मंदी के बीच महंगाई की मार, 6 साल में सबसे ज़्यादा हुई खुदरा महंगाई दर
Inflation on 9 Month High: अक्टूबर में 7.61 फीसदी रही खुदरा महंगाई दर, मंदी और महंगाई का यह दुष्चक्र खतरनाक Stagflation की तरफ इशारा कर रहा है

खुदरा महंगाई दर के ताज़ा आंकड़े डराने वाले हैं। गुरुवार को जारी इन आँकड़ों के मुताबिक़ देश में खुदरा महंगाई दर 7.61 फ़ीसदी पर जा पहुँची है, जो पिछले नौ महीनों का सबसे ऊँचा स्तर है। इससे पहले सर्वाधिक खुदरा महंगाई दर 7.59 फीसदी इस साल जनवरी में दर्ज की गई थी।
इस साल सितंबर में खुदरा महंगाई दर 7.27 फीसदी थी। जबकि अक्टूबर 2019 में दर 4.62 फीसदी थी। पिछले साल के मुकाबले इस अक्टूबर में खुदरा महंगाई दर ने 2.99 फीसदी से भी ज्यादा की छलांग लगाई है।ज़्यादा चिंता की बात यह है कि खुदरा महंगाई दर में यह इज़ाफ़ा खाने-पीने की चीजों की बढ़ी कीमतों की वजह हुआ है। गुरुवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (सीएफपीआई) अक्टूबर में 11.07 प्रतिशत हो गया, जो सितंबर में 10.68 प्रतिशत था।
दरअसल मौजूदा महंगाई दर की तुलना किसी भी सामान्य या पॉज़िटिव विकास दर वाले साल की महंगाई दर से करना ठीक नहीं होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि महंगाई की ये ऊँची दर ऐसे वक़्त में सामने आई है, जब देश भयानक मंदी की चपेट में है। रिज़र्व बैंक ने आज ही बताया है कि जीडीपी में लगातार दूसरे महीने गिरावट देखने को मिली है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के दौरान जीडीपी में 23.9 फ़ीसदी की गिरावट देखने के बाद अब दूसरी तिमाही यानी जुलाई से सितंबर 2020 के दौरान भी 8.36 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। मंदी के इस दौर का मतलब है बड़ी संख्या में लोगों के रोज़गार छिन चुके हैं और जेब ख़ाली हो गई है। इन हालात में महंगाई की मार सामान्य दिनों के मुक़ाबले अर्थव्यवस्था पर कहीं ज़्यादा भयानक असर डाल सकती है।
मंदी-महंगाई की दोहरी मार
एक तरफ मंदी और दूसरी तरफ महंगाई की ये दोहरी मार अर्थशास्त्र की भाषा में Stagflation में फंसी अर्थव्यवस्था की तरफ इशारा कर रही है। स्टैगफ्लेशन उस हालत को कहते हैं जब उत्पादन घटने के कारण लोगों के पास पैसे नहीं हैं, बाज़ार में डिमांड घटी हुई है, फिर भी दाम बढ़ते जा रहे हों। ऐसी स्थिति में अर्थशास्त्र कई सामान्य नियम ठीक से काम नहीं करते। लिहाजा इकॉनमी को मैनेज करना बेहद मुश्किल हो जाता है।
ब्याज दरों में राहत की उम्मीद कम
महंगाई दर में उछाल का एक नुक़सान यह भी है कि इससे रिज़र्व बैंक के लिए आने वाले वक्त में ब्याज़ दरों में और कटौती करके अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने की गुंजाइश और कम हो जाएगी। हालाँकि देश के औद्योगिक उत्पादन में सितंबर माह के दौरान 0.2 फ़ीसदी का बेहद मामूली सकारात्मक रुख दिखा है। लेकिन महंगाई और बेरोज़गारी की दोहरी मार झेलते लोगों के लिए ये कोई ख़ास राहत की बात नहीं है।