संकटकाल में किसानों के सहारे देश, कोरोना के दौर में क़रीब 10 फ़ीसदी बढ़ा कृषि एक्सपोर्ट

आर्थिक मंदी के चलते जब अर्थव्यवस्था के बाक़ी तमाम सेक्टर्स में गिरावट रही, कृषि उत्पादों का एक्सपोर्ट 9.8 फीसदी बढ़ा, कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन का सबसे कम असर खेती पर पड़ा

Updated: Feb 05, 2021, 06:41 AM IST

नई दिल्ली। किसान हैं तो देश है। ये सिर्फ़ नारा नहीं, भारतीय अर्थव्यवस्था की ठोस हक़ीक़त है। किसान आंदोलन के ख़िलाफ़ जारी दुष्प्रचार के बीच अगर कुछ लोग देश की इस सच्चाई को भूलने लगे हों तो एक्सपोर्ट के ताज़ा आँकड़े देख लें। मंदी के जिस दौर में ज़्यादातर सेक्टर देश की विकास दर में गिरावट और बढ़ती बेरोज़गारी की वजह बने हुए हैं, खेती-बाड़ी करने वालों ने अर्थव्यवस्था की पतवार सँभाल रखी है।

भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय के आँकड़े बताते हैं कि अप्रैल से दिसंबर 2020 के दौरान जब देश के बाक़ी मर्चेंडाइज़ एक्सपोर्ट (Merchandise Exports) में 15.5 फ़ीसदी की भयानक गिरावट देखने को मिली, कृषि एक्सपोर्ट 9.8 फ़ीसदी की शानदार रफ़्तार से बढ़ा है। संकटकाल में कृषि एक्सपोर्ट बढ़ने की मुख्य वजह यही है कि कोरोना काल में तमाम बंदिशों और मुश्किलों का सामना करते हुए भी किसानों ने अपनी मेहनत और साहस से देश की कृषि उपज को गिरने नहीं दिया। जबकि दुनिया के कई प्रमुख कृषि उत्पादक देशों के उत्पादन में भारी गिरावट देखने को मिली। इसी वजह से अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कृषि उत्पादों के दाम ऊँचे रहे, जिससे हमारे एक्सपोर्ट को बढ़ाने में मदद मिली। यानी देश के किसान सिर्फ़ हमारे अन्नदाता ही नहीं, मुश्किल वक़्त में देश को विदेशी मुद्रा कमाकर देने वाले संकटमोचक भी हैं।

वाणिज्य मंत्रालय के आँकड़े बताते हैं कि अप्रैल-दिसंबर 2020 के दौरान देश से होने वाला वस्तुओं का कुल निर्यात (Exports of All Goods) गिरकर 201.30 अरब डॉलर रह गया, जबकि पिछले साल के इन्हीं महीनों के दौरान यह 238.27 अरब डॉलर था। लेकिन इसी दौरान कृषि उत्पादों (agri-commodities) का निर्यात 26.34 अरब डॉलर से बढ़कर 28.91 अरब डॉलर हो गया। कोरोना काल के इन्हीं महीनों के दौरान देश का कृषि आयात 5.5 फीसदी घट गया। जिसकी वजह से अप्रैल से दिसंबर 2020 के दौरान कृषि व्यापार का सरप्लस (agricultural trade surplus) बढ़कर 13.07 अरब डॉलर हो गया, जबकि अप्रैल-दिसंबर 2019 के दौरान यह 9.57 अरब डॉलर था।

भारत के कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ने की दो मुख्य वजहें हैं। पहली वजह तो यह कि दुनिया के कई देशों में कोरोना काल में कृषि उत्पाद गिरने के बावजूद हमारे देश में ऐसा नहीं हुआ, जिसके चलते हम निर्यात करने की स्थिति में रहे। दूसरी इसी से जुड़ी वजह है अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कृषि उत्पादों की क़ीमतों का लगातार अच्छे स्तर पर बने रहना। संयुक्त राष्ट्र के फ़ूड एंड एग्रीकल्चरल ऑर्गनाइज़ेशन (FAO) का फ़ूड प्राइस इंडेक्स (FPI) जनवरी के महीने में 113.3 प्वाइंट पर रहा, जो जुलाई 2014 के बाद सबसे अधिक है। मई 2020 से जनवरी 2021 के दरम्यान FPI 48 महीने के सबसे निचले स्तर से बढ़कर 78 महीनों के सबसे ऊँचे स्तर पर जा पहुँचा है।

भारत के कृषि निर्यात में जिन उत्पादों का अहम योगदान रहा है, उनमें चावल, चीनी, तिलहन, कॉटन, गेहूं के अलावा मक्का भी शामिल हैं। दरअसल 2013-14 के बाद देश ने पहली बार गेहूं और मक्का का बड़े पैमाने पर निर्यात किया। रूस, अर्जेंटीना, ब्राज़ील, यूक्रेन, थाइलैंड और वियतनाम जैसे प्रमुख कृषि निर्यातक देशों का एक्सपोर्ट घटने या काफ़ी समय तक ठप रहने का फ़ायदा भी भारत को मिला है। इसके अलावा चीन ने इस दौरान अपना कृषि उत्पादों का भंडार काफ़ी तेज़ी से बढ़ाया है। इसका असर भी अंतरराष्ट्रीय मांग और क़ीमतों पर पड़ा है।

दरअसल, यूपीए सरकार के कार्यकाल के बाद भारत के कृषि निर्यात (Farm Exports) में पहली बार इतनी तेज़ी देखने को मिली है। 2003-04 से 2013-14 के दौरान भारत का कृषि निर्यात 7.53 अरब डॉलर से बढ़कर 43.25 अरब डॉलर पर जा पहुँचा था। लेकिन देश में सत्ता परिवर्तन के बाद 2015-16 में यह गिरकर 32.81 अरब डॉलर हो गया। उसके बाद से अब तक कृषि निर्यात कभी उस पुराने स्तर को हासिल नहीं कर पाया। जानकारों का मानना है कि अप्रैल से दिसंबर 2020 के दौरान कृषि उत्पादों के निर्यात में जो तेज़ी नज़र आई है, वो बरकरार रही, तो उसका कुछ लाभ देश के किसानों तक पहुंचने की उम्मीद की जा सकती है।