देवि पूजि पद कमल तुम्हारे

ऐश्वर्यस्य समग्रस्य,   धर्मस्य यशस: श्रिय:।   ज्ञान वैराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतीरिणा।।

Updated: Oct 17, 2020, 01:05 PM IST

आज नवरात्रारम्भ है। प्रत्येक गली, मुहल्ला, घर जगदम्बा के पावन यश से गुंजायमान हो रहा है।आज से नौ दिन पर्यंत हम सभी सनातन धर्मावलंबी उस ईश्वर की आराधना भगवती के रूप में करने का संकल्प ले रहे हैं। सर्वप्रथम हमारे लिए भगवती शब्द का अर्थ जानना अति आवश्यक है। जिसमें छः प्रकार के भग हों उन्हें भगवती कहते हैं।
  ऐश्वर्यस्य समग्रस्य,
  धर्मस्य यशस: श्रिय:।
  ज्ञान वैराग्ययोश्चैव
  षण्णां भग इतीरिणा।।

समग्र ऐश्वर्य, समग्र धर्म, समग्र यश, समग्र श्री, समग्र ज्ञान और समग्र वैराग्य ये छः भग सदैव जिसके अंदर रहें वो भगवान् है।

पुल्लिंग में उसे भगवान् और स्त्रीलिंग में भगवती कहते हैं। ऐसी भगवती जिनके ऊपर अनुग्रह करती हैं उसके धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों की सिद्धि हो जाती है। वस्तुत: जगदम्बा और भगवान में कोई भेद नहीं है। शक्ति और शक्तिमान दोनों अभिन्न हैं जैसे मणि और मणि की प्रभा परस्पर अभिन्न हैं, वैसे ही शक्ति और शक्तिमान परस्पर अभिन्न हैं। हम किसी भी रूप में ईश्वर की आराधना करें, हमारा कल्याण सुनिश्चित है। पर जगदम्बा के रूप में उनकी आराधना इसलिए सुगम हो जाती है कि उनकी आराधना हम "मां" के रूप में करते हैं। संसार में माता का प्रेम लोग जीवन भर नहीं भूल पाते। जब भी कोई कष्ट आता है तो मुख से निकल ही जाता है कि "अरी मां" अर्थात् बचपन में मां के द्वारा जो प्रेम मिला है उसको मनुष्य भूल नहीं पाता। हमारे उपनिषदों में जो उपदेश आता है-
  मातृदेवो भव
  पितृदेवो भव
  आचार्यदेवो भव

इसका अर्थ है कि माता को देवता माननेवाले बनो, पिता को देवता मानने वाले बनो, आचार्य को देवता मानने वाले बनो। पर इसमें सबसे पहले मां का नाम लिया गया। क्योंकि बालक जब जन्म लेता है तो वह पशुवत् होता है। चाहे जहां शौच, लघुशंका आदि कर देता है। कुछ भी उठाकर मुख में डाल लेता है पर मां उसे समझाती है, पशु से मनुष्य बनाती है। इसलिए पहली गुरु मां होती है। उसमें इतनी ममता होती है कि यदि बेटे को कोई कष्ट हो जाय तो वह पूरी रात्रि जागकर बेटे के पीठ में हाथ फेरती है। उसे सांत्वना देती है और किसी कारण पिता रुष्ट हो जाएं तो मां कहती है कि मुझे मार लो, मेरे बेटे को छोड़ दो। भगवान शंकराचार्य जी कहते हैं कि-
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि, कुमाता न भवति

पुत्र भले ही कुपुत्र हो जाय किन्तु माता कभी कुमाता नहीं होती। इसलिए मां का स्थान पहले है। यदि कोई शिव की आराधना करता है तो वह गौरी शंकर कहता है, श्रीराम जी का उपासक सीताराम और नारायण का उपासक लक्ष्मी नारायण तथा कृष्ण का उपासक राधेश्याम कहता है। अतः ये कहना होगा कि मां का स्थान सर्वोपरि है। जगदम्बा के श्री चरणों में प्रणिपात होती हुई- देवि पूजि पद कमल तुम्हारे