2014 अलनीनो वर्ष होगा ?

–नरेन्द्र देवांगन- अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियां और विशेषज्ञ जो संकेत पहले से दे रहे थे, अब उसकी पुष्टि भारतीय मौसम विभाग ने भी कर दी है। इस वर्ष मानसून सामान्य (50 वर्षों के औसत) से कम रहने का अनुमान है। जिस देश के अधिकांश इलाकों में खेती आज भी मानसून पर निर्भर हो, निस्संदेह उसके लिए ये […]

Publish: Jan 05, 2019, 11:33 PM IST

2014 अलनीनो वर्ष होगा ?
2014 अलनीनो वर्ष होगा ?
- span style= color: #ff0000 font-size: large नरेन्द्र देवांगन- /span p style= text-align: justify strong अं /strong तर्राष्ट्रीय एजेंसियां और विशेषज्ञ जो संकेत पहले से दे रहे थे अब उसकी पुष्टि भारतीय मौसम विभाग ने भी कर दी है। इस वर्ष मानसून सामान्य (50 वर्षों के औसत) से कम रहने का अनुमान है। जिस देश के अधिकांश इलाकों में खेती आज भी मानसून पर निर्भर हो निस्संदेह उसके लिए ये खबर चिंता बढ़ाने वाली है। खासकर उस समय जब भारत पिछले कई वर्षों से खाद्य पदार्थों की महंगाई से जूझता चला आ रहा है। बारिश अच्छी ना होने का सीधा असर अनाज की पैदावार पर पड़ता है जिससे खाद्यान्न के बाजार भाव भी प्रभावित होते हैं। इससे पूरी अर्थव्यवस्था बल्कि राजनीतिक स्थितियां भी प्रभावित होती है। /p p style= text-align: justify एक के बाद एक अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियां अलनीनो की भविष्यवाणी कर रही हैं। अमरीका आस्ट्रेलिया के बाद अब पेरू और इंडोनेशिया आदि देशों के मौसम विभागों ने इस बात की आशंका जाहिर की है कि 2014 अलनीनो वर्ष हो सकता है। अलनीनो के कारण पूरी दुनिया में वर्षा और हवाओं तूफान आदि के रूख में परिवर्तन दर्ज किया जाता है। उदाहरण के लिए इससे जहां पेरू और अमरीका आदि देशों में अतिवर्षा की आशंका होती है वहीं भारत और आस्ट्रेलिया आदि देशों में सूखे की आशंका बढ़ जाती है। /p p style= text-align: justify भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान अब तकरीबन 13 फीसद ही है मगर इस क्षेत्र पर आबादी का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा आज भी निर्भर है। इसके अलावा खाद्य पदार्थों की कीमतों का असर उद्योग या सेवा क्षेत्र में कार्यरत लोगों पर भी होता है। फिर अनाज की महंगाई से कुल मुद्रास्फीति प्रभावित होती है। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन यह साफ कर चुके हैं कि जब तक मुद्रास्फीति नियंत्रण में नहीं आती रिजर्व बैंक आर्थिक वृध्दि दर को बढ़ावा देने वाली नीतियों पर नहीं चल सकता। यानी मानसून कैसा रहता है इसका देश की सकल अर्थव्यवस्था से सीधा नाता है। /p p style= text-align: justify प्रशांत महासागर के केंद्र और पूर्वी भाग में पानी का औसत सतही तापमान कुछ वर्ष के अंतराल पर असामान्य रूप से बढ़ जाता है। लगभग 120 डिग्री पूर्वी देशांतर के आसपास इंडोनेशियाई द्वीप क्षेत्र से लेकर 80 डिग्री पश्चिमी देशांतर यानी मेक्सिको और दक्षिण अमरीकी पेरू तट तक संपूर्ण उष्ण क्षेत्रीय प्रशांत महासागर में यह क्रिया होती है। एक निश्चित सीमा से अधिक तापमान बढ़ने पर अलनीनो की स्थिति बनती है और वहां सबसे गर्म समुद्री हिस्सा पूरब की ओर खिसक जाता है। समुद्र तल के 8 से 24 किलोमीटर ऊपर बहने वाली जेट स्ट्रीम प्रभावित