अपने लिए ही होना चाहिए विचार

यदि हम चाहें तो आध्यात्मिक उपायों से हमारा वर्तमान जीवन भी हो सकता है उज्जवल और सुखद

Publish: Jul 17, 2020, 12:06 PM IST

बुद्धि वाद का त्याग करके बुद्धि योगी बनने में ही सबका कल्याण है। आध्यात्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि- अविचारकृतो बन्धो विचारेण निवर्तयेत्
अर्थात् बन्धन अविचार कृत है, उसे विचार से निवृत्त करना चाहिए। विचार परायण होना सभी प्रकार की समस्याओं के समाधान का सर्वोत्तम उपाय है।

यद्यपि आज के युग में विचारों की न्यूनता नहीं, फिर भी अनेकों समस्याएं इसलिए बनी हुई हैं क्यूंकि विचारकों के अधिकांश विचार दूसरों के लिए ही होते हैं, अपने लिए नहीं। वस्तुत: विचार अपने लिए ही होना चाहिए।

आध्यात्मिक साधना में एकांत सेवन को इसीलिए महत्त्व दिया गया है कि उक्त अवसर पर हम अपने सम्बन्ध में सोचें और देखें कि जो कुछ हम कहते सुनते हैं,उसको अपने आचरण में कितना ला रहे हैं। विद्वज्जन तर्क और युक्ति से संसार को मिथ्या सिद्ध कर देते है, उसके विरुद्ध शंकाओं का अकाट्य उत्तर भी देते हैं।पर प्रश्न तो यह है कि व्यवहार काल में कितनी देर जगत् में मिथ्यात्वबुद्धि रख पाते हैं।

प्राय: लोगों की धारणा है कि धर्माचरण, सत्संग और साधना जीवन को उज्जवल और सुख शांतिमय बनाने के लिए है, जिसका फल मरण के पश्चात् प्रारम्भ होता है। किन्तु यह धारणा एकांगी है। यदि हम चाहें तो इन आध्यात्मिक उपायों से हमारा वर्तमान जीवन भी उज्जवल और सुखद हो सकता है।