सेना में महिला अफसरों की बड़ी जीत, फिटनेस मापदंड को सुप्रीम कोर्ट ने बताया तर्कहीन

परमानेंट कमीशन देने के मामले में सुनवाई के दौरान आज जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि हमारे समाज की संरचना पुरुषों द्वारा पुरुषों के लिए बनाई गई है

Updated: Mar 25, 2021, 09:08 AM IST

Photo Courtesy : The Economic Times
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नई दिल्ली। भारतीय सेना में महिला अफसरों की बड़ी जीत हुई है। आर्मी और नेवी में महिला अफसरों को स्थाई कमीशन की मांग को लेकर दायर याचिक पर सुप्रीम कोर्ट ने आज फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने सेना को निर्देश दिया है कि वह एक महीने के भीतर महिला अधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन देने पर विचार करे और नियत प्रक्रिया का पालन करते हुए 2 महीने के भीतर इन्हें स्थायी कमीशन दे। इतना ही नहीं शीर्ष न्यायालय ने सेना के फिटनेस मापदंडों को मनमाना करार देते हुए स्थायी कमीशन नहीं दिए जाने को भी गलत बताया है। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा है की हमारा समाज पुरुषों के द्वारा और पुरुषों के लिए बनाया गया है। 

भारतीय सेना में महिला अफसरों को स्‍थायी कमीशन देने संबंधी मामले की सुनवाई करते हुए गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने तीखी टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि 250 की सीलिंग को 2010 तक पार नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि जिन आंकड़ों को रिकॉर्ड पर रखा गया है, वो केस के बेंचमार्किंग को पूरी तरह से ध्वस्त करते हैं।  कोर्ट ने स्वीकार किया कि सेना की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) मूल्यांकन और देर से लागू होने पर चिकित्सा फिटनेस मानदंड महिला अधिकारियों के खिलाफ भेदभाव करता है। 

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अदालत ने कहा, 'मूल्यांकन के पैटर्न से एसएससी (शॉर्ट सर्विस कमीशन) महिला अधिकारियों को आर्थिक और मनोवैज्ञानिक नुकसान होता है। महिला अधिकारी चाहती थीं कि उन लोगों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू की जाए जिन्होंने कथित रूप से अदालत के पहले के फैसले का पालन नहीं किया था। भारतीय सेना और नौसेना में महिला अधिकारियों के लिए स्थाई आयोग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेना द्वारा अपनाए गए मानकों की कोई न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती है।

हमारे समाज की संरचना पुरुषों के लिए बनाई गई- SC

सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने आर्मी के मेडिकल नियमों को भेदभावपूर्ण करार देते हुए कहा कि हमें यह ध्यान रहना चाहिए कि हमारे समाज की संरचना पुरुषों के द्वारा पुरुषों के लिए की गई है। कोर्ट ने कहा कि सेना में एक करियर कई ट्रायल के साथ आता है। यह तब और मुश्किल हो जाता है जब समाज महिलाओं पर चाइल्टकेयर और घरेलू काम की जिम्मेदारी डालता है। अपने फैसले में न्यायालय ने कहा कि महिला अफसर अपने नौकरी के 10वें साल में जिस मेडिकल स्टैंडर्ड में थी उसी के हिसाब से उनको आंका जाए। साथ ही यह भी निर्देश दिया है कि मेडिकल ग्राउंड पर जिन महिलाओं को रिजेक्ट किया गया है उन्हें एक मौका और दिया जाए।