हो जाती है और पश्चिमी अमरीकी तट पर भयंकर तूफान आते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसका पृथ्वी के समूचे जलवायु तंत्र पर असर पड़ता है। /p p style= text-align: justify अमरीका की नेशनल ओशेनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनेस्ट्रेशन ने वर्ष की शुरूआत में ही यह आशंका जाहिर कर दी थी कि 2014 अलनीनो वर्ष हो सकता है। इसके अनुसार जून-जुलाई तक उत्तरी गोलार्धा में अलनीनो की अवस्था बन सकती है। अर्थात नीनो इंडेक्स का तापमान +.5 से अधिक या उसके बराबर हो सकता है। दस अप्रेल को जारी भविष्यवाणी में अमरीकी एजेंसी ने दोहराया है कि वर्तमान में अलनीनो की स्थिति सामान्य है पर आने वाले दिनों में इसकी आशंका अब 50 प्रतिशत से अधिक है। /p p style= text-align: justify अनुमान है कि आने वाले महीनों में केंद्रीय प्रशांत महासागर में तापमान बढ़ सकता है। मौसम का अनुमान बताने वाले अधिकांश मॉडल्स के अनुसार आने वाले कुछ महीनों में समुद्र की सतह का तापमान अलनीनो स्तर तक पहुंच सकता है। अलनीनो को प्राय: दक्षिणी और भीतरी आस्ट्रेलिया में वर्ष के उत्तरार्ध में सामान्य से कम बारिश से जोड़कर देखा जाता है। अलनीनो की ताकत हमेशा इस बात का संकेत नहीं देती है कि वह आस्ट्रेलिया में बारिश को कितना प्रभावित करेगा। अतीत में देखें तो कभी कमजोर अलनीनो से भी आस्ट्रेलिया के बड़े भाग में सूखे की स्थिति पैदा हुई है तो कभी मजबूत अलनीनो का भी बारिश पर ज्यादा असर नहीं दर्ज किया गया। /p p style= text-align: justify पिछले कई वर्षों में ऐसे अपवाद हैं जब अलनीनो के बावजूद अच्छा मानसून आया था। 1998 में सदी का सबसे शक्तिशाली अलनीनो था जब प्रशांत महासागर का तापमान सामान्य से 4 डिग्री कम हो गया था। लेकिन उसके बाद भी भारत में बेहतरीन मानसून आया था। अलनीनो और मानसून के बीच अंतर-संबंध को लेकर लंबे समय से वैज्ञानिकों में मतभेद रहे हैं। पहले यही कहा जाता रहा कि इसका सीधा असर मानसून पर पड़ता है लेकिन 1991 से 2000 के बीच अधिकतर अलनीनो वर्षों में मानूसन सामान्य रहने के बाद धारणा बदलने लगी। विश्व के कई इलाकों में अलनीनो का प्रभाव पड़ता है लेकिन जरूरी नहीं कि भारत में भी उसका असर दिखे। भारत में मानसून पर हिंद महासागर अरब सागर बंगाल की खाड़ी हिमाचल पर्वत श्रृंखला पामीर पठार थार मरूस्थल और दक्षिणी पठार का सीधा प्रभाव रहता है। मानसून की सक्रियता की वास्तविक स्थिति अप्रेल-मई में भारतीय उपमहाद्वीप अरब प्रायद्वीप और अफ्रीका महाद्वीप पर उत्पन्न होने वाली मौसमी दशाआें से तय होती है। इस बार अगस्त या सितंबर में अलनीनो की आशंका जताई जा रही है। /p p style= text-align: justify बहरहाल भारतीय मौसम विभाग के सामने अभी भी यह चुनौती है कि वह बारिश के बारे में ज्यादा सटीक अनुमान लगाए। पूरे सीजन में कितनी बारिश होगी यह जानकारी किसानों के लिए बहुत काम की नहीं होती। यह उपयोगी तब हो सकती है जब यह बताया जाए कि हतेवार किस इलाके में कितनी वर्षा होने का अनुमान है। विकसित देशों में मौसम की ऐसी भविष्यवाणी संभव हो गई है। भारतीय मौसम विभाग भी हाल के वर्षों में अधिक चुस्त हुआ है। इसके बावजूद यह आवश्यकता बनी हुई है कि वह इतने बड़े और विषम जलवायु वाले देश के अलग-अलग क्षेत्रों के बारे में भविष्यवाणी का कौशल और बढ़ाए। /p