MP : मौत में आगे, टेस्ट में फिसड्डी
अपर्याप्त जानकारी वाले सैंपल वॉयरोलॉज लैब द्वारा रिजेक्ट भी किए जा रहे हैं। रिपोर्ट आने के पहले की लोगों की जान जा रही है।

देश में दूसरी सबसे ज्यादा कोरोना मृत्यु दर वाले एमपी में कोरोना को लेकर स्वास्थ्य विभाग बेहद लापरवाह साबित हो रहा है। एक तो मप्र में टेस्ट कम किए जा रहे हैं दूसरी तरफ सैंपल भी आधी अधूरी जानकारी के साथ भेजे जा रहे और ये अपर्याप्त जानकारी वाले सैंपल वॉयरोलॉज लैब द्वारा रिजेक्ट भी किए जा रहे हैं। इसी लापरवाही का नतीजा है कि कई कोरोना पॉजिटिव ने टेस्ट रिपोर्ट आने के पहले ही दम तोड़ दिया है।
सोशल मीडिया पर एक मैसेज वायरल हुआ कि ऐसे क्या सुरख़ाब के पर लगे हैं आंध्र प्रदेश में जो वहां एक लाख 33 हज़ार टेस्ट हो जाते हैं और इंदौर-उज्जैन में 10-12 हजार होते हैं, जिसकी रिपोर्ट भी नहीं आ पाती समय पर? राजस्थान की जनसंख्या मध्यप्रदेश के बराबर है, वहां कोरोना के पॉजिटिव केस भी मध्यप्रदेश के बराबर हैं, लेक़िन वहां 134000 टेस्टिंग हुई है और मध्यप्रदेश में सिर्फ 52 हजार!
जब हमने इन मैसेज की पड़ताल की तो हकीकत चौंकाने वाली सामने आई। सरकारी आंकड़ों के अनुसार सिर्फ 7 लाख आबादी वाले उज्जैन में हर दिन मरने वालों की संख्या 21% है। देवास में मृत्यु दर 27% और खंडवा में 12% है।
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एमपी मे 5 मई तक प्रति दस लाख की आबादी में 41 पॉजिटिव केस थे जबकि देश में 40 केस थे। एमपी का टेस्ट पॉजिटिविटी रेट 5.58% है जो राष्ट्रीय औसत 3.87% से कहीं अधिक है।
मध्य प्रदेश की स्थिति का खतरनाक पहलू यह है कि कोविड -19 अब 35 जिलों में फैल गया है। पिछले दस दिनों में 9 नए जिलों में संक्रमण पैर पसार चुका है। वर्तमान में मध्य प्रदेश में मृत्यु दर 5.77% है जो देश में दूसरी सबसे अधिक है। यह 3.42% के राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है।
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इतनी बुरी स्थिति में एमपी सरकार को तेजी से टेस्ट कर पॉजिटिव लोगों का इलाज करना चाहिए, संभावित संक्रमितों को क्वारेंटाइन कर संक्रमण रोकने के प्रयास करने चाहिए मगर ऐसा हो नहीं रहा है। मध्य प्रदेश दूसरे राज्यों की तुलना में कम टेस्ट कर रहा है। आंकड़ें बताते हैं कि 5 मई तक एमपी ने कुल 54,595 टेस्ट किए है। यानि प्रति दस लाख आबादी पर 756 टेस्ट जबकि प्रति दस लाख आबादी पर महाराष्ट्र 1628, गुजरात 1483, दिल्ली 4162 तथा राजस्थान 1970 टेस्ट कर चुका है।
कहां गायब हो गई 9,271 टेस्ट रिपोर्ट?
फिक्र की बात यह है कि एमपी में टेस्ट की दर कम है और उतनी देरी से टेस्ट की रिपोर्ट आ रही है। 1 अप्रैल को 497 जांच रिपोर्ट पेंडिंग थी जो 15 अप्रैल को बढ़ कर 4501 हो गई और 25 अप्रैल तक 9021 टेस्ट की रिपोर्ट लंबित थी। कई लोगों की जांच रिपोर्ट उनकी मृत्यु के बाद मिली। जब इन रूकी हुई जांच रिपोर्ट पर सवाल उठने लगे तो राज्य सरकार ने 27 अप्रैल के बाद कुल नमूनों और लंबित टेस्ट रिपोर्ट का डेटा देना ही बंद कर दिया। जन स्वास्थ्य अभियान ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा है कि 30 अप्रैल को हेल्थ बुलेटिन में एमपी सरकार ने कहा कि उस दिन तक कुल 41,712 टेस्ट रिपोर्ट प्राप्त हुई हैं, जिसमें कुल 2615 केस पॉजिटिव और 29,816 नकारात्मक हैं। यानि 32,441 रिपोर्ट का हिसाब दिया गया बाकि बची 9271 टेस्ट रिपोर्ट का क्या हुआ इस बारे में कोई जवाब नहीं है।
मात्र 13 प्रयोगशाला!
एमपी में 21 मार्च को पहले कोरोना पॉजिटिव का पता चला था। राज्य में अभी भी केवल 10 सरकारी परीक्षण प्रयोगशालाएँ और 3 निजी प्रयोगशालाएँ हैं, यानी कुल 13 प्रयोगशालाएँ ही काम कर रही हैं। 8 करोड़ से अधिक की आबादी वाले एमपी में जब कोरोना पॉजिटिव रेट 5.58% हो तब 13 लेबोरेटरी बहुत कम हैं। जबकि महाराष्ट्र में 45, गुजरात में 20, दिल्ली में 23 और राजस्थान में 19 निजी और सरकारी लेब काम कर रही हैं।
आधे अधूरे नमूने, रिपोर्ट आए तो कैसे
वायरोलॉजी लैब मध्य प्रदेश से भेजे टेस्ट सैंपल रिजेक्ट कर चुकी हैं क्योंकि उन्हें अधूरी और अपर्याप्त जानकारी के साथ भेजा गया था। सैंपल की प्रोसेसिंग करते हुए लैब ने पाया कि सैंपल में लीकेज था या सूची और सैंपल में नाम गलत थे, सैंपल पर नाम नहीं लिखा था सैंपल गायब थे। हेल्थ कमिश्नर ने सभी सीएमएचओ को 13 अप्रैल को लिखे गए पत्र में भी यही बातें कही थीं। जन स्वास्थ्य अभियान ने मांग की है कि मध्य प्रदेश सरकार बिना और देरी किए तुरंत अधिक प्रयोगशालाएं स्थापित करे। पर्याप्त टेस्ट किट उपलब्ध करवाए तथा जांच के डेटा पारदर्शी तरीके से शेयर करें।