियों में शामिल किया गया है। लगातार विवादास्‍पद बयान और एक समुदाय को निशाने पर लेने के बाद भी स्‍थानीय संगठन और नेताओं ने सांसद प्रज्ञा ठाकुर से दूरी बना रखी हैं। इसलिए, वे बार-बार कोशिश कर रही हैं कि तीखे स्‍वभाव वाली अपनी छवि को चमकाए ताकि पार्टी में सामयिक बनी रहें। 

जब जीत ही दरकार तो कांग्रेस का यह कैसा निर्णय 

प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष कमलनाथ के किसी निर्णय पर आमतौर पर सार्वजनिक विरोध कम ही होता है। उनके अनुभव और कद को देखते हुए सभी सीधे विरोध करने से बचते हैं। मगर बीते सप्‍ताह प्रदेश कांग्रेस कार्यालय के एक ओदश ने अच्‍छी खासी किरकिरी करवा दी है। 

कांग्रेस से प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ की अध्यक्षता में हुए एक निर्णय के आधार पर प्रदेश कांग्रेस ने आदेश निकाला था कि पार्षद चुनाव टिकट पाने लिए दावेदार का उस वार्ड का रहवासी होना जरुरी है। लेकिन इस आदेश का कोई और तो ठीक कमलनाथ के कट्टर समर्थक माने जाने वाले विधायक पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने ही विरोध कर दिया। 

सज्जन सिंह वर्मा ने साफ किया कि प्रत्याशी अगर दमदार और जितने के काबिल हो तो पार्टी उन्हें दूसरे वार्ड से भी टिकट दे सकती है। कांग्रेस को उन सभी उम्मीदवारों का ध्यान रखना चाहिए जो जीत सकते हैं, फिर चाहे वे किसी भी वार्ड से हो। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि पूर्व पार्षद की पत्नियों को भी चुनाव लड़वाने में कांग्रेस को कोई आपत्ति नहीं होगी। 

असल में, सज्‍जन वर्मा ने उन तमाम कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं की बात को आवाज दी है जो किसी तरह कांग्रेस को चुनाव में जितवाना चाहते हैं। कमलनाथ की अगुआई में लिया गया निर्णय आदर्श परिस्थिति के लिए है जब पार्टी बेहद मजबूत स्थिति में हो तथा उसे इत्‍मीनान हो कि उसका कोई भी प्रत्‍याशी जीत ही जाएगा। किसी भी प्रयोग के लिए हर पहलू में संगठन का सशक्‍त होना जरूरी है कि उसके चुने हुए प्रत्‍याशी का विरोध मायने नहीं रखेगा या भितरघात शून्‍य असर डालेगा। 

सज्‍जन वर्मा के बयान के बाद उन सभी कार्यकर्ताओं ने राहत की सांस ली जो कमलनाथ के आदेश के बाद सकते में आ गए थे। इन नेताओं का कहना है कि अभी जीत ही महत्‍वपूर्ण है। जो जहां से ताकतवर है, लड़े और जीत कर आए। प्रत्‍याशी जीतेंगे तो ही विधानसभा चुनाव में पार्टी उम्‍मीदों के अनुरूप प्रदर्शन कर पाएगी।