सर्वपितृमोक्ष अमावस्या पर करें पितरों का श्राद्ध, मिलेगी पितृदोष से मुक्ति

आश्विन माह की कृष्ण अमावस्या को श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं, इस दिन किए गए श्राद्ध और दान से पितृ होते हैं संतुष्ट, संतान सुख, लक्ष्मी और आरोग्य की प्राप्ति होती है

Updated: Oct 04, 2021, 01:16 PM IST

Photo Courtesy: UP KIRAN
Photo Courtesy: UP KIRAN

ऑश्विन महीने की अमावस्या को सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या के रूप में मनाया जाता है। इस बार 6 अक्टूबर बुधवार को यह खास दिन पड़ रहा है। इस दिन दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए विशेष पूजा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। इस दिन पितृ दोष से मुक्ति के लिए पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध करना चाहिए। वहीं कुछ लोग इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए व्रत रखते हैं। अमावस्या पर अन्न, जल, तिल का दान किया जाता है। इस दिन ब्राह्मणों को यथा शक्ति भोजन कराया जाता है। वहीं गाय को हरा चारा खिलाने से भी शुभ फल की प्राप्ति होती है।

 सर्वपितृमोक्ष अमावस्या के दिन पितृरों के नाम पर तिलांजलि दी जाती है।इस दिन पानी में दूध डालकर नहाने से पितृरों का आशीर्वाद मिलता है। पीपल में कच्चा दूध चढ़ाने से भी पितृ प्रसन्न होते हैं। वहीं पीपल के पेड़ पर तिलांजलि दी जा सकती है। स्नान करने के बाद हथेली में स्वच्छ जल लें और उसपर तिल डालें और फिर उसे पीपल के पेड़ पर अर्पित कर दें। अगर आप किसी सरोवर में स्नान करने गए हैं तो सरोवर में भी तिलांजलि की जा सकती है।

अमावस्या के दिन पीपल पर दूध मिश्रित जल से स्नान करवाएं, पितृरों का पूजन कर धूप दीप नैवेद्य, काले तिल औऱ जौ का खास महत्व हैं, वह अर्पित करें। इस दिन अन्न और वस्त्र दान करें। अगर घर पर भोजन करवाना संभव ना हो तो श्रद्धा के अनुसार अनाज दान करें। आटा, दाल, चावल, सब्जी, हल्दी, घी, नमक, फल और दक्षिणा दान करने से पितृ आशीर्वाद देते हैं। भोजन का पहला हिस्सा गाय, दूसरा कुत्ते और तीसरा कौवे औऱ चौथा चीटियों के लिए निकालें। इस अमावस्या कालसर्प और पितृ दोष निवारण के लिए विशेष पूजन करने का विधान है। जानकारों का कहना है कि अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्रमा का अंतर शून्य हो जाता है। इसलिए इन दोनों की खास स्थिति के दौरान पितृरों की पूजा और दान अनंत फल देता है। श्राद्ध करते समय दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके बैठना चाहिए। 

घर के अलावा पवित्र नदियों,जैसे गंगा, जमुना, नर्मदा,या अपने शहर या गांव के आसपास की नदियों में श्राद्ध कर्म किया जा सकता है। माना जाता है कि संगम या समुद्र में गिरने वाली नदियों के तट पर उचित समय में विधि-विधान से श्राद्ध ज्यादा फलदाई होता है। गौशाला को गोबर से शुद्ध करके श्राद्ध किया जा सकता है। अमावस्या पर श्राद्ध दोपहर के समय किया जाता है, मध्यान में जब सूर्य की छाया पैरों पर पड़ने लगे वह मध्याह्न का समय सबसे ठीक माना जाता है। ऐसा समय दिन में 11:30 बजे से 12:30 के बीच का होता है। 

पितृरों के पूजन के बाद उनकी विदाई की जाती है। उनसे जीवन में सुख समृद्धि की कामना की जाती है। इसके बाद परिवार और कुटुंब के साथ भोजन ग्रहण किया जाता है। ऐसा करने से पितृरों का आशीर्वाद बना रहता है।