भारत की उड़नपरी एथलीट हिमा दास बनी DSP, बोलीं, बचपन का सपना पूरा हुआ

असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने हिमा को सौंपा नियुक्ति पत्र, विश्व चैंपियन ने कहा, पुलिस की नौकरी के साथ खेलों में भी करियर जारी रखूंगी

Updated: Feb 27, 2021, 07:40 AM IST

Photo Courtesy: Twitter
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गुवाहाटी। भारत की उड़नपरी नाम से मशहूर स्टार धाविका हिमा दास असम पुलिस में DSP नियुक्त की गई हैं। असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने शुक्रवार को उन्हें नियुक्ति पत्र दिया। DSP बनने के बाद हिमा ने सोशल मीडिया पर वर्दी में अपनी तस्वीर भी साझा की है। उन्होंने बताया है कि पुलिस में जाना उनका बचपन का सपना था। 

डीएसपी नियुक्त होने के बाद हिमा ने खुशी जाहिर करते हुए कहा, 'यहां लोगों को पता है, मैं कुछ अलग नहीं कहने जा रही। स्कूली दिनों से ही मैं पुलिस अधिकारी बनना चाहती थी और यह मेरी मां का भी सपना था। मां दुर्गापूजा के दौरान मुझे खिलौने में बंदूक दिलाती थी और कहती थी कि मैं असम पुलिस की सेवा करूं।' 

हिमा ने बताया है कि वह पुलिस की नौकरी के साथ खेलों में भी अपना करियर जारी रखेंगी। उन्होंने कहा, 'मुझे सब कुछ खेलों की वजह से मिला है। मैं असम में खेल की बेहतरी के लिए काम करूंगी और असम को हरियाणा की तरह सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला राज्य बनाने की कोशिश करूंगी। असम पुलिस के लिए काम करते हुए अपना कैरियर भी जारी रखूंगी।' 

शुक्रवार को एक कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल और असम के डीजीपी भास्कर ज्योति महंत ने खुद अपने हाथों से हिमा को आधिकारिक तौर पर डीएसपी की स्टार बैज लगाई। उन्हें असम की क्रीड़ा नीति 2017 और 18 के तहत  डीएसपी पद पर नियुक्त किया गया है। एशियाई खेलों में गोल्ड जीत चुकी हिमा को अभी टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वॉलीफाई करना है। उनको साल 2018 के एशियाई खेलों के दौरान चोट लग गई थी। इस कारण वह सितंबर 2019 में दोहा में हुई विश्व चैंपियनशिप में हिस्सा नहीं ले पाईं थीं। 

कौन हैं हिमा दास

हिमा दास का यहां तक का सफर बेहद संघर्षों से भरा रहा है। हिमा असम के नगांव जिले के एक छोटे से गांव धिंग की रहने वाली हैं। वे एक साधारण किसान परिवार से आती हैं। उनके पिता चावल की खेती करते हैं। हिमा अपने परिवार के 6 बच्चों में सबसे छोटी हैं। वे अपने पिता के साथ खेतों में बुआई और निराई का काम करती रही हैं। 

हिमा खाली समय में खेत के पास मौजूद मैदान पर लड़कों के साथ फुटबॉल खेलती थीं। फुटबॉल में लड़कों को बराबरी से टक्कर देते देख खेल निदेशालय के कोच निपोन दास हिमा से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने हिमा को एथलीट बनने की सलाह दी। ट्रेनिंग दिलाने के लिए हिमा के परिजनों के पास पैसे नहीं थे। कोच की मदद से ही उन्होंने अपना संघर्ष शुरू किया। वह टायर बांधकर दौड़ा करती थीं। पैरों में फटे-पुराने जूते भी नहीं थे। नंगे पैर ही रेस लगाया करती थीं। हिमा पहली भारतीय महिला हैं, जिन्होंने 400 मीटर की दौड़ स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीता।